शशिकांत गुप्ते इंदौर
अर्थ के बिना सब व्यर्थ है।विकास की आयु अभी सात वर्ष ही है।छः माह की आयु में अन्न प्राशन हुआ।लगभग छः वर्ष की आयु में दूध के दांत गिर रहे हैं।नए दांत आ रहें हैं। विकास समझदार हो रहा है।वह नेकर पहनना छोड़ कर पतलून पहनने लगा है।सात वर्ष पूर्व तक विकास गुमशुदा की तलाश में चर्चित था।ऐसा स्वयंभू राष्ट्रवादियों के द्वारा विज्ञापित किया गया है।विकास को विकसित करने के लिए अर्थ की व्यवस्था ईंधन के माध्यम से प्राप्त की जा रही है।लोकतंत्र में जनता, सत्ताधीश होती है।सत्ताधीश का मतलब, जनता ही देश की मालिक है।
विकास के लिए, नोकर द्वारा मालिक की जेब खाली कर तिजोरी भरने का प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है।ईंधन के साथ *मय* के विक्रय से भी राजस्व प्राप्त किया जा रहा है।देश की बागडौर संस्कार,संकृति, राष्ट्रीयता,और धार्मिक आस्था का प्रशिक्षण प्राप्त अनुयायियों के हाथों में है।इंद्रदेवता के दरबार में आदिकाल से सूरा की उपलब्धता बेशुमार होती है।
सुंदरियों (अप्सराओं ) की सहज से उपलब्धता बारें में भी पौराणिक कथाओं में उल्लेख है।यह विषय “विषय” से जुड़ा है। ऐसे सब्जेक्ट पर Me too का भय बना रहता है।इसीलिए ऐसे विषय की चर्चा करना मतलब स्वयं की स्मृति को ही मलिन करनें जैसा होगा।आज से चौरासी माह पूर्व का जब स्मरण होते है।ऐसा लगता कि, चोरासी लाख योनियों को भोग कर,अच्छे दिनों के स्वप्न में लीन पन्द्रहलाख के झुनझुने की आवाज से जागकर भरतीय जनता ने मानव जीनव को अंगीकृत किया है।देर-आयद-दुरुस्त-आयद, इसे सरलता से समझने के लिए Better late than never.विकास होना चाहिए।
इसी उम्मीद पर देश की जनता,सहनशीलता की पराकाष्ठा को प्रमाणित करते हुए महंगा ईंधन खरीद रही है।महंगाई पर कोई हंगामा नहीं हो रहा है।चौरासी माह पूर्व महंगाई को डायन की उपमा देतें हुए महंगाई का विरोध हर्षोल्लास के साथ बाकयदा नृत्य करते हए किया जाता था।तात्कालिक समय में सम्भवतः महंगाई सच में डायन ही होगी।वर्तमान में महंगाई,विकास की बैसाखी बनी हुई है।एक ओर ईंधन दूसरी ओर लबरेज़ मय।खाद्य पदार्थो की महंगाई धनवानों को कभी भी खलती ही नहीं है।ग़रीबों की भूख तो नित नई योजनाओं की घोषणा मात्र से मिट जाती है।
मध्यमवर्गीय तो सहनशीलता के लिए पुरस्कृत है।अच्छे दिनों की नमकीन खिचडी विभिन्न प्रकार के वादें रूपी मसालों की छोंक लगाकर काठ की हंडी में पकाई जा रही है।मूहँ मीठा करने के लिए विभिन्न राज्यों के चुनावों के दौरान पूरे लावलष्कर के साथ शब्दों की चाशनी में डुबो कर वादें किएं ही जा रहें हैं।वादों की निरंतरता कभी भी खंडित नहीं होती है।विकास होगा यह निश्चित है। ज्वलनशील ईंधन और मदहोश करने वाले पदार्थ “मय” की बिक्री से प्राप्त राजस्व से विकास होगा।वर्तमान में माँ के द्वारा अपने बच्चों को इतना ही समझना है बच्चों अभी नमक से ही रोटी खा लो।अपने देश की अर्थ व्यवस्था पाँच खरब रूपयों की होने वाली है।तब निश्चित ही घी चुपड़ी रोटी खिलाऊंगी।सबका मालिक एक है।श्रद्धा रखो।सबूरी का फल मीठा होता है।
*तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार**उदासी मन काहे की करें*
शशिकांत गुप्ते इंदौर
*भैंस+लाठी-अक्ल और राजनीति*
भैंस मूक पशु है।भैंस बिन बजाने वालों को सबक सिखाती है कि, बिन की धुन पर सिर्फ नृतक नांच सकता है, या नर्तकी ही नांच सकती है, या नाग नांच सकता है।अक्ल और भैंस में कौन बड़की है और कौन छुटकी है? यह अनुत्तरीत प्रश्न है?वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में अक्ल के बारे यह कहा जा सकता है कि,कुछ लोगों के पास तो Surplus है।ऐसा उनका भ्रम होता है।किसी के पास अक्ल नदारद होती है।
बहुत से लोग भैंस और अक्ल में कौन बड़ी है? इस अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोजने में समय फ़िजूल ही व्यतीत करते हैं।बहुत से लोग,जो लोकतंत्र में कम विश्वस रखतें हैं,वे लाठी को सिर्फ पसंद ही नहीं करतें हैं,बल्कि लाठी को शस्त्र के रूप में मान्यता देतें हैं।राजनीति में भैंस और लाठी वाली कहावत को चरितार्थ करने के लिए प्रतिस्पर्धा की जाती है।इस प्रतिस्पर्धा में विचार,सिद्धांत, नीति,नियमों को ताक़ में रखा जाता है।
राजनीति में सलग्न लोग इस ताक में रहतें है कि, किसी भी तरह प्रतिस्पर्द्धा को जीतना है।इस प्रतिस्पर्द्धा को जीतने के लिए साम- दाम-दण्ड- भेद इन नीतियों का भरपुर उपयोग किया जाता है।साम-दाम-दंड और भेद को वापरने के लिए लगाई जाने वाली अक्ल के लिए राजनेता पारितोषिक के हकदार होतें हैं।अचानक एक व्यक्ति के दुष्चरित्र का स्मरण हुआ जिसका नाम नटवरलाल था।अपने देश में ऐसे व्यक्ति को भी महिमामण्डित किया जाता है।ऐसे व्यक्ति के दश्चरित्र को लोगों के जहन में जीवित रखने के लिए फ़िल्म निर्माता फ़िल्म बना कर नटवरलाल का नाम अमर कर देतें हैं।ऐसे व्यक्ति का नाम सदियों तक जीवित रखने के लिए ऐसे व्यक्ति के किरदार को निभाने के सदी के नायक भी अपनी कला को समर्पित कर देतें हैं।
राजनीति में स्वार्थ साधने के लिए बगैर किसी भेदभाव के एक ही लाठी से सभी को हांका जाता है।लाठी का कानून और व्यवस्था में भी बहुत महत्व है। देश मे किसी भी जगह हिंसक घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए लाठियों को बाकयदा आदेश देकर चार्च किया जाता है।लाठियों को चार्ज करने के लिए शांतिपूर्ण आन्दोलन करने वालों की पीठ, पैर, हाथों पर लाठी को बेरहमी से स्पर्श करवाकर किया जाता है।इसतरह का निर्णय लेने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की अक्ल तीव्रता से कार्य करती है।राजनीति में अक्ल,भैंस और लाठी के महत्व को समझना जरूरी है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर