अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मत छेड़ो, सुकूँ से सोने दो उन्हे

Share

मीना राजपूत

     तब तक साउथ दिल्ली के वसंत कुंज को आबाद होने में कुछ बरस बाकी थे। रिंग रोड को शुरू हुए एक साल ही तो गुजरा था। रिंग रोड के आगे खेत और गांव ही अधिक थे। आबादी कम ही थी। जिंदगी सुकून भरी थी।

      सड़कों पर ट्रैफिक और उसका शोर तो आज के मुकाबले बहुत ही कम रहता था।  14 जून 1972 को जापान एयर लाइँस का एक पैसेंजर विमान लगभग उस जगह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जहां पर अब वसंत कुंज और तमाम दूसरी कॉलोनियां और इमारतें खड़ी हैं। 

वह अभागा विमान टोक्यो से हांगकांग और बैंकाक होता हुआ पालम हवाई अड्डे पर उतरने के चंद मिनट पहले गिर गया। वह रात का समय था। दसेक बजे तक विमान का पालम एयरपोर्ट से संपर्क बना हुआ था। सब कुछ सही से चल रहा था।

      फिर अचानक से उसका कंट्रोल रूम से संपर्क टूटा और विमान में धमाके के बाद आग लग गई। उसके टुकड़े मुनिरका, वसंत गांव और जेएनयू के आसपास भी गिरे। उसे गिरते हुए सैकड़ों लोगों ने देखा। हादसे में कुल जमा 82 मुसाफिर और विमान का स्टाफ मारा गया।

     जिधर भी विमान के टुकड़े गिरे वहां पर दिल्ली वाले तुरंत पहुंचे और घायल यात्रियों को बचाने की कोशिशें करने लगे। 

जब विमान गिरा तो 14 मुसाफिर जीवित थे, पर उनमें से 8 की एम्स और सफदरजंग अस्पताल में ले जाते वक्त जान चली गई थी। मृतकों में कुल जमा 16 अमेरिकी थे।

     ब्राजील की एक्ट्रेस लेला डिनीज भी थीं। उस विमान में केकेपी नरसिंह राव एकमात्र भारतीय थे। वे यूनाइटेड नेशंस के साथ जुड़े हुए थे। वे भी हादसे में जान गंवा बैठे थे।

       दिल्ली उस विमान हादसे से दहल गई थी। फिरउन मारे गए यात्रियों के अवशेषों को लेकर एक सामूहिक कब्र पृथ्वीराज रोड की यार्क सिमिटरी में बनाई गई। इस कब्र के आगे रूककर मृतकों के नामों को पढ़ते हुए मन उदास हो जाता है।

      कौन जाने कि इन बेचारों के परिवार वालों को इस जगह के बारे में कोई सूचना है भी या नहीं है। क्या वे कभी यहां पर आये हैं? ये कब्र सिमिटरी के मेन गेट से बायीं तरफ बिल्कुल कोने में हैं।

 हादसे के शिकार हुए अधिकतर मुसाफिर अमेरिकी, जापान और ब्राजील के थे। आप इसे सांकेतिक कब्र कह सकते हैं। इधर कोई हादसे की बरसी पर भी फूल चढ़ाने भी नहीं आता। राजधानी में जापान, ब्रिटेन और ब्राजील के दूतावास हैं और इन सब देशों के राष्ट्राध्यक्ष राजधानी में आते रहे हैं।

       क्या उन्हें उनके देशों के दूतावासों की तरफ से बताया नहीं गया कि दिल्ली में एक कब्र का उनके देश से अलग तरह का नाता है? लेकिन, इस पत्थरदिल दुनिया में किसे फुर्सत है उन मुसाफिरों को याद करने की। वक्त के साथ सब कुछ ही तो भूला दिया जाता है।

      ग्रेनाइट की बनी कब्र पर लिखे कुछ नाम वक्त के असर के चलते मिटने लगे हैं। इस कब्र से चंद कदमों की दूरी पर जेसिका लाल और भारत के पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन भी चिर निद्रा में हैं।

 जेसिका लाल की कब्र पर कुछ साल पहले तक उसकी बहन सबरीना लाल ईस्टर और क्रिसमस पर फूल चढ़ाने अवश्य आया करती थी। पर अब वो भी नहीं रही है। इसलिए अब जेसिका लाल की कब्र उन कब्रों में शामिल हो चुकी है जिधर आने का किसी के पास कोई वक्त नहीं है। 

       यार्क सिमिटरी के अंदर कदम रखते ही आपकी नजर दायीं तरफ एक छोटी सी कब्र पर जाती है। कब्र के ऊपर पर लिखा ‘राजकुमारी अमृत कौर।‘ वो नेहरू जी की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर थीं।

       एम्स की स्थापना में उनकी अहम भूमिका थी। पंजाब के कपूरथला के राज परिवार से संबंध रखती थीं।

     के.आर. नारायणन तथा राज कुमारी अमृत कौर की कब्रों की दशा को देखकर समझ आ जाता है कि इधर किसी के आये एक अरसा गुजरा चुका है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें