प्रकरण नबंर 19585/2013 के माध्यम से छिन्दवाङा की एडवोकेट आराधना भार्गव और अन्य ने पेंच व्यपवर्तन परियोजना(माचागोङा बांध) के प्रभावितों के पुनर्वास और पर्यावरण को हुए नुकसान को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय पारीख के माध्यम से याचिका दायर किया था।5 सितंबर 2022 को इस सबंध में न्यायालय ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जबाव देने कहा और 10 अक्तूबर 2022 को अगली सुनवाई की तारीख दिया।पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा दिए गए जबाव में बताया गया कि पेंच व्यपवर्तन परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी 21 अप्रेल 1986 को दे दिया गया था।मंत्रालय ने यह भी बताया कि 20 मई 2005 को पर्यावरण मंत्रालय का क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल द्वारा निरिक्षण किया जा चुका है।इसलिए नया पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक नहीं है,क्योंकि परियोजना कार्य 1987- 1988 में शुरू हो चुका है।राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास से संबंधित कोई जबाव पेश नहीं किया और इसके लिए समय मांगा।
उपरोक्त जबाव के बाद न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचुङ और हीमा कोहली की बैंच ने 10 अक्तूबर 2022 की अपनी सुनवाई के बाद पर्यावरण और वन मंत्रालय और राज्य सरकार को दो प्रमुख बिन्दओं पर सरकार से विस्तृत जबाव मांगा है।पहला यह कि पर्यावरणीय मंजूरी के बाद पर्यावरण को हुए नुकसान को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने के लिए किये गए उपाय और दूसरा परियोजना प्रभावित गांव एवं आबादी के पुनर्वास के लिए किए गए परिपालन के सबंध में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा राज्य सरकार को विस्तृत हलफनामा पेश करने को कहा गया है।
एड. आराधना भार्गव ने इस याचिका में उच्चतम न्यायालय को बताया कि पेंच व्यपवर्तन परियोजना से प्रभावित 31 गाँव के किसान, जिनकी पूर्णतः या आंशिक भूमि अधिग्रहित की गई है, उन किसानो को सम्पूर्ण मुआवजा प्रदान नहीं किया गया है। गाँव के किसानो को परिसम्पति का मुआवजा भी नही दिया गया है। किसानों के खेत में जो पेड़ लगायें गये थे उनका भी मुआवजा नहीं दिया गया है।विस्थापित परिवार के किसानों के बच्चों को आज दिनांक तक रोजगार उपलब्ध नही कराया गया है! आदिवासी ग्राम जो पेंच व्यपवर्तन परियोजना में पूर्णतः डूब चुके हैं, एक भी परिवार को जमीन के बदले जमीन उपलब्ध नही कराई गई है। पुर्नवास स्थल पर मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है! आदिवासी जिनकी जमीन एवं मकान अधिग्रहित किये गए हैं, उन्हें किसी भी प्रकार का रोजगार भी उपलब्ध नही कराया गया है। पेंच व्यपवर्तन परियोजना से प्रभावित आदिवासी ग्रामों को कोई विशेष पैकेज भी नही दिया गया है और आदिवासी ग्रामों को सबसे कम मुआवजा दिया गया है। परियोजना से प्रभावित किसानो को उनके द्वारा आयकर, स्टांप शुल्क या फीस से भी छुट प्रदान नहीं की गयी है। परियोजना में एक एक गाँव से लगभग हजारो पेड़ काटे गये हैं परन्तु उनके एवज में पेड़ नहीं लगाये गए हैं। एडवोकेट आराधना भार्गव ने बताया कि परियोजना से प्रभावित किसान प्रतिदिन जिलाधीश कार्यालय में आकर अपनी समस्याओं से जिलाधीश को अवगत करा रहे हैं, किन्तु उनकी समस्याओं का निदान नहीं किया जा रहा है। परियोजना से प्रभावित गाँव में लगभग कच्चे मकान बने हुए है, बांध के किनारे होने के कारण नमी बने रहने के कारण मकान गिर रहे हैं, किन्तु उनका कोई मुआवजा किसानो को नहीं दिया जा रहा है। आवेदन पत्र देने पर कहा जाता है, कि परियोजना की फाईल बंद कर दी गई है, अब किसानों को कुछ नहीं मिलेगा ! पेंच नदी के किनारे बसें हुए गाँव में मछुवारों का मुख्य व्यवसाय मछली पालन तथा रेत और खेती था। पेंच बांध बनने के बाद मछुवारों को रेत खेती का कोई मुआवजा प्रदान नहीं किया गया तथा मछली के ठेका भी छिन्दवाड़ा के मछुवारों को नही दिया गया।मछली का ठेका सिवनी के व्यक्ति को दे दिया गया है। पुनर्वास निति में उल्लेख किया गया है कि जलाशय पर मत्सय उत्पादन और विपणन का अधिकार विस्थापितों को दिया जाना है । विस्थापित के युवाओं को रोजगार न दिये जाने के कारण उनका विवाह नहीं हो पा रहा है। युवाओं के पास रोजगार न होने कारण वे अत्यधिक मानसिक तानव से गुजर रहे हैं, तथा आत्महत्या करने पर मजबुर हैं।