मुनेश त्यागी
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना करने में बड़ी महती भूमिका निभाई थी। भारतीय रिजर्व बैंक 1 अप्रैल 1935 को स्थापित हुआ था जिस कारण भारत में आर्थिक केंद्रीयकरण, स्वतंत्रता और प्रगति की राह हमवार की थी और भारतीय रुपए की समस्या और समाधान पर अपने सशक्त विचार व्यक्त किए थे। अंबेडकर एक बहुत बड़े लेखक थे उन्होंने सैकड़ों की संख्या में किताबें लिखी थी और उनमें अपने विचार व्यक्त किए थे।
उन्होंने कहा था कि हम किसानों मजदूरों का शोषण करने वाली पूंजीपति और जमीदारों की रक्षक और हितैषी सरकार नहीं चाहते, हिंदू धर्म को समानता का धर्म बनना पड़ेगा, चतुर्वर्ण जो जातिभेद और छुआछूत का जनक है को मटियामेट करना पड़ेगा, ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद मजदूरों के सबसे बड़े दुश्मन हैं, स्वतंत्रता समता और समानता पर आधारित जीवन ही असली लोकतंत्र कहलाता है, मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ हूं परंतु हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं और इसके अलावा उन्होंने एक और बहुत बड़ी बात कही थी कि किसी भी कीमत पर हिंदू राष्ट्र नहीं बनना चाहिए। उनके कुछ प्रमुख कोटेशंस पर एक नजर डालते हैं,,,,,
,,,,,,वे धन्य है जो यह अनुभव करते हैं कि जिन लोगों में हमारा जन्म हुआ है उनका उद्धार करना हमारा कर्तव्य है, वे धनी हैं जो गुलामी का खात्मा करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करते हैं।”
,,,,, यदि लोकमान्य तिलक अछूतों में पैदा होते तो वे “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” यह आवाज बुलंद ना करते, बल्कि उनका सर्वप्रथम नारा होता “अछूतपन खात्मा करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”
,,,,, अछूत समाज की प्रगति में बाधक बनने वाला कोई भी व्यक्ति या संस्था हो, वह चाहे अछूत समाज ही क्यों ना हो या सवर्ण समाज हो, उसका हमें तीव्र विरोध और निषेध करना चाहिए।
,,,,, मैं एक बहादुर सैनिक का पुत्र हूं, कायर नहीं हूं। मेरा चाहे जो हो, मैं मौत के भय से यहां से हट नहीं सकता, दूसरों को खतरे में डालकर अपनी जान बचाने वालों में नहीं हूं मैं।”
,,,,, आज अछूत भी मौजूदा राज के स्थान पर जनता का राज चाहते हैं, मजदूर और किसानों का शोषण करने वाले पूंजीपति और जमींदार की रक्षक सरकार हम नहीं चाहते।”
,,,,, यदि हिंदू धर्म अछूतों का धर्म है, तो उसको सामाजिक समानता का धर्म बनना पड़ेगा।”
,,,,,,चातुर्वर्ण के सिद्धांत को, जो जाति भेद तथा छूआछूत का जनक है, मटियामेट करना होगा।”
,,,,, सब में ईश्वर मानने वाले और आचरण से मनुष्य को पशुतुल्य मानने वाले लोग पाखंडी हैं, हिंदू धर्म मेरी बुद्धि को जंचता नहीं, स्वाभिमान को भाता नहीं।”
,,,,,, ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद ये दोनों मजदूरों के दुश्मन हैं क्योंकि यह दोनों समता, समानता तथा बंधुता के विरुद्ध हैं, उनके दुश्मन हैं।”
,,,,, मेरा आप सबको एक ही संदेश है,,,, पढ़ो, संगठित बनो, प्रचारक बनो, आत्मविश्वासी बनो और आशावादी बनो।”
,,,,, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आधार पर आधारित, सामाजिक जीवन ही लोकतंत्र कहलाता है, भारत में समता का पूर्ण अभाव है, राजनीति में हमें समानता मिली है परंतु सामाजिक और आर्थिक जीवन में विषमता का ही बोलबाला है, हमें इस विषमता को फौरन नष्ट करना चाहिए।”
,,,,, यदि आप हिंदू प्रणाली, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज की रक्षा करना चाहते हैं तो उसमें जो खराबियां और बीमारियां पैदा हो गई हैं, उनको सुधारने में तनिक भी हिचकिचाहट ना करें।”
,,,,, स्पृस्य हिंदुओं के बहुमत के आधार पर गांधी और कांग्रेस ने मेरा और मेरे पक्ष का राजनीतिक जीवन खत्म कर दिया है।”
,,,,, मैंने हिंदू धर्म में जन्म लिया है, मगर मैं हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं। धर्मांतरण से मैं बड़ा ही खुश हूं और प्रफुल्लित हो उठा हूं, मुझे ऐसा मालूम होता है कि मैं नर्क से छुटकारा पा गया हूं।”
,,,,, सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ भी नहीं है, जो समाज सुधारक समाज को ललकारता है, वह सरकार का विरोध करने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक निर्भीक है।”
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कितने बड़े मानव बल्कि महामानव और जनपक्षीय इंसान थे,,,उनको किसी ने “आधुनिक मनु” कहा, तो किसी ने “बीसवीं सदी का स्मृति कार” कहा, किसी ने “भारत बुकर टी वाशिंगटन” कहा, किसी ने “भारत का अब्राहम लिंकन” कहा, किसी ने “भारत का मार्टिन लूथर” कहा किसी ने “भारत का राबर्टसन” कहा तो किसी ने “भारत का टामस जैफरसन” कहा.
वे आधुनिक समय के अधिकारों के अग्रदूत थे। उन्होंने वर्ण विरोधी समाज की कामना की और सारी जिंदगी अछूतोद्धार के लिए लगे रहे. उन्होंने अपना अंबेडकरपन कभी नहीं खोया. वह करोड़ों दलितों के उद्धारक, वर्ण भेद के कट्टर निरोधक, सामाजिक समरसता समता और समानता के प्रबल समर्थक और आधुनिक समय के सर्वश्रेष्ठ क्रांतिकारी समाज सुधारक बने रहे।
डॉक्टर अंबेडकर जन्मजात विद्रोही थे. जन्मजात बगावती थे, उन्होंने गांधी से बगावत की, कांग्रेस से बगावत की, हिंदू समाज से बगावत की और हिंदू धर्म से बगावत की, परंतु उन्होंने कभी भी देश से बगावत नहीं की। वह सामाजिक समता के अग्रदूत थे। भारतीय समाज की बेहतरी चाहने वाले हर इंसान और भारतीय का कर्तव्य है कि वह अंबेडकर के विचारों को आत्मसात करे, उनकी किताबों को पढ़ें। हम पूरी तरह मुत्मइन होकर कह सकते हैं कि अंबेडकर को पढ़े और गुणे बिना, ना तो एक बेहतर इंसान बना जा सकता है और ना ही एक बेहतर भारत का निर्माण हो सकता है। अतः हमें अंबेडकर को पढ़ने का अपनी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण मिशन बना लेना चाहिए, तभी एक बेहतर समाज और बेहतर भारत के निर्माण के अभियान में कारगर रूप से शामिल हुआ जा सकता है।