अग्नि आलोक

*राजेंद्र शर्मा के चार व्यंग्य*

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*1. रे दशानन तूने ये क्या किया!*

आचार्य नरसिंहानंद समाचार पाने के लिए बहुत व्यग्र थे। पर उनके कान जिस खबर को सुनने के लिए तरस रहे थे, वह आकर ही नहीं दे रही थी। टीवी चैनलों से लेकर, सोशल मीडिया तक, सब खंगाले जा रहे थे। दोपहर से शाम हुई। शाम ढल गयी और झुटपुटा हो गया। बाकायदा अंधेरा घिर आया, पर खबर नहीं आयी। बाकी सब खबरें आयीं। रावण के सबसे ऊंचे पुतले की खबर। प्रधानमंत्री के रावण दहन में राम की मदद करने की खबर। राजधानी की ही एक और रामलीला में श्रीमती सोनिया गांधी के एक और रावण पर तीर चलाने की खबर। राजधानी में ही किसी और रामलीला में मुख्यमंत्री आतिशी के रावण के पुतले को आग के हवाले करने की खबर। मैसूर दशहरे की खबर। कुल्लू दशहरे की खबर। यहां तक कि कहीं-कहीं दशहरे में रावण और मेघनाथ तथा कुंभकर्ण के अलावा कुछ फालतू पुतलों का दहन किए जाने की ; कहीं महंगाई का, तो कहीं बेरोजगारी का, कहीं भ्रष्टाचार  का तो, कहीं नारी पर अत्याचार का पुतला जलाए जाने की खबर भी। उसी पुतले के जलाए जाने की खबर नहीं थी, जिसका आचार्य जी ने गला फाड़कर आह्वान किया था — परधर्म पूज्यों का पुतला। 

आचार्य जी ने इतना बलिदान दिया। गर्जना में गला फाड़ा, दशहरे पर परधर्म-पूज्यों का पुतला जलाने का बाकायदा मुहूर्त घोषित किया, पुलिस हिरासत में जाना-छूटना भी किया, फिर भी नतीजा — सिफर का सिफर। रात होते-होते आचार्य ने एलान कर दिया — जरूर सनातन विरोधियों ने षडयंत्र रचकर, राक्षस दहन पूरा नहीं होने देने के जरिए, हमारी विजय दशमी को पराजय दशमी बनाने का दुस्साहस किया है। हमारी शस्त्र पूजा को चुनौती दी है। इसका प्रतिकार होगा ; याचना नहीं, अब रण होगा। सुबह से जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन होगा — आमरण विरोध प्रदर्शन।

सरकार तक खबर पहुंची, तो उसने जंतर-मंतर पर लाल कालीन बिछवा दिए। आचार्य जी ने मसनद संभालने के साथ ही सरकार को चेतावनी दे दी — सनातन-विरोधी षडयंत्र का पता लगाकर, षडयंत्रकारियों को फौरन सजा दो, वर्ना हम खुद सजा देंगे। संत सम्मेलन शुरू हो गया। संतों की गर्जना से आकाश गूंजने लगा। सरकार के दूत आने लगे। पहले छोटे अफसर आए। फिर बड़े अफसर। फिर और बड़े अफसर। फिर मंत्री आने लगे। अपने जैसे अनेक संतों से घिरे आचार्य जी ने पाप के राज में अन्न-जल ग्रहण नहीं करने का एलान कर दिया। सरकार पहले ही घुटनों के बल थी, अब साष्टांग हो गयी। ब्रह्म-दु:ख का पाप क्यों चढ़ाएंगे। आप तो आदेश करें, क्या करना है?

आचार्य जी अब तक संत समाज बन चुके थे। संत समाज ने मांग की — विजया दशमी को अपवित्र करने के षडयंत्र की उच्चस्तरीय जांच और दोषियों के साथ एन्काउंटर न्याय। मंत्री जी ने कहा, संतों का आदेश शिरोधार्य, बस अब प्रसाद ग्रहण करें और उपवास का त्याग करें। देर शाम सरकार ने विशेष जांच दल के गठन का एलान कर दिया। उधर तिरुपति के लड्डू में मिलावट की जांच और इधर विजया दशमी को अपवित्र करने के षडयंत्र की जांच।

विरोधियों ने विरोध जताया, यह सरकार क्या कर रही है, यह सरकार का काम नहीं है। सरकार हमलावर हो गयी — विपक्ष अपनी वोट बैंक पॉलिटिक्स से बाज आए, हम किसी को भी सनातन का अपमान नहीं करने देंगे। हां! अगर कोई षडयंत्र नहीं है, तो किसी को विरोध करने की क्या जरूरत है, जांच में सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

जांचकर्ताओं ने जांच शुरू की। कुछ नहीं मिला। जांचकर्ताओं ने और दूर तक जांच की, कुछ नहीं मिला। और देर तक जांच की, कुछ नहीं मिला। आचार्य ने संत समाज बनाकर फिर जंतर-मंतर पर आकर बैठ जाने की धमकी दी। सरकार ने हिंदू समाज से धीरज बनाए रखने की और सरकार पर भरोसा रखने की अपील की। उधर जांच अधिकारियों ने आचार्य से मुलाकात कर तब तक की जांच की प्रगति की जानकारी दी। बताया कि बताने को कुछ नहीं था। बताया कि रावण के साथ परधर्म पूज्यों के पुतले जलाने के उनके आह्वान को लोगों ने या तो सुना नहीं, सुना तो समझा नहीं और समझा, तो उससे कन्नी काट गए। किसी और ने नहीं, खुद रामलीला आयोजकों ने ही ऐसी रावणलीला करने से इंकार कर दिया। कई ने तो बाकायदा कहा कि हम रामलीला को ऐसे विकृत करने की इजाजत कैसे दे देते! यह तो रामलीला का सांप्रदायीकरण है। रामलीला तो हमारी सांस्कृतिक परंपरा है, संप्रदाय के विभाजन से ऊपर।

आचार्य उखड़ गए। जांच में जरूर गड़बड़ हुई है। उनके आह्वान के बाद भी विजया दशमी पर, लोग शस्त्र पूजन कर के रह जाएं और म्लेच्छों के खिलाफ शस्त्र ही नहीं उठाएं, यह असंभव है। ऊपर की मंजिल पर सरकार तो नहीं, पर नीचे-नीचे से पुलिस जरूर सनातन-विरोधी षडयंत्रकारियों से मिली हुई है। सनातनी हिंदू जाग रहा है, तो इन्हें कानून और व्यवस्था का डर सता रहा है। सनातनी ऐसी चिंताओं से डरने वाला नहीं है। वह विधर्मियों को उनकी औकात बताकर रहेगा। सरकार साथ दे तो भी ठीक, साथ नहीं दे तो भी ठीक।

जांच प्रमुख ने कुछ खीझकर कहा कि यह भी सुन लीजिए कि आप का मंदिर जहां है, उस इलाके की रामलीला में क्या हुआ? अब आचार्य जी के चौंकने की बारी थी। इलाके वालों तुम भी! जांच प्रमुख ने बताया कि रामलीला कमेटी में बाकायदा आचार्य की पुकार पर फालतू पुतले बनवाने, जलवाने पर विचार हुआ भी था। स्थानीय सेठ के समझाने-बुझाने पर कमेटी के बाकी लोग मान भी गए थे कि इस बार यह भी कर के देख लेते हैं। राम जी भी खुश, सरकार भी खुश। बजट भी पास हो गया था। पर ऐन मौके पर रावण अड़ गया। उसने साफ-साफ कह दिया कि अपने साथ ऐसे किसी का भी पुतला नहीं जलाने देगा। ऐसे ही पुतले जलाने हैं, दंगे-वंगे कराने हैं, तो अलग से जाकर कराते रहो, पर रामलीला में यह सब नहीं होगा। रामलीला के नाम पर यही सब करना है, तो मेरी क्या जरूरत है, मैं चला!

और रावण अड़ा सो अड़ा, राम-सीता भी उसके साथ हो गए। कहने लगे कि यह तो राम लीला नहीं हुई। यह तो रावणलीला से भी बदतर होगा। रावण में लाख बुराइयां थीं, पर वह किसी दूसरे के धर्म के पूज्यों को अपमानित करने नहीं गया और वह भी जानबूझकर। राम-रावण को एक साथ देखकर, बेचारे रामलीला कमेटी वालों को ही मानना पड़ा कि रावण दहन समेत, रामलीला तो वैसे ही होगी, जैसे हमेशा होती आयी है।

आचार्य का चेहरा लटका देखकर, जांच प्रमुख ने ही धीरज बंधाया ; कुछ भी हो, षडयंत्र की जांच चलती रहेगी। अगले महीने ही चुनाव है, उसके चार महीने बाद फिर चुनाव है। काश, एक देश, एक चुनाव हो जाता, तो पांच साल में एक बार ही इस सब का ख्याल रखना पड़ता!  

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*2. आयोग को गुस्सा क्यों आता हैॽ*

लीजिए‚ अब क्या चुनाव आयोग गुस्सा भी नहीं कर सकता। चुनाव में गड़बड़ी का रोना–धोना करने वालों पर अपना गुस्सा भी नहीं निकाल सकता और वह भी एकदम गांधीवादी तरीके से – चिट्ठी लिख कर। और चिट्ठी भी शिकायत करने वालों के बॉस को लिख कर! बताइए‚ हरियाणा में मतदान मशीनों की गड़बड़ी की शिकायत करने वालों को हड़काने के लिए‚ चुनाव आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष खरगे को जरा-सी चिट्ठी क्या लिख दी‚ विरोधियों ने शोर मचा दिया कि चुनाव आयोग ये क्या कर रहा हैॽ शिकायतजीवियों को धमका रहा है और क्या कर रहा हैॽ डरेंगे‚ तभी तो प्रेम करेंगे‚ आयोग से भी और देश से भी। तुलसीदास पहले ही कह गए हैं–भय बिनु प्रीति होइ नहीं देवा। चुनाव आयोग प्रीति होने की उम्मीद में‚ कम से कम बैरी की सेवा करने की गलती नहीं करने वाला है! 

और बेचारे चुनाव आयोग को गुस्सा आने पर ही इतना हंगामा क्यों हैॽ अब गुस्सा सब को आता है‚ खून सब का खौलता है‚ एक पब्लिक को छोड़ कर। मोदी जी का राज इस मामले में एक्स्ट्रा जनतांत्रिक है। गुस्सा खुद मोदी जी की नाक पर धरा रहता है। आये दिन कभी छाती, तो कभी ताल ठोक कर‚ विपक्ष वालों को धमकाते रहते हैं। हफ्ते–दस दिन में अपनी तरफ आयी गालियों का शिकायतनामा सुनाते रहते हैं। आलोचना–वालोचना करने वालों को उनके पुलिस वाले जेल पहुंचाते रहते हैं‚ सो अलग। मोदी जी को गुस्सा आता है‚ तो राज्य–राज्य के छोटे मोदियों को उनसे भी ज्यादा गुस्सा आता है। और गुस्सा कई बार अदालतों को भी आता है; ईडी–सीबीआई के मारे विपक्षी बार–बार जमानत मांगने चले आते हैं‚ तब। गुस्सा राज्यपालों को भी आता है‚ जब विपक्षी सरकारें न गिरती हैं‚ न बिकती हैं। गुस्सा एंकरों‚ भक्त फिल्म निर्माताओें‚ हाउसिंग सोसाइटी अंकलों‚ एनआरआई भारत भक्तों, अडानियों, अंबानियों‚ सब को आता है। सनातनी साधु–संतों का गुस्सा तो खैर आने–जाने के चक्कर में ही नहीं पड़ता‚ सनातन जो ठहरा। 

अब प्लीज ये मत पूछना कि चुनाव आयोग को विपक्ष पर ही गुस्सा क्यों आता है। बेचारे को यही सोच कर तो गुस्सा आता है कि मोदी जी गुस्सा करेंगे कि उसे गुुस्सा क्यों नहीं आया। गुस्सा आना जिंदा होने का लक्षण है। वर्ना कहीं मेवा बांटने के टैम पर मोदी जी भूल न जाएं। 

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*3. तूने ये क्या किया रे मीडिया वाले!*

देखा, देखा, ये मीडिया वाले कैसे एकदम से पल्टी मार गए हैं। बाकी तो बाकी, गोदी सवार मीडिया वाले भी। पार्लियामेंट के चुनाव तक सब ठीक था। जिस दिन तक नतीजे नहीं आए थे, उस दिन तक सब ठीक था। चीख-चीखकर चार सौ पार करा रहे थे। पर अब एकदम से पलट गए, चवन्नी से भी हल्के टहोके से। मोदी जी के नॉन बायोलॉजिकल होने तक का ख्याल नहीं किया। बताइए, बेचारों को एक्जिट पोल में भी हरा दिया। और चलो, दो राज्यों के चुनाव में एक राज्य में हरा भी दिया था, तो कम से कम दूसरे राज्य में तो जिता देते। फिफ्टी तो करा देते। पर नहीं, हरियाणा में तो हराया ही, जम्मू-कश्मीर में भी हरा दिया। बहाना ये कि हमें अपने सर्वे की इज्जत भी तो रखनी है। दो दिन बाद वोटों की गिनती में हमारे सर्वे के नतीजे मुंह के बल गिरे, तो हमारे सर्वे की क्या इज्जत रह जाएगी और हमारी भी क्या इज्जत रह जाएगी? अरे भाई तुम्हारी इज्जत, कमाई से भी ज्यादा जरूरी कब से हो गयी। क्या सोचते हैं, मोदी जी इसे माफ कर देंगे? मोदी जी इसे भूल जाएंगे? ये तो अपनी इज्जत की एक्स्ट्रा परवाह करेंगे और इनकी कमाई पर कोई आंच ही नहीं आएगी? क्या इन्हीं की इज्जत, इज्जत है, फिर भले ही, मोदी की इज्जत का फलूदा बन जाए।

अब ये झूठे बहाने कोई न बनाए कि दो दिन बाद तो असली नतीजे सामने आ ही जाने हैं; फिर, सिर्फ दो दिन के लिए झूठ बोलकर गुनाह बेलज्जत क्यों करना? पर न यह गुनाह बेलज्जत है और न दो दिन, सिर्फ दो दिन हैं। जिस गुनाह से अब तक कमाई की, इतनी लज्जत, बल्कि जन्नत मिली है, वह गुनाह अब अचानक बेलज्जत कैसे हो गया? रही बात दो दिन की तो, दो दिन कोई कम नहीं होते हैं। वोट डलने और गिनती होने के बीच के दो दिन में क्या-क्या नहीं हो सकता है? पर मान लो आम चुनाव की तरह, इस बार भी मोदी जी का नाम बाद में कोई चमत्कार नहीं कर पाए और नतीजा हार का ही आए, तब भी दो दिन कम नहीं होते हैं। हमारे यहां तो जिंदगी ही कुल चार दिन मानी गयी है। फिर मोदी जी की तो जीत का एक-एक पल, सदियों जितना लंबा है। सच पूछिए तो भक्त तो भक्त, मोदी जी के विरोधी भी, इन पलों की लंबाई के कायल हैं। बार-बार कहते हैं कि जितने दिन मोदी जी का राज रहेगा, तब तक देश बर्बाद रहेगा। फिर, नतीजे में असली हार से दो दिन, जी हां पूरे दो दिन पहले, भक्तों को हराने की और विरोधियों को जिताने की, गलती की माफी कैसे मिल सकती है।

फिर मीडिया वालों ने पल्टी सिर्फ वास्तविक हार से दो दिन पहले हराकर ही थोड़े ही मारी है। राम रहीम के पैरोल वाली पल्टी कैसे भूल गए। बेचारे ने जरा-सी भगवा पार्टी के लिए वोट डालने-डलवाने की अपील क्या कर दी, ऐसा शोर मचा दिया, जैसे भगवा पार्टी इसी से जीत जाएगी। इस पर इसका हल्ला और कि भगवाई हर बार चुनाव से ऐन पहले, राम-रहीम को पैरोल पर जेल क्यों छुड़वा देते हैं। फिर इस बार तो इसका भी शोर उठा कि राम रहीम को पैरोल पर पैरोल देने वाले जेलर को, भगवाइयों ने चुनाव कैसे लड़ा दिया? डैमोक्रेसी है भाई, सजायाफ्ता बलात्कारियों और उनके हमदर्दों को भी चुनाव में हिस्सा लेने का सब के बराबर अधिकार है। रही बात पैरोल की, तो यही क्या कम है कि राम रहीम को बार-बार पैरोल मिल रही है, बलकीस बानो के बलात्कारियों की तरह सीधे सजा माफी दिला देते तो! 

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*4. ये भूख, भूख क्या है?*

मोदी जी, भागवत जी गलत नहीं कहते हैं। भारत के खिलाफ विश्व स्तर पर षडयंत्र पर षडयंत्र हो रहे हैं। देखा नहीं, कैसे मोदी जी ठीक से हरियाणा की जीत का जश्न मना भी नहीं पाए थे, तब तक विश्व खाद्य सुरक्षा नापने वाले अपना ताजा विश्व भूख सूचकांक लेकर आ गए, पार्टी का मजा किरकिरा करने। और आते ही वही पुराना राग लेकर बैठ गए। खाद्य सुरक्षा के मामले में मोदी जी के अमृतकाल के बाद भी भारत की हालत गंभीर है। इस साल भारत भूख से परेशान दुनिया के 126 देशों में 105वें नंबर पर है। बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल वगैरह से भी पीछे। पर बांग्लादेश, श्रीलंका वगैरह की परवाह ही किसे है। हमारा असली मुकाबला तो पाकिस्तान से और अब अफगानिस्तान से भी है। और यह सचाई तो विश्व भूख सूचकांक वाले भी छुपा नहीं पाए हैं कि भारत में भूख, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से तो कम ही है। बच्चों के न्यून विकास या स्टंटिंग के मामले में जरूर अपना इंडिया नंबर वन पर है। वैसे बच्चों की लंबाई सामान्य से कम रहने से लेकर, आम तौर पर अल्पपोषण तक, सभी मामलों में दुनिया में भारत का डंका पिट रहा है। पर नंबर वन का पदक तो हमें सिर्फ बच्चों की स्टंटिंग ने ही दिलाया है। भूख के मामले में तो हम अब भी नंबर वन से पूरे 21 नंबर पीछे हैं।

खैर! मोदी जी की सरकार के रहते हुए, भारत को बदनाम करने के ऐसे षडयंत्र कभी कामयाब नहीं हो सकते हैं। विश्व भूख सूचकांक आया नहीं, सरकार ने उससे पहले ही एलान कर दिया था — हम एक बार फिर कह रहे हैं कि हमें विदेशियों का यह भूख सूचकांक मंजूर नहीं है। और इसलिए नहीं कि इस सूचकांक में भारत को हर बार बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे पिद्दी-पिद्दी से देशों से पीछे दिखा दिया जाता है। इसलिए कि विदेशियों के पैमाने से जब हमारी संतुष्टि को ही नहीं नापा जा सकता है, तो हमारी भूख को कैसे नापा जाएगा? आखिर भूख क्या है? संतुष्टि का अभाव ही तो भूख है। जो मन से संतुष्ट है, उसका पेट खुद ब खुद भर जाता है, बाकायदा डकारें तक आने लगती हैं, फिर चाहे कुछ खाने को नहीं भी मिले। पर यह जरा गहरे दर्शन की बात है, जिसे पश्चिम की पढ़ाई पढ़े नाप-जोख करने वाले, नापना तो छोड़िए, समझ भी नहीं सकते हैं। ऊपर से इन भूख नापने वालों को कन्फ्यूज करने के लिए, हमारे मंत्री तक दिन में कई-कई घंटे निराहार रह जाते हैं और इस तरह भूखों में खुद को गिना लेते हैं, दुनिया को यह दिखाने के लिए भूखों की यह गिनती कितनी गलत है। ब्रेक फास्ट और लंच मिस करने वाली सिलेंड्रेला को गिना जाएगा, तो झूठे ही भारत ज्यादा भूखा नजर आएगा!

फिर बात एक सिलेंड्रेला की नहीं, यह तो एक मिसाल है। भारत में योग जीवन शैली का हिस्सा है। और योग में, आहार से वियोग समेत तरह-तरह के वियोगों यानी त्याग का बड़ा महत्व है। साधारण जन जब मामूली योग करते हैं, उसमें आहार का मामूली वियोग तो करते ही हैं। और जो वजन घटाने का योग करते हैं, वे तो आहार वियोग का जमकर प्रयोग करते हैं। तो क्या उन सब को भूखों मेें गिन लिया जाएगा? इस तरह भूखों की गिनती बढ़ाकर, भारत को बदनाम किया जाएगा और वह भी तब जबकि उसकी योग की शिक्षा को आज सारी दुनिया अपना रही है! दुनिया हमारी योग की शिक्षा अपनाएगी, तो दुनिया में आहार वियोग की प्रवृत्ति भी बढ़ती जाएगी। फिर तो भूख सूचकांक वालों की गिनती हमारे भारत की तरह, बाकी दुनिया भर में भी एक मजाक बन जाएगी। लोग उन पर हंसेंगे — ये भूख, भूख क्या है? भूख सूचकांक वालों, अब तुम अपनी दूकान बढ़ा लो।                                              

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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