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गप्पू जी आखिरकार सच बोल ही गए !

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-सुसंस्कृति परिहार 

साहिबे आलम इन दिनों विदेश यात्रा पर हैं जुलाई 2024 तक, उन्होंने (6 महाद्वीपों पर) 52 विदेश यात्राएँ की हैं, और 59 देशों की यात्रा की है।परंपरागत रूप से पीएम मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के पड़ोसी देशों को चुना है, जिससे इस बात का साफ संदेश गया कि भारत ने पड़ोसी देशों को महत्व देना शुरू कर दिया गया है। हाल ही में नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पर गए। वे जब रूस के राष्ट्रपति पुतिन के निवास पर पहुंचे तो उन्होंने कहा वे उनका रुस की जनता की तरफ़ से स्वागत  करते हैं।जब दुभाषिए ने। यह मोदीजी को हिंदी में बताया तो उन्होंने  धन्यवाद देने की बजाए कह दिया वे तो  गप्प मारने आए हैं। वह साहिब जी का मुंह ताकती रह गई।शायद पहली बार गप्पू जी ने पुतिन  के सामने सच बोला है।ऐसा लगता है यह उनके  प्रायश्चित का समय है इसलिए रुस की तरफ़ रुख द्विपक्षीय वार्ता के लिए किया है। 

भारतीय विदेश नीति को देखा जाए तो संदेश साफ दिए गए हैं कि भारत इस वक्त रूस के साथ भी उतना ही मजबूत संबंध रखना चाहता  है, जितना अमेरिका के साथ। पीएम मोदी ने खुद कहा है कि रूस भारत के सुख-दुख का साथी है…मतलब साफ है कि दोनों देशों के बीत संबंध अटूट हैं। ऐसे में इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है भारत और अमेरिका के रिश्ते भी बेहद मजबूत हैं। इसे इस तरह से भी देखा जा सकता है कि भारत एक साथ दो धुरी पर बिना किसी परेशानी के चल रहा है।उदाहरण के तौर पर रूस-यूक्रेन जंग के बीच पश्चिम की आपत्तियों के बावजूद भारत को रियायती कीमतों पर रूसी तेल मिल रहा है।

भारत ने रूस  पर लगे प्रतिबंधों और एक देश पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए रक्षा खरीद में भी विविधता लाना शुरू कर दिया है, लेकिन उसे रूस से अब भी लंबे समय तक कई हथियारों के पार्ट्स की जरूरत है। इसके अलावा भारत को रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणालियों के दो स्क्वाड्रन भी चाहिए हैं। भारत की चिंता यह भी है कि रूस, चीन के साथ संवेदनशील तकनीक साझा कर सकता है। इसके अलावा यह भी डर है कि रूस, चीन या पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति में स्पेयर की आपूर्ति  धीमी कर सकता है। इसलिए, रूस और पश्चिम के बीच संबंधों को संतुलित करना नई सरकार के लिए महत्वपूर्ण है।

बदलती हुई दुनिया के  संबंधों को मजबूत बनाने के लिए वार्षिक शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण साधन रहे हैं।  भारत के सामने सबसे दुविधा यह है कि वह प्रौद्योगिकी और निवेश के लिए पश्चिम पर अधिक निर्भर है। ऐसे में भारत रूस से नजदीकी दिखाकर पश्चिम को नाराज नहीं करना चाहता है। यह जगजाहिर है कि 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद पश्चिम के साथ  का तनाव बढ़ा है। अब रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है और रूस चीन की तरफ बढ़ा है। रूस का चीन की तरफ झुकना भारत के लिए चिंताजनक है लिहाजा भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को विस्तार देते रहना होगा।

रूस में पीएम मोदी ने जो कहा उससे भी संकेत साफ मिलते हैं। पीएम मोदी ने मॉस्को में कहा ‘रूस में सर्दी के मौसम में तापमान कितना भी माइनस में नीचे क्यों ना चला जाए लेकिन भारत और रूस की दोस्ती हमेशा प्लस में रही है, गर्मजोशी भरी रही है।’’ उन्होंने कहा कि यह रिश्ता पारस्परिक विश्वास और सम्मान की मजबूत नींव पर बना है। हमारे रिश्तों की दृढ़ता अनेक बार परखी गई है और हर बार हमारी दोस्ती बहुत मजबूत होकर उभरी है।

बदलाव की जो हवा चली उसी का प्रतिफल कि मोदी जी की रुझान देश के सबसे विश्वसनीय मित्र देश रूस की ओर बढ़ी है।अब देखना यह है , कहीं किसी दबाव में ये सब सचमुच गपबाजी ही ना रह जाए।

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