अग्नि आलोक
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आज़ादी का अमृत गीत

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आज़ाद वतन की माटी अब इतनी खामोश क्यु हैं ?
आज़ादी में रहने की, क्या हमको कोई आदत ही नही
आज़ाद चमन है आज़ाद गगन है पवन भी है आज़ाद अब
डर दिल में, भय मन में और सच कहने की आदत ही नही ।।

आज़ादी का पावन पर्व क्यों सुना सुना लगता है ?
अपनी शासन में रहना और जीना दूभर लगता है
ऐसा ही होना था तो क्यो वतन आज़ाद लिया हमने ?
आज़ादी लेने की खातिर हर दिन जिया मरा हमने ।।

बंदिश में गर रहना है तो आज़ादी का मतलब क्या ?
बात बात पर रंजिश हैं तो आज़ादी का मतलब क्या ?
बोलने पर पाबंदी हो तो आज़ादी को फेल ही समझो
हर बातों पर गर्दिश हैं तो आज़ादी का मतलब क्या ।।

आज़ादी के नारों से अब भय सा लगने लगता है
इन नारो के साये में कोई हमको ठगने लगता है
छीन लिया आज़ादी सबकी आज़ादी के नारों से
गाकर गीत आज़ादी का घर अपना भरने लगता है ।

बिमल तिवारी “आत्मबोध
देवरिया उत्तर प्रदेश

कौन आज़ाद हुआ

कौन आज़ाद हुआ?
किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी
मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ
खंजर आज़ाद है सीने में उतरने के लिए
मौत आज़ाद है लाशों पे गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ
काले बाज़ार में बदशक्ल चुडै़लों की तरह
कीमतें काली दुकानों पे खड़ी रहती हैं
हर खरीदार की जेबों को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ
कारखानों में लगा रहता है
सांस लेती हुई लाशों का हुजूम
बीच में उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ
रोटियाँ चकलों की कहवाएं हैं
जिनको सरमाये के दल्लालों ने
नफाखोरी के झरोखों में सजा रखा था
बालियाँ धान की गेहूं के सुनहरे खोशे
मिस्र-ओ-यूनान के मजबूर गुलामों की तरह
अजनबी देश के बाज़ारों में बिक जाते हैं
और बदबख्त किसानों की तड़पती हुई रूह
अपने अफलास में मूह ढांप के सो जाती है
कौन आज़ाद हुआ

अली सरदार जाफ़री


गुमनाम आजादी

गुमनाम शहीदों का कोई
चित्र तक नही है
लोक संसद में
इन्हीं असंख्य शहीदों के
वारिस राजधानी के चौराहों पर
पुलिस के डंडे खाते हुए
आज भी तिरंगा बेंच कर
आधा भोजन करके जी रहे हैं ।

सोशल मीडिया से प्राप्त


फासीवादी निजाम

कई दिनों से है हम भूखे,
नहीं मिला है अनाज का एक दाना।
कहते हो आजादी का अमृत – महोत्सव मनाओ,
जरा आजादी का मतलब तो समझाना।

नेता बोलते इस बार हमें जितना,
अगर हो समस्या तो बताना है।
अमीरों के झोली को भरकर,
जनता पर फर्जी मुकदमा चलाना है।

जाती के नाम पर देते हैं गाली,
साफ करते तेरी नाली।
जनता ने तो वोट भी डाली,
फिर नहीं मिलता है एक खूंट पानी।

यहां पानी पीने का संघर्ष,
बहुत ही पुराना है।
नहीं है अधिकार लिखने – बोलने का,
फिर भी झूठी आजादी मनाना है।

जातिवाद है, पूंजीवाद है,
झूठा है, मक्कार है, बढ़ता अत्याचार है।
शोषण हद से पार है,
क्या यही अधिकार है।

जातिवाद के तीर से,
हम हो गए हैं राख।
सामंतवाद है, लिंगवाद है,
हमारी परछाई भी पड़ जाए,
तो हो जाते हो नाश।

खंड – खंड कर दिया,
तुमने हम इंसानों को।
तोड़ेंगे हम तेरी,
सम्राजवादी दीवारों को।

किसानों को, मजदूरों को,
शहीद होते देखा है मैंने, नहीं पाया संख्या को गिन।
तुमने नहीं छोड़ा आदिवासी को,
छिन लिए तुमने उनके,
जल – जंगल – जमीन।

पेट पर तुमने लात मार दी,
खून के आंसू रोती है।
तब वे शरीर नुचवा कर,
पेट अपना पालती है।

बलात्कार है, मनुवाद है,
मानवता शर्मशार है।
आजाद देश में अब तो,
बोलना भी अपराध है।

भ्रष्टाचार खुलेआम है,
अनपढ़ लोग महान है।
आजाद सोच गुनाह है,
क्योंकि फासीवादी निजाम है।

राहुल दीपक


झुठी आजादी के शर्मनाक पिचहत्तर वर्ष

जन को करते निराश वर्ष..!
बीते पिचहत्तर ख़ाश वर्ष…!
सिसकी लेती मानवता का,
क्षण-क्षण पर करते ह्रास वर्ष.!!

हरियाने को था जो अंकुर,
पंद्रह अगस्त सैंतालिस को…!
लाखों वीरों का खून चूस,
था पुष्ट हुआ दशकों में जो…!
उस समूल आशा वट का,
करते सत्यानाश वर्ष………!

छोड़ी मां, छोड़ दई दादी,
छोड़ी पत्नी, सब लोभ मोह.!
चूमे फंदे, आजादी की,
आधी रोटी का रखा मोह… !
इन क्लीवों की ख़ातिर देखे,
होते सपनों के काश वर्ष….!!

तोपों की ठांय-ठांय गूंज,
गोली की ध्वनियां सीनों पर..!
आहत कर हृदय सदा अपना,
थे खड़े मौत के जीनों पर….!
आजादी के मतवालों की,
करते झूंठी सब आश वर्ष…!!

मज़हब, भाषा और जात छोड़,
कानूनों के बंटवारे हैं………!
जन-जन को प्रतिपल बांट रहे,
मानवता के हत्यारे हैं………!
निज क्षुधा, पिपासा साधन हित,
भाई की खाते लाश वर्ष……!!

हिन्दू-मुस्लिम में बंटा हुआ,
क्या हिन्दुस्तान हमारा है…?
मानवता की रक्षा करना,
क्या ख़ाक हमारा नारा है.. ?
करते नैतिकता का मर्दन,
मन को करते उदास वर्ष…!!

धन्नासेठों का हित रक्षण,
श्रम के शोषण की आजादी..!
नौजवां, किसानों के हिस्से,
मिलती आई बस बरबादी….!
संसद के चंद दलालों की,
नूराकुश्ती के ग्रास वर्ष……..!

निज अतीत निज गौरव का,
मिथ्याभिमान है राष्ट्रभक्ति…?
आयातित शस्त्र-शास्त्र सारे,
भूखी जनता है राष्ठ्रशक्ति…?
कापुरूषी काले पन्नों का,
बन गये आज इतिहास वर्ष..!!

सन्तोष ‘परिवर्तक’


क्रांतिपथ

सत्य संकट में पड़ा है,सच अब भी तो बोलो,
गुलाम बने रहोगे कबतक,बेड़ी अब तो खोलो.

फैला रहा है पंख अपने अंधकार इस धरती पर,
दीप हमारा कभी बुझे ना, अपनी ताकत तौलो.

हौसले बढ़ते जा रहे, दुनिया के नरपिशाचों के,
टूट पड़ो वज्र बनके,नारा इंकलाब का बोलो.

झूठे जालिम, झूठे हाकिम, झुठों का संसार बना,
सत्य का तलवार उठा, अब काल बनके डोलो.

चलता रहे शस्त्र सत्य का, झूठे, चोर, लूटेरों पर,
आगे ही बढ़ते रहना है, हाथ रक्त से धोलो.

क्रांति ही विकल्प अब, क्रांतिपथ पर बढ़े चलो,
समता का समाज बने, प्रेमरस ऐसा घोलो.

राम अयोध्या सिंह


चुप रहे तो यही अंजाम होगा

गौरी लंकेश को उड़ा दिया !
कलबुर्जी को मार दिया !
नरेन्द्र दाभोलकर गोविन्द पानसरे को
मौत के घाट उतार दिया !
जज लोया को ऊपर पहुंचा दिया !
गुजरात दंगों का सच बताने वाले पुलिस के आला अफसर को जेल !
वरवर राव को जेल !
गौतम नवलखा को जेल !
पी साईंनाथ को जेल !
सुधा भारद्वाज को जेल !
चोर को चोर कहने पर जेल !
न्यायतंत्र को बना कर हुकूमत का औजार !
अबकी बार प्रशान्त भूषण पर वार !
फासीवाद होता जा रहा खूंखार
अब भी चुप रहे यार !
तो खबरदार !
कल जब तुम पर होगा प्रहार !
याद रखना
तुम्हारी पुकार सुनने को
कोई बचेगा ही नहीं मेरे यार !

सोशल मीडिया से प्राप्त


काव्य अभिव्यक्ति: होता हैं शैतान

उज्ज्वला में बाँट दी, गैस चूल्हा घर में
सोचा नहीं जलेगा कैसे, उजाला घर में ?

रोटी, कपड़ा, दाना-पानी हसीं शाम दे दिया
पर जिनें का हाथों में कोई काम ना दिया

गरीबों के घर से अभी भी उठ रहा धुआँ
पैसे बिना शायद ओ सिलेंडर नहीं लिया

आमदनी अठन्नी, महँगाई चरम छू रहीं
अच्छे दिन’ में जीने की वहम निकल गई

विधना तोरे देश का अजीब है विधान
जो बन के आता रहनुमा, होता हैं शैतान ।।

बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश


आजादी किसकी

तथाकथित स्वन्त्रता के बाद
अब तो सरकार भी हमारी
फौज, पुलिस, कोर्ट, कानून सब अपना
संविधान भी अपना, सब कुछ अपना

आजादी के 75 बरस बीतने पर भी
इतनी बेरोजगारी क्यूँ
लगातार बढ़ती महंगाई क्यूँ
अभी भी जनता भूखी नंगी क्यूँ

अजय असुर

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