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पी रही है ज़िन्दगी

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जूली सचदेवा(दिल्ली)

एक दिन ऐसा आया कि
उसने छोड़ दिया सोचना
और शुरू कर दिया
फिर से सोचना
पहले भी
और अब भी
सोचना बना रहा
ज्यों का त्यों
बस अंतर यह आया :
पहले लोगों के लिए
सोचा और
अब अपने लिए
साठ बरस की ज़िंदगी में से
आधी ज़िंदगी
गुज़ार दी उसने
सोचते सोचते कि~
लोग क्या सोचेंगे
इधर उधर से
जोड़ तोड़ मरोड़ के
भौहें चढ़ाएंगे
गुन गुन करेंगे
प्रश्न करेंगे
पंचायत बिठाएंगे
आरोप प्रत्यारोप लगाएंगे

मगर फ़िर एक दिन
वो उठ खड़ी हुई
अंदर की आवाज़
बाहर आ गयी
और कह दिया सबको :
Let go, let go, let go
अप्रत्यक्ष रूप से ही सही
सब दूर हो जाओ

बस फिर इतना कहते ही
उसके साथ साथ
यूनिवर्स ने भी
शुरू कर दी छंटनी
होने लगे कुछ लोग दूर
और जो दूर थे
अनजान थे
उसकी जैसी फ्रीक्वेंसी के थे
ख़ुद ब ख़ुद आने लगे क़रीब
अलग अलग रूपों में

जो थे उनको कुछ
कहा भी नहीं उसने
जो आये उनका
स्वागत किया बस
फिर भी सम्बंध सबसे रहा
बस सम्पर्क कम हो गया
या ख़त्म भी

जब आप कह चुके हो
यूनिवर्स से सब
कर चुके हो सरेंडर
कि अब तू देख
ख़ुद ही चला नैया
ख़ुद ही पार लगा
तो वो भेज ही देता है
किसी न किसी योग्य को
किसी न किसी रूप में
पतवार थामे
तुम हटो, मैं हूँ न
अकेले नहीं हो तुम
मैं हूँ तुम्हारे साथ
लगा दूंगा नैया किनारे
फिकरें छोड़ो यार
भरपूर जियो ज़िंदगी

रोको मत खुद को
नदी के पत्थर की तरह
बस बहने दो खुद को
किसी पत्ते की तरह
हल्के हो जाओ
ऐसे कि पता ही न चले
पत्थर थे या पत्ते
बस छोड़ दो खुद को स्वतंत्र
तो बस उसने भी यही किया

दुनिया वुनिया छोड़ कर
अब वह वो करती है
जो सोचती है
जो दिल तो दिल
आत्मा भी कहे
की तू ये कर
बस यही करना है
जो दिल में आया करती है
जिसे जो सोचना है सोचे
अब लोग क्या सोचेंगे
यह भी वह सोचेगी
तो लोग क्या सोचेंगे

कुछ तो काम दो उन्हें
खाली दिमाग शैतान का घर
तो उसने कर दिया बिजी
उनको उनके कामो में
कि अब तुम सोचो
जी भर के सोचो
भर लो ख़ुद को गारबेज से

अब वह शांति से
कर रही है
अपना काम…..
हां अपना काम
हो रही है आनन्दित
मदमस्त
पहली बार वह
पी रही है जिंदगी
अब तक तो बस
जी रही है जिंदगी
(चेतना विकास मिशन)

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