अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

पैरेंटिंग का पाठ पढ़ाती है गुलजार की ‘किताब’

Share

वीरेंद्र बहादुर सिंह

1977 में आई फिल्म किताब में एक दृश्य है। फिल्म का ‘हीरो’ बाबला (मास्टर राजू श्रेष्ठ) बीमार हो जाता है। उसे देखने आए डॉक्टर (नासिर हुसैन) पिता निखिल गुप्ता (उत्तम कुमार) से कहते हैं, ‘टेंशन की वजह से बीमार हो गया है।’ बहन कोमल गुप्ता (विद्या सिन्हा) डॉक्टर से पूछती हैं, ‘इतने से बच्चे को क्या टेंशन हो सकती है?’ डॉक्टर ने कहा, ‘बच्चों को टेंशन बहुत सख्त होती है। वेरी इंटेंसिव। डोंट टेक देम फार ग्रांटेड।’ कोमल ने कहा, ‘अभी से यह हाल है… बड़ा होकर भार झोकेगा।’

डॉक्टर ने कहा, “मिसेज गुप्ता, हम बच्चों की तालीम में बहुत गलतियां करते हैं… टीचर्स भी…माँ-बाप भी… बच्चों को जिंदगी से डरा कर रखते हैं कि पढ़ो, नहीं तो ठेला खींचोगे, भार झोंकोगे, जैसा कि आपने अभी कहा। जिंदगी क्या हौवा है या राक्षस है, जिसका बड़ा होकर मुकाबला करना होगा। हम यह क्यों नहीं कहते कि जिंदगी जुलियर की तरह खूबसूरत है, उसे पाने के लिए अपने आप को काबिल बनाओ, जिंदगी एंज्वाय करने के लिए है, पढ़-लिखकर तैयार हो जाओ। बड़ा होकर बड़ा मजा आएगा। बड़ी निगेटिव एप्रोच है हमारी।’

बच्चों और वयस्कों की दुनिया के बीच कितना अधिक अंतर होता है, यह बताने के लिए गुलजार ने ‘किताब’ फिल्म बनाई थी और इन संवादों में फिल्म की कहानी का मर्म था। गुलजार क्यों एक शानदार और संवेदनशील कहानीकार हैं, इसका प्रमाण एक तरफ ‘मेरे अपने’ की आक्रामकता या ‘आंधी’ की गंदी राजनीति से मिलता है तो दूसरी ओर शरारती बच्चों की परिचय और किताब थी, जिसमें उन्होंने वयस्कों की जटिल दुनिया को बच्चों की आंखों से देखने का प्रयास किया था।

‘किताब’ में बाबला गाँव में माँ (दीना पाठक) के साथ रहता है। माँ उसे शहर में उसकी बहन कोमल के पास पढ़ने के लिए भेजती है। शहर में वह पप्पू (मास्टर टिटो) के साथ दोस्ती करता है। दोनों दोस्त पढ़ने की बजाय शहर में घूमते हैं और मजे करते हैं। बहन और उसके पति उसे टोकते रहते हैं। बाबला को लगता है कि बड़े लोग उसे समझते नहीं। इसलिए वह ट्रेन से माँ के पास भाग जाता है। उसके पास टिकट नहीं है, इसलिए टिकटचेकर उसे रास्ते में उतार देता है।

अंजान रेलवे स्टेशन पर ठंड की रात में वह एक निराधार महिला की गुदरी में घुसकर सो जाता है। सुबह वह उस महिला के बर्तन से पैसे निकाल कर कुछ खाने बाजार जाता है। वह लौटकर आता है तो पता चलता है कि महिला मर गई है। वह घबरा जाता है और पैसे वापस रखकर माँ के घर की ओर भागता है। वहां माँ, बहन और जीजाजी बाबला की चिंता में उसकी राह देख रहे हैं। बाबला वचन देता है कि वह निष्ठा के साथ पढ़ेगा और किसी तरह का खेल-मजाक नहीं करेगा।

गुलजार के नाम पर ताबड़तोड़ जिन फिल्मों का नाम होठों पर आ जाएं, उसमें ‘किताब’ का नाम शायद अंत में आएगा। फिर भी यह एक ऐसी फिल्म है, जो व्यक्तिगत रूप से गुलजार की फेवरेट लिस्ट में सबसे ऊपर है। इसका एक कारण है। ‘किताब’ वैसे तो वयस्कों की दुनिया में भटक रहे बाबला की कहानी थी, पर इसमें ऐसे हर बच्चे (और इवन बड़े हो गए) की अपनी कहनी दिखाई देती थी, जो माँ-बाप से दूर रहकर शहर का अनुभव चख चुके थे। ऐसा ही अनुभव गुलजार का भी था। संपूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार अविभाजित भारत के झेलम जिले के दिना गांव में पैदा हुए थे। बचपन में ही इनके माँ की मौत हो गई थी। पिता की एक दुकान थी। सौतेली माँ का व्यवहार अच्छा नहीं था, इसलिए गुलजार पूरा दिन दुकान पर ही गुजारते। विभाजन में परिवार उखड़ गया। पहले अमृतसर फिर दिल्ली के कैंप में आसरा लिया। दिल्ली में यह परिवार एक दुकान के पास रहता था। इसलिए समय व्यतीत करने के लिए गुलजार मांग कर किताबें पढ़ते रहते। कविताओं का शौक था, इसलिए गुलजार मुंबई आ गए। यहां शुरू में वह एक पेट्रोल पंप पर उसके बाद एक कार गैरेज में रंगाई का काम करते रहे।

कुछ बच्चे बचपनमें ही बड़े हो जाते हैं। ‘किताब’ फिल्म में गुलजार ने खो जाने वाले बचपन की कहानी कही थी। फिल्म की एक अच्छी बात यह है कि इसकी कहानी को एक 12 साल के बच्चे की दृष्टि से देख गया है। इस तरह ‘पैरेंटिंग’ का पाठ पढ़ाती फिल्म ‘किताब’ हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक अनोखी फिल्म है। गुलजार एक बच्चे के स्नेह और विचारों को पकड़ने में इस कदर सफल रहे कि हम सभी को यही लगेगा कि वह बाल मनोवैज्ञानिक होंगे।

जैसे कि माँ बाबला को बहन के पास शहर में पढ़कर बड़ा आदमी बनने की सलाह देती है। तब बाबला ‘ज्ञान’ देते हुए कहता है, ‘पढ़ने-लिखने से कभी आदमी बड़ा होता है? तुम्हारा भी कोई भरोसा नहीं माँ… पहले कहती थी कि बच्चे दूध पीने से बड़े होते हैं। अब कहती हो कि बच्चे पढ़ने-लिखने से बड़े होते हैं। फिर कुछ और कह दिया तो…।’

शहल में आकर पप्पू से दोस्ती हो जाती है और दोनों पढ़ाई-लिखाई छोड़कर शहर में जादूगर का खेल देखते हैं और मिठाई की दुकानों के चक्कर लगाते हैं। दोनों के लिए किसी के इजाजत के बिना खुद ही निर्णय लेने की आजादी का इतना आनंद होता है कि बाबला पूछता भी है, “पता नहीं कब बड़े होंगे। बड़ों की सबको जरूरत होती है और बड़ों को किसी की भी नहीं।’

एक ओर स्कूल का खौफनाक वातावरण और दूसरी ओर बहन-जीजाजी की आंतरिक मगजमारी। इस तरह दोनों ओर से दबे बाबला को लगता है कि यह शहर उसका स्वागत नहीं करता। वह अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए पप्पू से कहता है, ‘यह दुनिया हमारी मुश्किल नहीं समझती। कभी-कभी जी चाहता है कि भाग जाऊं।’ और एक दिन वह सचमुच भाग जाता है।

बिना टिकट यात्रा में बाबला अलग-अलग अनुभवों से गुजरता है। अनोखे अनुभवों से गुजरता है और वे उसके लिए परिवर्तनकारी साबित होते हैं। बाबला की भूमिका में मास्टर राजू ने बहुत अच्छा काम किया था। ‘किताब’ में दो पीढ़ी के बीच के अंतर को मार्मिक रूप से पेश किया गया था और मास्टर राजू ने वयस्क लोगों की दुनिया में उन्हें होने वाली दिक्कत को खूबसूरती से निभाया था।

फिल्म की यही धड़कन थी। 70 के दशक में यह दर्शकों का बहुत प्यारा बाल कलाकार था। उसने गुलजार के परिचय, ऋषिकेश मुखर्जी की बावर्ची, यश चोपड़ा की दाग और बासु चटर्जी की चितचोर में यादगार काम किया था। ‘चितचोर’ के लिए उसे बाल कलाकार का नेशनल अवार्ड भी मिला था।

फिल्म क़िताब में मास्टर राजू श्रेष्ठ और उसका दोस्त

फिल्म का दूसरा अच्छा पहलू उसके गाने हैं। आरडी बर्मन के संगीत में गुलजार के रचे चार गाने थे। ‘हरि दिन तो बीता, हुई रात पार करा दे’, ‘मास्टरजी की आ गई चिट्ठी, मेरे साथ चले न साया’ और आरडी बर्मन की आवाज में सदाबहार ‘धन्नो की आंखों में है रात का सुरमा…’ यह एक रेल गीत था और इसे इंजन ड्राइवर उसकी प्रेमिका धन्नो का गांव आता है, तब वह गाता है। गुलजार और आरडी की जुगलबंदी ने एक से बढ़कर एक मशहूर गाने दिए हैं। पर यहां तो आरडी ने खुद ही एक गाना गाया था। इसलिए वह सविशेष यादगार है। आरडी ने इसमें फ्लेगर नाम के एक विदेशी साधन का उपयोग किया था। इस अजीब आवाज को इसके पहले किसी ने सुना नहीं था।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें