नई दिल्ली
तीन नए कृषि बिलों के खिलाफ किसान पिछले सात महीने से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन अब जब कोरोना से लड़ाई लंबी खिंच रही है तो आंदोलन कर रहे किसानों को भी संक्रमण की चिंता सताने लगी है। धरनास्थल पर किसानों की संख्या में अब कमी आ रही है। शायद यही वजह है कि अब किसान अपनी लड़ाई को ‘वर्चुअल’ करने की तैयारी में हैं। इसको लेकर किसान संगठन कई बैठक भी कर चुके हैं।
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत कहते हैं, ‘किसान हैं जमीन कैसे छोड़ेंगे, पर असम में बैठा किसान, तमिलनाडु का किसान, आंध्र प्रदेश का किसान, बिहार का किसान मतलब पूरे देश का किसान रोज के आंदोलन का हिस्सा कैसे बने, इसके लिए ठोस प्लान बनाया जा रहा है। हम सोशल मीडिया पर अपनी लड़ाई को और धार देंगे। वैसे भी यह सरकार तो ट्विटर पर ही चल रही है तो हमने सोचा, जमीन पर विरोध के साथ ट्विटर पर भी इन्हें घेरें।’
तो क्या जमीनी धरना बस प्रतीकात्मक रह जाएगा, इस सवाल पर टिकैत कहते हैं, ‘जमीन पर धरना चलता रहेगा, मई के बाद दूसरे राज्यों से भी किसान आने शुरू हो जाएंगे, लेकिन इस लड़ाई को अब हम चौतरफा बनाने की तैयारी में हैं। पूरे देश के किसान तो यहां के तीनों बॉर्डर पर आकर बैठ नहीं सकते, लेकिन यह लड़ाई तो देश के हर किसान की है। इसलिए सभी किसान अब सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।’
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत धरनास्थल को सैनिटाइज करते हुए।
क्या सरकारी रिपोर्ट से दबाव में आए किसान संगठन?
एक वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार की एक आंतरिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते कुछ महीनों में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी किसानों के प्रदर्शन से संबंधित हो सकती है। यह ट्रेंड पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में देखा जा सकता है। इससे पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी यही आशंका जताई थी। केंद्र की इस रिपोर्ट में बताया है कि कई प्रदर्शनकारियों ने पंचायत का गठन किया था। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के कई गांवों की यात्रा की थी। अगर इन लोगों ने बुनियादी सावधानी बरती होती, तो मामलो में तेजी से उछाल को टाला जा सकता था।
26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली में पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने हिस्सा लिया था। इसके बाद 18 फरवरी को रेल रोको अभियान में भी भारी संख्या में किसानों ने हिस्सा लिया था। कहा जा रहा है कि ये किसान जब अपने गांवों में वापस लौटे, तब वहां महामारी को लेकर आए। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं यह आरोप ही तो जमीनी धरने को सीमित कर वर्चुअल धरने को धार देने की वजह तो नहीं है?
राकेश टिकैत इस सवाल के जवाब में पूछते हैं, ‘हां, और चुनावी रैली से वापस अपने राज्यों में जाने वाले नेता तो कोरोना प्रूफ थे? दस लाख की भीड़ इकट्ठी करने वाले नेता हम पर आरोप मढ़ रहे हैं। हम तो लाठी-डंडे, गोलियों से भी नहीं डरे, फिर जुबानी आरोप से हम क्यों डरेंगे।’ दरअसल, हरियाणा और पंजाब के कई गांवों से यह खबर आई कि धरने से गए किसान कोविड पॉजिटिव पाए गए। उनके पहुंचने के कुछ दिनों बाद गांव में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला।
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच किसान आंदोलन में शामिल प्रदर्शनकारियों की संख्या घटी है। अब पहले की तरह टेंट में भीड़ भी नहीं है।
क्या है प्लान, कैसे होगा आभासी दुनिया से सरकार पर वार?
भाकियू के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, ‘ट्विटर, फेसबुक, वॉट्सऐप पर हम लगातार बने हुए हैं। जब से आंदोलन शुरू हुआ है। हम तकरीबन रोजाना सुबह 7 बजे से लेकर 8 बजे तक ट्विटर ट्रेंड कराते हैं। जैसे पिछले दो दिनों का ट्रेंड चेक करेंगे तो देखेंगे 18 मई को #BycottBJPforFarmers और 19 मई को #किसानों_की_गद्दार_मोदी_सरकार ट्रेंड कर रहा था। कई बार दिन में कई-कई घंटे किसान के मुद्दे ‘ट्रेंड’ करते हैं।
लेकिन, अब इस लड़ाई को और तेज करने की तैयारी है। पूरी प्लानिंग के साथ अब हम कुछ टॉपिक तय करेंगे और उन पर तय समय पर सोशल मीडिया पर लाइव बहस करेंगे। केवल किसान नेता नहीं, हरेक किसान जो कुछ कहना चाहता है, वह अपनी बात सोशल मीडिया पर लाइव होकर कहेगा। ‘वर्चुअल विरोध’ के तरीके को लेकर 21 मई को कई राज्यों के किसानों के साथ हमारी वर्चुअल मीटिंग है। मीटिंग के बाद विस्तार से प्लान बनाया जाएगा।
क्या किसान संगठनों के पास सोशल मीडिया की टीम है?
अगर किसान वर्चुअल आंदोलन की तरफ शिफ्ट होते हैं तो उनके सामने ऑनलाइन तकनीक के जरिए सरकार का मजबूती से विरोध करना एक मुश्किल टास्क होगा।
धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, आज तो घर-घर में बच्चे भी सोशल मीडिया में ट्रेंड हैं। किसान परिवार भी इसी दुनिया का हिस्सा हैं। ऐसे में अलग से कोई टीम नहीं, बल्कि किसान परिवार के ही कुछ युवा बच्चे इस जिम्मेदारी को संभालेंगे। जैसे सुबह ट्विटर पर क्या ट्रेंड कराना है, इसे लेकर शाम से रात तक तय किया जाता है। कई बार सुबह-सुबह भी मीटिंग होती है। फिर ट्रेंड कराया जाता है। पर की वर्ड, इंटरनेट पर क्या ट्रेंड कर सकता है, इस सब में युवाओं की सक्रिय भागीदारी होती है।
हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि वर्चुअल आंदोलन को लेकर किसान संगठनों में एकमत राय नहीं है। कुछ किसान संगठनों का मानना है कि इससे उनकी लड़ाई कमजोर हो जाएगी। वे सोशल मीडिया पर उतनी मजबूती से सरकार के खिलाफ विरोध नहीं दर्ज करा सकेंगे जिस तरह वे जमीन पर रहकर कर रहे हैं। उनकी यह चिंता बहुत हद तक जायज़ भी है। किसानों के लिए तकनीक के जरिए सरकार पर दबाव बनाना एक चैलेंजिंग टास्क होगा। दूसरी तरफ, सरकार के रवैये से एक बात तो साफ है कि वो अब किसानों के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं और आंदोलन का लंबा चलना सरकार के लिए फायदेमंद इसलिए भी है क्योंकि इससे आंदोलन कमजोर पड़ रहा है।