अंततः दुनिया को गांधीजी के बताए शांति और अहिंसा के रास्ते पर ही आना पड़ेगा- उत्तम परमार
इंदौर। गाँधी एक ऐसे कालजयी व्यक्तितव का नाम है जिसने भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति का न केवल साक्षात्कर किया, उसकी तुलना में दुनियाभर के बाकी महापुरुष बोने साबित होते हैं। स्त्री- पुरुष के भेद को सबसे पहले खत्म गाँधी ने ही किया था।महिलाओं की भागीदारी के बगैर गाँधी के आंदोलन की कल्पना नहीं की जा सकती। गाँधी ने धर्म भेद और जाति भेद की अस्मिता को समाप्त किया और धर्म निरपेक्षता का झण्डा पूरी ताकत से बुलंद किया। यह बात 155 वीं गांधी जयंती के अवसर पर “गांधी का धर्मनिरपेक्ष भारत” विषय पर आयोजित व्याख्यान देते हुए वरिष्ठ गांधीवादी विचारक उत्तम भाई परमार ने कही।
व्याख्यान का आयोजन अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन, राममनोहर लोहिया सामाजिक समिति, केंद्रीय श्रम संगठनों की संयुक्त अभियान समिति, असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कॉंग्रेस और विचार मंच ने किया था।
परमार ने आगे कहा कि गाँधी विदेश से पढ़कर 1915 मे भारत आये और उन्होंने पूरे देश के गाँव -गाँव घूमे और यहाँ की गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी को बहुत करीब से देखा और अलग- अलग प्रयोग कर देश को जगाने का प्रयास किया, जिसमें वे सफल भी हुए।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन् में समाज वादी विचारक सुभाष खंडेलवाल ने कहा कि गाँधी व्यक्ति नहीं विचार थे। वे प्रयोगधर्मी नेता थे। उन्होंने सत्याग्रह का आविष्कार किया। गाँधी ने अबोले को बोल दिये और उसे समाज की मुख्य धारा से जोड़ा। वे धर्म निरपेक्षता के सबसे बड़े हामी थे।
गाँधीवादी विचारक अनिल त्रिवेदी ने कहा कि भारत हमेशा से धर्म निरपेक्ष रहा और यहाँ के आमजन को किसी धर्म या पंथ से कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। यह समस्या केवल सत्ताधारियों की है। कांग्रेस नेता
राकेश यादव ने कहा कि देश में नकली गाँधी वादियों की आज बाढ़ सी आ गई है जो अपने हितों के लिए गाँधी का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं जो चिंता का विषय है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के महासचिव अरविंद पोरवाल ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष भारत को हमने संविधान द्वारा अंगीकार किया है और आज देश में कतिपय ताकतों द्वारा इसे चुनौती दी जा रही है, जबकि गांधी ने एक कट्टर धार्मिक अनुयायी होते हुए भी धर्मनिरपेक्ष भारत की वकालत करते हुए कहा था कि धर्म मेरा निजी मामला है और राज्य का कोई धर्म नहीं होता। इस्राइल- फिलिस्तीन विवाद पर भी गांधी का स्पष्ट मत था कि अरबों का फिलिस्तीन पर उतना ही हक है जितना अंग्रेजों का इंग्लैंड और फ्रेंच लोगों का फ्रांस पर।
इस अवसर पर धर्मनिरपेक्ष भारत और इस्राइल-फ़िलीस्तीन विवाद पर गांधी के दर्शन और विचारों पर आधारित एक ब्रोशर का विमोचन भी किया गया I
इस मौके पर शर्मिष्ठा बनर्जी ने संगीत की धुन पर गाँधीजी का प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिये के बाद साहिर लुधयानवी का गीत सर झुकाने से कुछ नहीं होगा और नीरज की गजल अब तो कोई ऐसा मजहब चलाया जाए सुनाकर खूब दाद बटोरी।
अतिथि स्वागत फादर पायस, सुभाष रानाडे,योगेंद्र महावर ने किया। मिलिंद रावल, अशोक दुबे, रुद्रपाल यादव ने प्रतिक चिन्ह प्रदान किये। कार्यक्रम का संचालन विवेक मेहता ने किया। आभार माना श्याम सुंदर यादव ने।
इस मौके पर पदमश्री जनक पलटा राहुल निहोरे,शफी शेख, राम बाबू अग्रवाल, रामेश्वर गुप्ता सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।