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हिंदू मुस्लिम एकता और साझी संस्कृति की जिंदा मिसाल हैं गुरु नानक देव

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                मुनेश त्यागी 

         गुरु नानक का जन्म 1469 को पंजाब प्रांत के ननकाना साहिब नामक स्थान पर हुआ था, जो आजकल पाकिस्तान में है। गुरु नानक देव ने संसार को शांति, एकता और मानवता का पाठ पढ़ाया। वे प्रेम और सांप्रदायिकता के साकार रूप थे। वे महान विचारक और समाज सुधारक थे। वे सभी धर्मों का आदर करते थे। उन्होंने लोगों में चेतना जागृत की और कहा कि राम और रहीम एक हैं ,कृष्ण और करीम में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने सभी धर्मों की उच्च शिक्षाओं को अपनाया।

        गुरु नानक देव अंधविश्वासों और धार्मिक आडंम्बरों के बिलकुल खिलाफ थे। उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा था कि हिंदू और मुसलमान एक ही ईश्वर के बंदे हैं, दोनों में कोई भेद नहीं है, जो ईश्वर के नाम पर लोगों को बांटते और लड़ाते हैं, वे धार्मिक नहीं हैं, वे धर्म के नाम पर लोगों को धोखा दे रहे हैं, वे बेईमान हैं। उन्होंने कहा था,,,,,

बंदे एक खुदाय के हिंदू मुसलमान 

दावा राम रसूल कर, लडदे बेईमान।” 

     गुरु नानक ने हिंदू मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए तथा ऊंच नीच का भेद मिटाने के लिए केवल प्रवचन ही नहीं दिए बल्कि ठोस परंपराएं भी शुरू कीं। गुरु नानक ने “संगत और लंगर” की प्रथा चलाकर, एक साथ ध्यान करने और एक पंक्ति में बैठकर बिना किसी भेदभाव के भोजन करना सिखाया और समाज में व्याप्त भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाया।

     गुरु नानक धर्म, जाति, वर्ण आदि की श्रेष्ठता में विश्वास नहीं करते थे। गुरु नानक के समानता आधारित मानवीय धर्म को, हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोगों ने, अपनाया था। मरदाना गुरु नानक का शिष्य था। वह हमेशा उनके साथ रहता था। राय बुलार मुसलमान था। वह गुरु नानक का भक्त था। राय बुलार ने गुरु नानक की याद में ननकाना साहिब में बने तीन बड़े गुरुद्वारों को काफी जमीन दान में दी थी। इसके अतिरिक्त  मियां मीठ्ठा जलाल, बाबा बुढन शाह, वली कंधारी, पीर अब्दुल रहमान और सज्जन जैसे मुसलमान, गुरु नानक के अनुयाई रहे।

     गुरु नानक ने तत्कालीन समाज में व्याप्त मूर्ति पूजा, अवतारवाद, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, वर्ण व्यवस्था थी ऊंच-नीच, छुआछूत आदि बुराइयों का विरोध किया, जो समाज की समानता में रुकावट पैदा कर रहे थे। गुरु नानक ने छुआछूत का विरोध किया और वे ऊंच-नीच में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने कहा था कि “मैं नीची जाति में जो सबसे नीच है और उन नीचों में भी जो बहुत नीच है, उनके साथ हूं।”

       उन्होंने कहा कि मैं इंसान और इंसान के बीच फर्क नहीं मानता। ईश्वर मनुष्य की पहचान उसके गुणों से करता है न कि उसके हिंदू और मुसलमान होने के कारण। गुरु नानक ने बेईमानी और शोषण को, सबसे बड़ा अधर्म बताया है और अपने हक की कमाई करने वाले को सच्चा धार्मिक बताया है। 

      गुरु नानक ने नारियों को बहुत सम्मान दिया है। उन्होंने कहा था कि “स्त्री द्वारा ही हम गर्भ में धारण किए जाते हैं और उसी से जन्म लेते हैं, उसी से हमारी प्रगति होती है, उसी से विवाह होता है, उसी से सृष्टि क्रम चलता है। स्त्री हमें सामाजिक बंधन में रखती है। फिर हम उस स्त्री को भंद यानी नीच क्यों कहें, जिससे महान पुरुष जन्म लेते हैं।” 

      इस सबसे यह स्पष्ट होता है कि गुरु नानक हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल थे। वास्तव में गुरु नानक का समस्त जीवन व शिक्षाएं, हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल हैं। गुरु नानक देव ने सभी धर्मों का आदर किया और सभी धर्मों के लोग उनके अनुयाई थे। वे स्त्रियों का सबसे ज्यादा सम्मान करते थे। उन्होंने शोषण और बेईमानी को सबसे बड़ा अधर्म बताया था। उनका जीवन और सिद्धांत सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल हैं। उनके सिद्धांत भारत की मिली-जुली संस्कृति और विचारों का परिणाम हैं। आज उनके सिद्धांतों को हमें और भारत की जनता को, अपने जीवन में उतारने की, सबसे ज्यादा जरूरत है।

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