विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन
भारत में मानसून के आते ही प्राकृतिक आपदाओं की बाढ़ आ जाती है। मानसून के साथ ही आई बाढ़ कई राज्यों की तबाही को कई गुना बढ़ा देती है। हर साल लाखों लोग बेघर हो जाते हैं, हजारों घर नष्ट हो जाते हैं, कई हजार हैक्टेयर में फसल तबाह हो जाती है। जानमाल की हानि, इमारतों व घरों का जलमग्न होना, जन स्वास्थ्य को नुकसान, फसलों और खाद्यान्न पूर्ति पर प्रभाव इसके कुछ बुरे पहलू है। इसीलिए हम देश में बाढ़ से आई आर्थिक तबाही और 07 दशक के सैलाब काल की व्याख्या कर रहे हैं और ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है या फिर सिस्टम की नाकामी है। भारत में प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ हर साल सबसे ज्यादा कहर बरपाती है। देश में प्राकृतिक आपदाओं के कुल नुकसान का 50 प्रतिशत केवल बाढ़ से होता है। 07 दशक में देश को बाढ़ से 4 लाख 69 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। ऐसे में सवाल है कि क्या इसे रोका जा सकता है। दरअसल देश के ज्याादातर राज्यों में बाढ़ तबाही मचाती है। भारत विश्व का दूसरा बाढ़ प्रभावित देश है। बाढ़ आने के तीन प्रमुख कारण यह है कि- पहला तो ये है कि जो नदियां होती हैं उनके तल में कुछ अवसर पैदा हो जाए तो उससे क्या होता है कि बाढ़ आ जाती है, दूसरा कारण यह है कि बांध नहीं बनाए जाते हैं और नदियों में अगर जल की अधिकता होती जाए और उसके पानी को नहीं निकाला ना जाए स्टार्ट न किया जाए तो बाढ़ आने का एक कारण यह भी होता है और तीसरा है कि बारिश हद से अधिक हो जाए।
हाल ही में हमने मध्य प्रदेश के ग्याएलियर संभाग में आयी भीषण बाढ़ को देखा है। बाढ़ ने एक सप्ता ह तक कैसे तांडव मचाया सबने देखा है। हम कह सकते हैं कि यह बाढ़ भले ही प्राकृतिक आपदा रही हो लेकिन कहीं न कहीं इस आपदा के पीछे मानवीय गलतियों की भी अनदेखी नहीं कर सकते हैं। बाढ़ चंबल, सिंधु और सहायक नदियों में आयी थी। हम जानते हैं कि ज्यायदा बारिश होने के कारण इन नदियों पर बने बांधों से लगातार पानी छोड़ा गया। पानी छोड़ना मजबूरी थी। फिर हम कैसे कह सकते हैं कि बाढ़ मानवनिर्मित नहीं होती है।
जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ देश में पिछले साढ़े 6 दशकों के दौरान बाढ़ से सालाना औसतन 1,654 लोगों की मौत हुई और 92,763 पशुओं की जान गई। इससे सालाना औसतन 71.69 लाख हैक्टेयर इलाक़े पर असर पड़ा और तकरीबन 1,680 करोड़ रुपए की फ़सलें तबाह हो गईं। बाढ़ से सालाना 12.40 लाख मकानों को नुक़सान पहुंचा। साल 1953 से 2017 के कुल नुक़सान पर नज़र डालें, तो देश में बाढ़ की वजह से 46.60 करोड़ हैक्टेयर इलाक़े में 205.8 करोड़ लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इस दौरान 8.06 करोड़ मकानों को नुक़सान पहुंचा है। अफ़सोस की बात है कि हर साल बाढ़ से होने वाले जान व माल के नुकसान में बढ़ोतरी हो रही है, जो बेहद चिंताजनक है।
पिछले 07 दशकों में देश में अनेक बांध बनाए गए हैं, साथ ही पिछले क़रीब 3 दशकों से बाढ़ नियंत्रण में मदद के लिए रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना व्यवस्था का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन संतोषजनक नतीजे सामने नहीं आ पा रहे हैं। बाढ़ से निपटने के लिए 1978 में केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया था। देश के कुल 32.9 करोड़ हैक्टेयर में से तक़रीबन 4.64 करोड़ हैक्टेयर भूमि बाढ़ प्रभावित इलाक़े में आती है। देश में हर साल तक़रीबन 4,000 अरब घनमीटर बारिश होती है। हैरत की बात यह भी है कि बाढ़ एक राष्ट्रीय आपदा है, इसके बावजूद इसे राज्य सूची में रखा गया है। इसके तहत केंद्र सरकार बाढ़ से संबंधित कितनी ही योजनाएं बना ले, लेकिन उन पर अमल करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है। प्रांतवाद के कारण राज्य बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर पाते। एक राज्य की बाढ़ का पानी समीपवर्ती राज्य के इलाक़ों को भी प्रभावित करता है। मसलन हरियाणा का बाढ़ का पानी राजधानी दिल्ली में छोड़ दिया जाता है जिससे यहां के इलाक़े पानी में डूब जाते हैं।
राज्यों में हर साल बाढ़ की रोकथाम के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं, मगर प्रशासनिक लापरवाही की वजह से इन योजनाओं पर ठीक से अमल नहीं हो पाता। नतीजतन, यह योजनाएं महज़ काग़जों तक ही सिमटकर जाती हैं। हालांकि बाढ़ को रोकने के लिए सरकारी स्तर पर योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनमें बाढ़ प्रभावित इलाकों में बांध बनाना, नदियों के कटान वाले इलाक़ों में कटान रोकना, पानी की निकासी वाले नालों की सफ़ाई और उनकी सिल्ट निकालना, निचले इलाक़ों के गांवों को ऊंचा करना, सीवरेज व्यवस्था को सुधारना और शहरों में नालों के रास्ते आने वाले कब्ज़ों को हटाना आदि शामिल हैं।
बाढ़ से नुकसान का अंदाजा लगाना मुश्किंल
ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश के बाद भारत ही दुनिया का दूसरा सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त देश है। देश में कुल 62 प्रमुख नदी प्रणालियां हैं जिनमें से 18 ऐसी हैं, जो अमूमन बाढ़ग्रस्त रहती हैं। उत्तर-पूर्व में असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तरप्रदेश तथा दक्षिण में आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु बाढ़ग्रस्त इलाके माने जाते हैं, लेकिन कभी-कभार देश के अन्य राज्य भी बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। पश्चिम बंगाल की मयूराक्षी, अजय, मुंडेश्वरी, तीस्ता और तोर्सा नदियां तबाही मचाती हैं। ओडिशा में सुवर्णरेखा, बैतरनी, ब्राह्मणी, महानंदा, ऋषिकुल्या, वामसरदा नदियां उफ़ान पर रहती हैं। आंध्रप्रदेश में गोदावरी और तुंगभद्रा, त्रिपुरा में मनु और गुमती, महाराष्ट्र में वेणगंगा, गुजरात और मध्यप्रदेश में नर्मदा नदियों की वजह से इनके तटवर्ती इलाक़ों में बाढ़ आती है। बाढ़ से हर साल करोड़ों रुपए का नुक़सान होता है, लेकिन नुक़सान का यह अंदाज़ा वास्तविक नहीं होता। बाढ़ से हुए नुक़सान की सही राशि का अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है, क्योंकि बाढ़ से मकान व दुकानें क्षतिग्रस्त होती हैं। फ़सलें तबाह हो जाती हैं। लोगों का कारोबार ठप हो जाता है। बाढ़ के साथ आने वाली बीमारियों की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं पर भी काफ़ी पैसा ख़र्च होता है। लोगों को बाढ़ से नुक़सान की भरपाई में काफ़ी वक़्त लग जाता है। यह कहना ग़लत न होगा कि बाढ़ किसी भी देश, राज्य या व्यक्ति को कई साल पीछे कर देती है। बाढ़ से उसका आर्थिक और सामाजिक विकास ठहर जाता है इसलिए बाढ़ से होने वाले नुक़सान का सही अंदाज़ा लगाना बेहद मुश्किल है।
बाढ़ के प्रमुख कारण
-वनस्पतियों का विनाश वनस्पतियां बाढ़ के प्रभाव को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसीलिए वनस्पति विहीन धरातल वर्षा के जल को नियंत्रित करने में असमर्थ होता है, परिणामस्वरूप तीव्र बहाव के कारण भूमिक्षरण भी अधिक होता है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विश्व के प्रायः सभी देशों में काफी तीव्रगति से वनों का विनाश हुआ है।
-वर्षा की अधिकता:- जब भी कहीं सामान्य से अधिक वर्षा और लगातार हो जाती है तो अचानक पानी फैल जाता है और बाढ़ आ जाती है।
-नदी की तली में अत्यधिक मलबा का जमाव जब किसी मानवीय कारण से व प्राकृतिक कारण से भी नदी की तली में मलववादी जा निक्षेप हो जाता है तो नदी की गहराई काम हो जाती है। परिणामस्वरूप थोड़ी से भी वर्षा होने से नदी का जल फैल जाता है और फिर बाढ़ आ जाती है।
-मानव निर्मित अवरोध: तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ को मानव निर्मित कारकों का परिणाम माना जाता है।
-वनों की कटाई: पेड़ पहाड़ों पर मिट्टी के कटाव को रोकने और बारिश के पानी के लिये प्राकृतिक अवरोध पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बाढ़ नियंत्रण के उपाय कारण और निवारण
भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। यद्यपि इसका मुख्य कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता तथा वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह है, परंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है। बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आंकलन की ज़रूरत है। सामान्यतः भारी वर्षा के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है। लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम हैं। जहाँ संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपायों के माध्यम से बाढ़ एवं सूखे जैसी जल संबंधी आपदाओं को रोकने के लिये हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये, वहीं बाढ़/सूखे से निपटने के लिये तंत्र सहित पूर्व तैयारी जैसे विकल्पों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। साथ ही प्राकृतिक जल निकास प्रणाली के पुनर्स्थापन पर भी अत्यधिक ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है।
बाढ़ों का नियंत्रण
बाढ़ों को कई प्रकार से नियंत्रित किया जा सकता है। वृक्षारोपण करके, बहकर आने वाले जल की मात्रा कम करने से बाढ़ के पानी का स्तर भी घट जायेगा। जंगल बारिश के पानी को भूमि के अंदर जाने का रास्ता देते हैं। इससे भूमिगत जल स्तर पुनः स्थापित होता है और पानी का व्यर्थ बहना कम हो जाता है। बांधों के निर्माण से पानी का भंडारण होता है और बाढ़ के जल में कमी आती है। बांध पानी को एकत्रित कर सकते हैं, इस कारण पानी नीचे नदियों तक नहीं पहुँच पाता। यदि बांध में एकत्रित पानी सीधा नदियों तक पहुँचे तो बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। बांधों से पानी को नियंत्रित रूप में छोड़ा जाता है। नदी/नहर/नालों से गाद निकालकर उन्हें गहरा करने से और तटों को चौड़ा करने से उनमें अधिक पानी भरने की धारण क्षमता बढ़ जाती है। यदि बाढ़ नियंत्रण की उचित योजना और उचित प्रबन्धन तरीकों का नियोजित ढंग से पालन करें तो बाढ़ से होने वाली क्षति और जान-माल की हानि को काफी हद तक रोका जा सकता है और कम किया जा सकता है।
हमारे देश में भी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहना होगा। इसके लिए जहां प्रशासन को चाक-चौबंद रहने की ज़रूरत है, वहीं जनमानस को भी प्राकृतिक आपदा से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। स्कूल-कॉलेजों के अलावा जगह-जगह शिविर लगाकर लोगों को यह प्रशिक्षण दिया जा सकता है। इसमें स्वयंसेवी संस्थाओं की भी मदद ली जा सकती है। इस तरह प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुक़सान को कम किया जा सकता है।