रश्मि त्रिपाठी
मैने डॉ विक्टर एगॉन का नाम अपनी एक परिचित के मुंह से पहली बार सुना था , जो चौरीचौरा क्षेत्र से थीं। उन्होंने बताया था कि वहां के लोग डॉक्टर विक्टर को भगवान मानते हैं ,शायद ही कोई घर हो उस क्षेत्र में जिनके घर के बच्चे डॉक्टर विक्टर के हॉस्पिटल में न हुए हों। वहां के लोग अभी भी बस विक्टर को जानते हैं ,अमृता को नही ।
क्योंकि उन्हें ये पता ही नही कि एक हंगेरियन डॉक्टर वहां क्यों थे ?
उमराव सिंह मजीठिया को गोरखपुर में चौरीचौरा के पास अंग्रेजों ने जागीर दी थी ,जहां उन्होंने सरदार नगर नाम से एक नगर बसा दिया था। वहां सरया गांव में उन्होंने एक चीनी मिल लगाई जिससे लोगों को रोजगार मिला। वहां उनकी महलनुमा कोठियां थी और चूंकि पूरी टाउनशिप थी इसलिए अस्पताल ,बाजार सब कुछ था ।
मजीठिया स्टेट डिस्पेंसरी नाम से हॉस्पिटल था जिसमें डॉक्टर विक्टर ने अपना पूरा जीवन काट दिया।
उमराव सिंह ने हंगरी मूल की मारिया एंतोएनेत से शादी की थी, जिससे उनकी दो संताने हुईं अमृता और इंदिरा। यही अमृता आगे चलकर बहुत बड़ी चित्रकार बनीं जिन्हें लोग अमृता शेरगिल के नाम से जानते हैं।
अमृता बेहद आजाद ख्याल थीं और कई लोगों से उनके संबध थे । शादी के लिए कई अच्छे प्रस्ताव भी उन्होंने ठुकरा दिये और घरवालों के विरोध के बावजूद उन्होंने अपने ममेरे भाई डॉ विक्टर एगॉन से सन 1939 में शादी कर ली थी। क्योंकि विक्टर ने हर मुश्किल में अमृता का साथ दिया था ये रिश्ता आपसी समझ और विश्वास का था।एक दूसरे को सम्मान देने का था।
हंगरी में 1939 में शादी करने के बाद वे दोनो आकर सरया में रहने ,जहां अमृता गांवों में घूम घूमकर चित्र बनातीं और विक्टर ने हॉस्पिटल संभाल लिया था।
दो बर्षों के बाद अमृता का मन यहां से उचट गया और वे यहां से लाहौर चली गईं । जहां अचानक से उनकी तबीयत खराब हुई ,डॉक्टर विक्टर ने हर संभव कोशिश की पर 5 दिसम्बर 1941 को वे मात्र 28 साल की उम्र में चल बसीं, अमृता की मां ने विक्टर को दोषी माना और विक्टर ये पहाड़ सा ग़म लेकर वापस सरया लौट आये । और लोगों का इलाज करते हुए जिंदगी काट दी पर कभी किसी से अमृता के बारे में कोई बात नही की।
हां सरया अमृता का घर था और वो शादी के बाद उनके साथ यहां रहे थे । इसलिए शायद वो उनकी यादों के साथ रहे या उनके ग़म के साथ , पर आज सरया के लोग अमृता को नही विक्टर को जानते हैं।
दस साल बाद उन्होंने दूसरी शादी भी की पर सरया कभी न छोड़ा , सन 1997 में उन्होंने वहां अंतिम सांस ली । वहां लोग बताते हैं कि अगर लोग उनसे पूछते कि आप कभी अपने देश क्यों नही जाते तो वे कहते कि वहां कौन है मेरा ? सब कुछ अब यहीं है।
कन्हैयालाल नंदन ने अमृता की जीवनी में लिखा था कि डॉक्टर कहते थे जब मैं और अमृता भारत आ रहे थे तो हमारे पास कुछ जर्मन सिक्के थे जिसे हम लोगों ने समंदर में फेंक दिया था। अमृता पैसों की परवाह कभी नही करतीं थीं मेरे पास उनकी स्केच बुक और एक सिल्क साड़ी हमेशा रहती है जिसे वो बहुत पसंद करती थीं।
कन्हैयालाल के अनुसार वे अमृता की यादों के साथ रहते थे ,उन्हें सहेज कर रख लिया था उन्होंने।
उन्होंने बताया था उनके मरने के बाद उन्हें लगातार ये सपना आता था कि मैं उन्हें रोक रहा हूं और वो मुझसे कह रही हैं मुझे जाना होगा।
उस समय अगर एंटीबायोटिक दवाएं होंती तो मैं उन्हें बचा लेता।मैं उन्हें जाते हुए देखता रहा और कुछ न कर पाया।
डॉक्टर विक्टर ने अपने शुरुवाती दिनों में हंगरी की वायुसेना के लिए काम किया था । उसकी यूनिफॉर्म पहने हुए अमृता ने उनका पोट्रेट बनाया था। वो हंगरी में ही रह गया था ,अमृता के बाद डॉक्टर ने उसे मंगाया पर वो खराब हो गया था तो दिल्ली में किसी आर्टिस्ट से उसे ठीक कराया। कहा जाता है उस समय इस काम के लिए उन्होंने तीन लाख ₹ दिये थे उसे। और उस पोट्रेट को आजीवन अपने बिस्तर के सामने लगा कर रखा था।
बाद के बर्षों में वे बस लोगों की सेवा में ही लगे रहे पर मुझे नही पता इतने महान व्यक्ति के बारे में अमृता से अलग क्यों कुछ नही लिखा गया ?