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डॉ रामचंद्र पूरी….जीवनपर्यंत जीवटता ही उनकी पहचान बनी रही!

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-डॉ श्रीगोपाल नारसन

रुड़की में कभी शिक्षा व पत्रकारिता के क्षेत्र में डॉ रामचंद्र पूरी का बड़ा नाम रहा है। एक आदर्श प्राध्यापक के रूप में जहां उनकी विद्वता का सभी लौहा मानते थे ,वही बेख़ौफ़ पत्रकारिता उनकी पहचान होती थी। छात्रों के हिमायती और भृष्टो के कट्टर दुश्मन डॉ पूरी बड़े से बड़े अधिकारी व नेता से भी भिड़ जाते थे। उन्हें संस्कृत व्याकरण का पंडित माना जाता था। कभी मध्यप्रदेश से आकर पहले हरिद्वार के निरंजनी अखाड़े को और फिर ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश कर रुड़की को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले डॉ रामचंद्र पूरी रुड़की में हिंदी पत्रकारिता का एक ऐसा नाम रहा है ,जिसकी गूंज विदेशो तक मे गुंजायमान रही है।

चाहे पत्रकारों के स्वाभिमान का अवसर हों या फिर महत्वपूर्ण जनसमस्याओं के लिए संघर्ष अथवा रुड़की की पौराणिक ,आध्यात्मिक, ऐतिहासिक धरोहर को शब्दों में पिरोकर देश दुनिया के सामने परोसने की बात, डॉ रामचंद्र पूरी हमेशा लेखन मामले में अग्रणी रहे है। मध्यप्रदेश के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे डॉ रामचंद्र पूरी किशोरावस्था में ही संत बनने के जुनून में घर से हरिद्वार आ गए थे,उन्होंने संस्कृत में एमए व फिर पीएचडी किया और बीएसएम पीजी कॉलेज रुड़की में हिंदी विभाग के प्राध्यापक बन गए। उन्होंने पत्रकारिता का भी जिम्मा संभाला, जिससे क्षेत्र के युवा पत्रकारों को पत्रकारिता में कैरियर बनाने का उनकी प्रेरणा से अवसर भी मिला। डॉ पूरी के शिष्यों की संख्या आज भी सैकड़ो में गिनी जा सकती है। नवभारत टाइम्स का रुड़की से प्रतिनिधित्व करते हुए डॉ रामचंद्र पूरी ने दुर्गा सप्तशती पुस्तक प्रकाशित की। उन्होंने सूरीनाम समेत कई देशों की यात्रा की और संस्मरण लिखे।


मेरे से उनका हमेशा आत्मीय रिश्ता रहा। मैं कई बार अकेले तो कई बार वरिष्ठ साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण जी के साथ उनके घर पर जाने और परिजन की तरह बतियाने का अवसर मिला। उन्होंने एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक से संबंद्ध होकर एक पत्रकार के रूप में अपना दायित्व निभाया। वे हमेशा अपने बारे में किसी को कुछ बताने से हिचकते थे,जबकि दुसरो की तारीफ़ में उन्होंने कभी कोई कंजूसी नही की। लेकिन साफगोई से बोलना उन्हें बहुत भाता था। उनके नाम के साथ पूरी शब्द उनके निरंजनी अखाड़े से सम्बद्ध होने की पहचान था। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत अध्यापन के पेशे से की। उन्होंने पैंतीस वर्ष से अधिक समय तक प्राध्यापक के रूप में सेवाए देते रहे। उनपर पत्रकारिता का हमेशा जुनून रहा।

उनकी शादी डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण की धर्मपत्नी डॉ आशा शर्मा की ममेरी बहन से हुई थी । साहित्यिक, सांस्‍कृतिक, सामाजिक, पत्रका‍रीय संस्‍थाओं में भागीदारी उनकी हमेशा बनी रही। उन्हें उनके इष्टदेव राम ने हमेशा खुश रखा , खुश ही रहने की कोशिश में वे सदा लगे रहे। पढना, पढाना, लिखना, घूमना, हर दिन कुछ नया सीखना और कुछ नया करने की ललक रखना, खुद पर हंसने के बहाने ढूंढना उनकी आदत में शुमार रहा। वे भारतीय शास्‍त्रीय और उपशास्‍त्रीय संगीत पसन्द करते थे, वे जिन साहित्यकारों की पुस्तकें पढ़ते थे उनमें हरिवंशराय बच्‍चन, दिनकर, भारती, नन्‍दन, वृन्‍दावनलाल वर्मा, चतुरसेन, गालिब, क.मा.मुंशी, विस खाण्‍डेकर आदि शामिल है। पत्रकारिता से जुड़े आयोजनों में उनकी उपस्थिति उनको एक सक्रिय पत्रकार ,एक सक्रिय प्राध्यापक व एक सक्रिय समाजसेवी के रूप में स्थापित करती थी। लंबे समय तक बीमारी से जूझते हुए आखिरकार डॉ रामचंद्र पूरी मुंबई में 14 मार्च को देहावसान हो गया जबकि अंतिम संस्कार 16 मार्च को मुंबई में ही उनकी बेटी द्वारा किया गया। जीवनपर्यंत जीवटता ही उनकी पहचान बनी रही। आज भी जब जब डॉ रामचंद्र पूरी का नाम सामने आता है, उनके प्रति सिर सम्मान से झुक जाता है। पत्रकारिता के ऐसे अस्त हो गए सूर्य को शत शत नमन।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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