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कुत्तों के लिए कुर्बानी करने वाले कुत्ते 

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        पुष्पा गुप्ता 

बाबा बाबा 3 दिन रह गए हैं कुर्बानी वाली ईद में हमें भी गोश्त मिलेगा ना.?

   हां हां क्यों नहीं बिल्कुल मिलेगा.

    लेकिन बाबा पिछली कुर्बानी पर तो किसी ने भी हमें गोश्त नहीं दिया था। अब तो पूरा साल हो गया गोश्त नहीं खाए. 

नहीं शाजिया, अल्लाह ने हमें भूखा तो नहीं रखा ना. मेरी प्यारी बेटी हर हाल में अल्लाह पाक का शुक्र अदा करना चाहिए.

डॉक्टर साहब कुर्बानी के लिए बकरे लाए हैं और मास्टर जी भी तो बकरा लेकर आये हैं. हम गरीबों के लिए ही तो कुर्बानी का गोश्त होता है.  अमीर लोग तो सारा का सारा साल गोश्त ही खाते हैं.

     मौलवी साहब ने बयान फरमाया है कि कुर्बानी में गरीब मजदूर मिस्कीन लोगों को गोश्त भिजवाना ना भूलें. यह उन्हीं का हक है. उनके बहुत हुकूक हैं अमीरों पर.

    आज ईद उल अजहा हैं. लोग ईद की नमाज़ पढ़ कर लौट रहे हैं. शाजिया का बाप भी नमाज अदा कर के घर पहुंच गया. घंटा भर इंतजार करने के बाद शाजिया बोली, बाबा अभी तक गोश्त नहीं आया.

बड़ी बहन राफिया बोली चुप हो जाओ.

शाजिया बाबा को परेशान ना करो. वह चुपचाप दोनों की बातें सुनता रहा और नजरअंदाज करता रहा. काफी देर के बाद भी जब कहीं से गोश्त नहीं आया तो शाजिया की मां बोली, सुनिए मैंने तो प्याज टमाटर भी काट दिए हैं. लेकिन कहीं से भी गोश्त नहीं आया. कहीं पड़ोसी भूल तो नहीं गए, हमारे यहां गोश्त भिजवाना. आप खुद जाकर मांग लें.

   शाजिया की मां तुम्हें तो पता है आज तक हमने कभी किसी से कुछ मांगा नहीं, अल्लाह पाक कोई ना कोई शबब पैदा करेगा। दोपहर गुजरने के बाद शाजिया की जिद पर पहले डॉक्टर साहब के घर गए और बोले डॉक्टर साहब मैं आपका पड़ोसी हूं.. कुर्बानी का गोश्त मिल सकता है. यह सुनना था कि डॉक्टर साहब का रंग लाल पीला होने लगा, और नफरत से बोले  पता नहीं कहां कहां से आ जाते हैं गोश्त मांगने,और फटाक से दरवाजा बंद कर दिया.

 तौहीन ए एहसास से उसकी आंखों में आंसू आ गए, और वह बोझल कदमों से चल पड़ा.

   रास्ते में मास्टर जी का घर भी था,घर की तरफ कदम उठाए और वहां भी वही सवाल. मास्टर जी ने गोश्त का नाम सुनकर अजीब सी नजरों से देखा, और चले गए.

    थोड़ी देर बाद बाहर आए तो प्लास्टिक देकर जल्दी से अंदर चले गए. जैसे उसने गोश्त मांग कर गुनाह कर दिया हो। घर पहुंच कर देखा तो सिर्फ हड्डियां और चर्बी थी, खामोशी से उठकर कमरे में चले गए और खामोशी से रोने लग गए.

     बीवी आई और बोली कोई बात नहीं है, आप परेशान ना हो. मैं चटनी बना लेती हूं. थोड़ी देर बाद शाजिया कमरे में आई और बोली बाबा मुझे गोश्त नहीं खाना है, मेरे पेट में दर्द हो रहा है.

 इतनी बात सुनना था कि आंखों से आंसू गिरने लगे. और फिर फूट-फूट कर रोने लगे.. लेकिन रोने वाले वह अकेली नहीं थी. दोनों बच्चे और बीवी भी आंसू बहा रहे थे.

   इतने में पड़ोस वाले अकरम की आवाज सुनाई दी जो सब्जी की दुकान चलाता था। बोला अनवर भाई दरवाजा खोलो दरवाजा खोला.

 तो अकरम ने 3 से 4 किलो गोश्त का झोला पकड़ा दिया और बोला यह रख लो. छोटा भाई गांव से लेकर आया था. इतना हम अकेले नहीं खा सकते हैं. यह तुम भी खा लेना.

खुशी और शुक्र के एहसास से आंखों में आंसू आ गए और अकरम के लिए दिल से दुआ निकलने लगी. गोश्त खा कर अभी फारिग हुए ही थे कि बहुत जोर का तूफान आया.

    बारिश शुरू हो गई उसके साथ बिजली चली गई. दूसरे दिन भी बिजली नहीं आई. पता किया तो मालूम हुआ कि ट्रांसफार्मर जल गया है.

  तीसरे दिन शाजिया को लेकर बाहर आए तो देखा मास्टर जी और डॉक्टर साहब के बहुत सारे दोस्त कुर्बानी के गोस्त को बाहर फेंके हुए हैं. जो बिजली ना होने की वजह से खराब हो गए थे और उस पर कुत्ते झपट रहे थे.

    शाजिया बोली, बाबा क्या कुत्तों के लिए कुर्बानी की गई थी.? वह शाजिया का चेहरा देखते रहे और मास्टर जी और डॉक्टर साहब ने यह सुनकर गर्दन झुका ली.

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