सोलापुर
17 फरवरी, 2023 की सुबह 8 बजे महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बोरगांव में रहने वाले 65 साल के किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण ने प्याज की 10 बोरियां एक पिकअप वैन में लादीं। 70 किलोमीटर दूर सोलापुर में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी प्याज मंडी पहुंचे। बोरियों में 512 किलो प्याज था। इसका भाव मिला 1 रुपए किलो या 100 रुपए क्विंटल।
प्याज के बदले 512 रुपए बने, लेकिन प्याज को मंडी लाने, ढुलाई और बोरे का खर्च आया 509 रुपए 51 पैसे। सारा हिसाब होने के बाद तुकाराम को घर ले जाने के लिए 2 रुपए 49 पैसे मिले। ये 2 रुपए भी चेक के जरिए मिले, जिसे कैश करवाने में 306 रुपए और खर्च करने होंगे।
ऐसी ही कहानी बंडू भांगे नाम के किसान की है। बीड जिले के दाउतपुर गांव में रहने वाले बंडू 1 फरवरी 2023 को 825 किलो प्याज लेकर सोलापुर मंडी पहुंचे थे। प्याज का भाव 1 रुपए किलो ही था। प्याज के बदले 825 रुपए बने।
तुलाई-ढुलाई और भाड़ा मिलाकर कुल 826 रुपए का खर्च आया। बंडू को 825 किलो प्याज के बदले जो रसीद मिली, उसके मुताबिक उन्हें जेब से एक रुपया मंडी वालों को देना था। यानी उन्होंने -1 रुपए की कमाई की। ये सब हो रहा था, तब मार्केट में प्याज का भाव 30 रुपए किलो था।
राजेंद्र तुकाराम चव्हाण को जिस 512 किलो प्याज के बदले में 2 रुपए मिले, वो उनकी महीनों की मेहनत थी। किसानों की आय दोगुना करने के सरकारी दावों के बीच मैं राजेंद्र से मिलने उनके गांव पहुंचा। सवाल यही था कि किसानों को अपनी प्याज के बदले कुछ नहीं मिल रहा, तो ये कौन सा सिस्टम है, जिससे वो आम लोगों के घरों तक पहुंचने में 20 से 30 रुपए किलो हो जाती है। इसके अलावा अब राजेंद्र चव्हाण और बंडू भांगे क्या करेंगे…
मुंबई से 420 किलोमीटर दूर बोरगांव तक पहुंचने के लिए एक कच्ची सड़क है। कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है। बार्शी से तुलजापुर के रास्ते पर उपले दुमाला गांव पहुंचने के बाद मैं 5 किलोमीटर पैदल चलकर किसान राजेंद्र चव्हाण के घर पहुंचा।
गांव के बाहरी हिस्से में खेतों के बीच उनका इकलौता मकान है। आधा बना हुआ, बिना प्लास्टर का घर। घर के बाहर एक पेड़ के नीचे राजेंद्र चव्हाण बैलों को चारा खिला रहे थे। इसके ठीक बगल में कई क्विंटल प्याज पड़ा था, उसमें से सड़ने की बदबू आ रही थी।
राजेंद्र चव्हाण के घर के बाहर कई क्विंटल प्याज पड़ा है। इसे बेचने की बजाय उन्होंने सड़ने के लिए छोड़ दिया, ताकि उसे खाद की तरह इस्तेमाल कर सकें।
रातों को जाग-जागकर फसल उगाते हैं, अब सड़ने के लिए छोड़ना पड़ा
राजेंद्र चव्हाण ने बताया कि मंडी में प्याज की कीमत इतनी कम है कि वहां जाने के बाद हमें जेब से पैसे देने पड़ रहे हैं। इशारे से बची हुई प्याज को दिखाते हुए बोले, ‘अब इसे कहीं नहीं ले जा रहे। सड़ने के लिए घर के बाहर फेंक दिया है। ये खाद में बदल जाएगा, तो इसे खेतों में डाल देंगे।’
फिर निराशा से कहते हैं, ‘इसे उगाने के लिए कई रातें जागकर बितानी पड़ीं, अब उसे फेंकने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा।’ उनकी आंखों में मुझे आंसू नजर आते हैं, वे अपने गमछे से उन्हें पोंछने लगते हैं।
मैंने 17 फरवरी की घटना पर सवाल किया तो तुकाराम ने बताया, ‘हमने मृगशिरा नक्षत्र (जनवरी की शुरुआत) में प्याज की फसल लगाई थी। पूरे परिवार ने मेहनत की। जमीन से निकालने के बाद इसे लेकर सोलापुर मंडी गया था। प्याज उगाने में 12-13 हजार का खर्च आया, लेकिन मेरा प्याज 100 रुपए क्विंटल के हिसाब से बिका। इतनी मेहनत के बदले, मुझे सिर्फ 2 रुपए का चेक मिला।’
राजेंद्र चव्हाण बताते हैं, ‘प्याज की बोली सूर्या ट्रेडर्स के लोगों ने लगाई थी। 512 किलो प्याज के बदले में 512 रुपए बने थे। हम्माली (मजदूरी) 40 रुपए 45 पैसे, तुलाई 24 रुपए 6 पैसे, मोटर भाड़ा (ट्रांसपोर्ट) 430 रुपए और बाकी खर्च 15 रुपए मिलाकर टोटल 509 रुपए 51 पैसे हो गए। 512 रुपए में से घटाने के बाद सूर्या ट्रेडर्स ने मुझे दो रुपए का चेक दे दिया।’
2 रुपए का चेक कैश कराने के लिए 306 रुपए देने होंगे
राजेंद्र चव्हाण कहते हैं, ‘घर में पत्नी, दो बेटे, बहू और पोते-पोतियां हैं। मेरा घर खेती से चल रहा है। हमारी महीनों की मेहनत के बदले 2 रुपए का चेक पकड़ा दिया। इसे कैश कराना हो तो मंडी के बैंक में ही कराना होगा। वो बैंक गांव से 70 किलोमीटर दूर है और वहां जाने-आने का खर्च ही 300 रुपए है।’
‘बैंक में KYC के लिए आधार कार्ड, पैन कार्ड और बैंक पासबुक की फोटो कॉपी लगती है। 6 रुपए इसमें भी लगेंगे। इन 2 रुपयों के लिए भी मुझे पहले 306 रुपए खर्च करने पड़ेंगे।’
राजेंद्र चव्हाण मंडी के सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘ये जो चेक मिलता है, वो भी 15 दिन बाद ही कैश कराया जा सकता है। आप बताओ कि अगर कोई इमरजेंसी आ जाए, तो हम अपने पैसे ही नहीं निकाल सकते। अनाज के लिए जब मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) है, तो सब्जियों के लिए क्यों नहीं?’
हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने इस साल प्याज की कम कीमतों को देखते हुए किसानों को एक क्विंटल पर 350 रुपए की सब्सिडी देने का ऐलान किया है, लेकिन तुकाराम को इसका भी फायदा नहीं होगा, क्योंकि ये सिर्फ मार्च और अप्रैल में प्याज बेचने वालों को ही मिलेगी।
‘ऐसा ही चलता रहा, तो अब प्याज की खेती नहीं करूंगा’
राजेंद्र चव्हाण बोलते-बोलते गुस्से में आ जाते हैं, कहते हैं, ‘ऐसे ही प्याज के भाव मिले, तो अब मैं आगे इसकी खेती नहीं करूंगा। मुझे मुआवजा नहीं चाहिए, मैं चाहता हूं कि प्याज का मिनिमम प्राइस 20-25 रुपए प्रति किलो तय कर दिया जाए। ज्यादातर किसानों ने अपना प्याज दिसंबर, जनवरी में ही बेच दिया था। सरकार अब सब्सिडी दे रही है, इसका फायदा किसानों को नहीं मिलने वाला।’
2 रुपए का चेक मिलने से नाराज राजेंद्र चव्हाण गांव के कुछ किसानों के साथ कस्बे के मेन मार्केट में तीन दिन तक भूख हड़ताल पर भी बैठे। कुछ रिपोर्टर आए और कुछ लोकल नेता। मदद किसी ने नहीं की, जब भूख से हालत बिगड़ने लगी तो भूख हड़ताल खत्म करनी पड़ी।
राजेंद्र चव्हाण को मिला 2 रुपए का चेक, जिसे उन्होंने लैमिनेट करवाकर रख लिया है।
एक एकड़ में प्याज उगाने पर खर्च होते हैं करीब 50 हजार
तुकाराम के बड़े बेटे अन्ना भी काफी निराश हैं। वे कहते हैं, ‘इतने दिन तक कड़ी मेहनत की, एक एकड़ में प्याज उगाने में हमारे 50 हजार रुपए खर्च हुए। इस बार बरसात ठीक हुई थी, इसलिए फसल भी अच्छी हुई थी। एक एकड़ में करीब 200 बोरी यानी 100 क्विंटल प्याज पैदा हो जाता है। ये अगर 10 रुपए किलो के हिसाब से भी बिकता है, तो हमें एक लाख रुपए तक मिल सकता है, लेकिन मंडी में इसकी कीमत 50 पैसे से 1 रुपए के बीच है।’
अन्ना आगे बताते हैं, ‘खेती के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रोजगार नहीं है। अब बच्चों को पढ़ाने के लिए भी पैसे नहीं है। खेत बेचने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आ रहा। सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को किसानों का हाल देखना चाहिए।’
राजेंद्र चव्हाण के परिवार ने अपनी बची हुई जमीन पर अंगूर की खेती भी की है। 15 दिन पहले ही ओले गिरे और ये फसल भी बर्बाद हो गई।
जिस बोरी में प्याज ले जाते हैं, वो 40 रुपए की, उसकी लागत भी नहीं मिलती
राजेंद्र चव्हाण के साथ तीन दिन तक अनशन करने वाले किसान यशवंत श्रीहरी कोकाटे ने भी प्याज उगाया था। वे बताते हैं, ‘60 हजार रुपए लगाकर प्याज की खेती की थी। एक्सपोर्ट क्वालिटी का प्याज था, लेकिन 4, 6 और 7 रुपए किलो से ज्यादा कीमत नहीं मिली।’
‘पूरी फसल बेचकर सिर्फ 30 हजार रुपए मिले। मंडी में हमसे जो प्याज 1 रुपए में खरीद रहे है, उसे ही हमारे शहर के मार्केट में 30 रुपए किलो बेचा जा रहा है। प्याज पर बिचौलियों को लाखों-करोड़ों में कमाई हो रही है।’
गांव के ही किसान सुजीत मोहन बोधले भी ऐसी एक कहानी सुनाते हैं। वे कहते हैं, ‘150 बोरी प्याज लेकर सोलापुर मंडी गया था। 2 दिन तक किसी ने नहीं खरीदा, खुले आसमान में बोरियों के ऊपर सोना पड़ा। यहां से हमारा प्याज चोरी हो जाता है, किसानों को खुद ही रखवाली करनी पड़ती है। जिस प्याज के बदले हमें 1 रुपए मिलते हैं, चोर उसे ही मंडी के बाहर 20-30 रुपए किलो में बेचते हैं। मंडी में न कोई सिक्योरिटी है और न ही CCTV, मंडी वाले ही चोरों से मिले हैं। हमारी शिकायत भी नहीं सुनी जाती।’
किसान सुजीत मोहन बोधले ने मंडी से प्याज चोरी का आरोप लगाया, इसके सबूत के तौर पर एक वीडियो मिला, जिसमें दो महिलाएं बोरियों से प्याज निकाल रही हैं।
सुजीत आगे बताते हैं, नीलामी के दौरान किसानों से भाव नहीं पूछा जाता। दलाल अपने हिसाब से रेट लगाता है। हमारे अच्छे प्याज को वे खराब बता कर दाम कम लगाते हैं। अगर विरोध करेंगे तो हमारा प्याज कोई नहीं खरीदेगा। हम सिर्फ प्याज उगाने के लिए हैं, असली मालिक वे ही होते हैं।’
सुसाइड करने वाले थे, पत्नी ने देख लिया तो बच गए समाधान
गांव में ही मेरी मुलाकात समाधान गोटे से हुई। समाधान 15 दिन पहले गले में फंदा डालकर सुसाइड करने वाले थे। वे बताते हैं, ‘दरवाजा बंद कर कुर्सी पर खड़ा हो गया था। खिड़की से पत्नी ने देख लिया और पड़ोसियों को बुला लिया। उन्होंने पकड़ लिया, इसलिए जिंदा हूं।’
मैं वजह पूछता हूं तो वे कहते हैं, ‘तीन एकड़ के बगीचे में 7 लाख रुपए खर्च कर अंगूर की खेती की थी। तूफ़ान आया और ज्यादातर अंगूर टूटकर गिर गए। जो बचे हैं, वो भी कोई नहीं खरीद रहा।’
कुछ देर रुककर कहते हैं, ‘मेरे पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं था। मेरी जान तो बच गई, लेकिन मेरे अंगूर खरीदने अब तक कोई नहीं आया। समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए। घर का खर्च है, बैंक का लोन है, इसकी भरपाई कैसे होगी।’
राजेंद्र चव्हाण का प्याज खरीदने वाले ट्रेडर का लाइसेंस कैंसिल
राजेंद्र चव्हाण और दूसरे किसानों से मिलने के बाद मैं सोलापुर मंडी पहुंचा। सुबह के 10 बजे थे। मंडी में मुझे प्याज की बोरियों पर बैठे तुलजापुर से आए किसान नानदेव पिंगले मिले। उन्होंने बताया, ‘114 बोरी प्याज बेचने आया हूं, 55 हजार का खर्च आया है। 5-6 रुपए किलो में खरीद रहे हैं, बेचने के बाद मुझे 15 हजार भी नहीं मिल रहे। इनमें से भी ढुलाई और ट्रांसपोर्ट माइनस करेंगे, तो मुझे क्या मिलेगा।’
मैं मंडी में दाखिल हुआ तो देखा कि जमीन पर रखी प्याज की बोरियों के चारों ओर कुछ लोग खड़े हैं और एक शख्स 1 रुपया, 4 रुपया, 10 रुपया चिल्ला रहा है। पूछने पर उसने बताया कि यह प्याज की नीलामी हो रही है। इस तरह से प्याज खरीदने-बेचने का चलन 100 साल से भी पुराना है।
बिचौलिये या दलाल प्याज की क्वालिटी के आधार पर बोली लगाते हुए किसान से इसे खरीदते हैं और बड़े व्यापारी को बेच दते हैं। बोली के दौरान प्याज उगाने वाला किसान सिर झुकाए खड़ा था और बोली लगाने वाला जबरदस्ती प्याज की कीमत अपने हिसाब से बता रहा था।
मैं सूर्या ट्रेडर्स पर पंहुचा, जिन्होंने राजेंद्र चव्हाण का प्याज खरीदा और बदले में 2 रुपए का चेक दिया था। कंपनी के ऑफिस पहुंचने पर मेरी मुलाकात इसके मालिक और सोलापुर एपीएमसी के व्यापारी नासिर खलीफा से हुई।
नासिर खलीफा ने कहा, ‘रसीद और चेक जारी करने की प्रोसेस कंप्यूटर से होती है। राजेंद्र चव्हाण का चेक पोस्ट-डेटेड था। चेक तो हिसाब के बाद ऑटोमैटिक प्रिंट होता है, हम उस पर दर्ज रकम नहीं देखते। हमने पहले भी इतनी छोटी रकम के कई चेक जारी किए हैं, इस मामले में हमें दोष देना गलत है।’
राजेंद्र की खबर मीडिया में आने के बाद सरकार ने सूर्या ट्रेडर्स का लाइसेंस रद्द कर दिया है।
खलीफा सफाई में कहते हैं, ‘प्याज का रेट उसकी क्वालिटी के हिसाब से तय होता है। राजेंद्र चव्हाण का प्याज सबसे खराब क्वालिटी का था। वे अच्छी क्वालिटी का प्याज भी बेच चुके हैं। दिसंबर से जनवरी के बीच वे हमें 3 लाख रुपए की प्याज बेच चुके हैं। हमने उनका ही प्याज 18 रुपए किलो भी खरीदा है।’
’17 फरवरी वाला प्याज खरीदने लायक ही नहीं था। हमसे गलती सिर्फ इतनी हुई कि हमने उन्हें 2 रुपए का चेक जारी कर दिया। अब वे इसे अपनी लाचारी बताकर दुनिया को दिखा रहे हैं। राजेंद्र चव्हाण ने 6 बार प्याज बेचा है।’
सूर्या ट्रेडर्स के पास 10 लाइसेंस, बिचौलिए अपना रास्ता निकाल लेते हैं
मैंने राजेंद्र चव्हाण को लाइसेंस सस्पेंड होने की बात बताई तो वे बोले, ‘इससे कुछ नहीं होगा। सूर्या ट्रेडर्स के पास कम से कम 10 लाइसेंस हैं। उसके बेटों, भाई और पत्नी के नाम पर भी लाइसेंस है। उसके पास इतना पैसा है कि वह सरकार और सिस्टम में बैठे लोगों का मुंह बंद कर सकता है।’
लोकल मार्केट में प्याज की कीमत ज्यादा कैसे
खेत से निकला प्याज किसान और बिचौलियों के बाद ट्रेडिंग कंपनी के पास पहुंचता है। दक्षिण के 6 राज्यों और नॉर्थ इंडिया के कुछ शहरों में प्याज की सप्लाई करने वाले सिद्धेश्वर भाउकर ने हमारे सामने ही मंडी से प्याज खरीदा।
मैंने उनसे प्याज के लोकल मार्केट में महंगा होने पर सवाल किया तो वे बोले, ‘सरकार बिना सोचे-समझे कदम उठाती है। सरकार ने प्रति क्विंटल 350 रुपए की सब्सिडी का ऐलान किया है। अब बाहरी राज्यों के किसान भी सोलापुर मंडी आ रहे हैं। प्याज ज्यादा है, तो किसानों को रेट और कम मिलेगा।’
मैं पूछता हूं कि क्या किसानों को मिल रहे इस कम दाम को कंट्रोल किया जा सकता है? वे जवाब में कहते हैं, ‘यह लगभग असंभव है। जब-जब सप्लाई बढ़ेगी, प्याज की कीमत में कमी आएगी। अगर सरकार अनाज की तरह प्याज की कीमतों पर भी MSP तय कर दे तो किसानों को राहत मिल सकती है।’
ब्रोकर ने कहा- किसान जानबूझकर मुद्दा बनाते हैं
सोलापुर मंडी में मेरी मुलाकात ब्रोकर धर्मराज गावड़े से हुई। वे कहते हैं, ‘कई लोग जानबूझकर खराब प्याज बेचते हैं और उसके बदले में मिलने वाले पैसों को अपनी बेचारगी का सबूत बताते हैं।’
बीड के किसान बंडू भांगे पर आरोप लगाते हुए वे कहते हैं, ‘उन्होंने तीन अलग-अलग अकाउंट से मेरे यहां प्याज बेचा। एक अकाउंट उनका था और दो अकाउंट उनके भाई और चाचा के नाम पर थे। बाकी दोनों को प्याज बेचने पर 65 हजार और 59 हजार की कमाई हुई, उन्हें -1 रुपए मिले। उन्होंने उसी को मुद्दा बना दिया।’
इंटरनेशनल एक्सपोर्ट नहीं होने से प्याज के दाम गिरे
2 रुपए के चेक विवाद पर मैंने सोलापुर कृषि उपज मंडी के चेयरमैन विजय कुमार देशमुख से बात की। उन्होंने बताया, ‘प्याज के दाम सिर्फ सोलापुर में ही कम नहीं हुए हैं, बल्कि पूरे देश में यही स्थिति है। यहां से प्याज बड़ी मात्रा में दूसरे देशों में जाता था, लेकिन इस बार एक्सपोर्ट में कमी आई है। पहले बांग्लादेश में यहां के प्याज की काफी डिमांड थी, लेकिन इस बार वहां भी एक्सपोर्ट नहीं हुआ है।’
देशमुख सोलापुर से BJP के विधायक भी है। उन्होंने बताया, ‘साउथ के स्टेट में भी अब किसान प्याज उगाने लगे हैं, सप्लाई ज्यादा होने के बावजूद डिमांड बहुत कम है। इस बार मौसम ने भी किसानों का साथ दिया, समय से बारिश होने के कारण अच्छी पैदावार हुई है। ज्यादा प्याज होने की सूरत में हमारे पास प्याज को स्टोर करने की कोई सुविधा नहीं है।’
‘हमारे यहां हर दिन कई लाख टन प्याज आता है। हर दिन 900 गाड़ी लोड होती है। अगर एक दिन भी प्याज को स्टोर कर यहां रखा गया, तो अगले दिन के लिए जगह नहीं बचेगी। हमारे यहां आने वाला लगभग पूरा प्याज बिक जाता है। हां, यह है कि ज्यादा आवक की वजह से इसका दाम बहुत कम रहता है।’
10 क्विंटल के बदले 2 रुपए देना सरकार की बेशर्मी
इस मामले को सबसे पहले उठाने वाले स्वाभिमानी शेतकर संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी कहते हैं, ‘राजेंद्र तुकाराम चव्हाण को सोलापुर मार्केट कमेटी में 10 बोरी प्याज बेचने पर कितना पैसा मिला? व्यापारी को दो रुपए का चेक देने में शर्म कैसे नहीं आई? सरकारों को शर्म नहीं आ रही है, ऐसी स्थिति में किसान कैसे रहेगा, बताइए। बाजार में प्याज का दाम कम होने से आम लोगों को फायदा जरूर हो रहा है, लेकिन किसान की आंखों से आंसू निकल रहे हैं।’
शेट्टी ने कहा, ‘राज्य सरकार को बताना चाहिए कि महाराष्ट्र किसानों की आत्महत्या से मुक्त कैसे होगा। शेट्टी ने कहा कि सरकार रेगुलर कर्ज चुकाने वाले किसानों को 50 हजार रुपए का अनुदान नहीं दे रही है। कृषि पंपों का बिजली कनेक्शन काटा जा रहा है। फसल बीमा का पैसा नहीं मिल रहा है। सरकार ने किसानों की मांगों पर ठोस फैसला नहीं लिया, तो संगठन विधानभवन पर मोर्चा निकालेगा।’
व्यापारी से रिटेलर के पास पहुंचते ही कई गुना बढ़ी प्याज की कीमत
एक रुपए में किसान से खरीदा प्याज बिचौलियों के हाथों से होते हुए व्यापारी तक पहुंचा और फिर व्यापारी ने इसे दूसरे राज्यों के आड़तियों और ऑनलाइन रिटेलर्स को बेच दिया। इसके बाद मैंने सोलापुर के बाजार में इसकी कीमत पता की।
सड़क किनारे ठेले पर अच्छा प्याज 20-22 रुपए और दुकान में 25-30 रुपए किलो बिक रहा था। एक नामचीन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर यही प्याज अलग-अलग शहरों के हिसाब से 20 से 32 रुपए के बीच बिकता दिखा।
इस बीच राजेंद्र चव्हाण ने 2 रुपए का चेक और मंडी से मिली रसीद लैमिनेट करवाकर घर की दीवार पर टांग दी है। वे किसानों की बदहाली के इस सबूत को हर आने-जाने वाले को दिखाते हैं।