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वन विभाग के अफसर को मिलनी थी सजा , कर दिया पुरस्कृत

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भोपाल। वन विभाग के अफसरान की कार्यशैली ही ऐसी है कि वह चर्चा में बना रहता है। चर्चा की वजह कोई उपलब्धि नहीं होती है, बल्कि विभाग के कारनामे होते हैं। ऐसा ही ताजा मामला है एक आईएफएस अफसर का है। उस पर जैसे ही छेडख़ानी जैसी गंभीर धाराओं में पुलिस ने मामला दर्ज किया, उसे निलंबित करने की जगह विभाग ने अतिरिक्त शाखा का प्रभार देकर पुरस्कृत कर डाला। इससे विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

दरअसल हाल ही में भारतीय वन सेवा के अधिकारी एपीसीसीएफ मोहन मीणा के खिलाफ 6 जनवरी को बैतूल में  प्रकरण दर्ज किया गया है। यह प्रकरण भारतीय दंड विधान की धारा 354 और 354 ए के तहत दर्ज किया गया है। इसके बाद उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है। यह मामला दर्ज होने के दूसरे ही दिन विभाग ने उनको मौजूदा जिम्मेदारियों के अतिरिक्त एक शाखा का और प्रभार थमाकर पुरस्कृत कर डाला। मीणा को प्रभार देने का यह आदेश पीसीसीएफ प्रशासन विवेक जैन के हस्ताक्षर से 7 जनवरी को जारी किया गया है। इस आदेश में एक अन्य अफसर का भी नाम शामिल है, जिन्हें अतिरिक्त प्रभार दिया गया है, लेकिन उनके साथ मीणा का नाम चौंकाने वाला था। हालांकि इसके पीछे दावा किया जा रहा है कि विभाग में एपीसीसीएफ स्तर के अधिकारियों के कमी के चलते प्रभार दिया गया है। मौजूदा तौर पर मीणा नीति विश्लेषण मूल्यांकन शाखा में पदस्थ है। इनको अनुसंधान विस्तार एवं लोकवानिकी शाखा का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।
तीन साल बाद दर्ज हुआ मामला
 6 जनवरी को बैतूल के गंज पुलिस स्टेशन में कार्यस्थल पर महिला प्रताडऩा की शिकायत पर  एपीसीसीएफ मीणा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। मामला दर्ज होने के पहले जिला न्यायालय के प्रथम व्यवहार न्यायाधीश के समक्ष पीड़िता ने 164 में बयान दर्ज कराए। यह मामला 2021 का है। तब एपीसीसीएफ मोहन मीणा बैतूल वन वृत में पदेन सीसीएफ के रूप में पदस्थ थे। पीड़िता द्वारा इस मामले में विभाग के साथ पुलिस से भी शिकायत की गई थी , लेकिन दोनों जगह से उसे निराश हाथ लगी थी , जिसके बाद न्यायालय की शरण ली गई। इस मामले में एक विधि विशेषज्ञ का कहना है कि इन धाराओं के तहत पुलिस को बिना वारंट आरोपी की गिरफ्तारी का अधिकार है। जमानत सक्षम मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के बाद मिल सकती है। बावजूद इसके पूरा दारोमदार परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

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