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हाईकोर्ट ने दिए आदिवासी को जमीन वापस करने का आदेश-उसी जमीन पर सेज ने काट दी कॉलोनी

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-जिला सहकारी भूमि विकास बैंक ने कर्ज का भुगतान होने और नो ड्यूज देने के बाद भी जमीन कर दी नीलाम
-24 साल तक जमीन पाने के लिए संघर्ष करता रहा आदिवासी और स्वर्ग सिधार गया, लेकिन नहीं मिला न्याय


भोपाल । प्रदेश में भोले-भाले आदिवासियों की जमीन लगातार भू-माफिया द्वारा हड़पी जा रही है। ऐसा ही एक मामला राजधानी भोपाल में सामने आया है। जहां एक आदिवासी 24 साल तक जमीन पाने के लिए संघर्ष करता रहा और स्वर्ग सिधार गया, लेकिन उसे न्याय नहीं मिला। अपने पिता के संघर्ष के बाद बेटे हाईकोर्ट का आदेश लेकर अधिकारियों के पास पहुंचे तो अधिकारियों ने इसे ठंडे बस्ते में डालकर उल्टे सेज ग्रुप को इस जमीन पर कॉलोनी काटने की परमिशन दे दी। सेज ग्रुप ने उक्त जमीन पर कॉलोनी काट दिया है, जिसे महंगे दामों पर रसूखदारों को बेचा जा रहा है।
गौरतलब है कि मप्र में आदिवासी की जमीन को खरीदना और बेचना प्रतिबंधित है। लेकिन अफसरों की मिलीभगत से यह गड़बड़झाला खूब चल रहा है। राजधानी भोपाल में भी एक आदिवासी के साथ यही खेल खेला गया है। जानकारी के अनुसार, राजधानी भोपाल निवासी नारायण सिंह आदिवासी ने 1988 में जिला सहकारी भूमि विकास बैंक से थ्रेसर और पंप के लिए 18,000 रुपए का कर्ज लिया था। आदिवासी किसान ने बैंक को कर्ज का भुगतान करके नो ड्यूज भी प्राप्त कर लिया था। उसके बाद भी वर्ष 2000 – 2001 के बीच बैंक ने आदिवासी की साढ़े 4 एकड़ जमीन मात्र 1,10,000 रुपए में नीलाम कर दी। बैंक अधिकारियों की मिली भगत से लाखों रुपए की इस जमीन को बावडिय़ा कला निवासी राजेंद्र पाटीदार ने खरीदा। नीलाम की गई जमीनों में उस समय बड़ा हंगामा हुआ। सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दिए।
बैंक ने नियम विरुद्ध की थी नीलामी
दस्तावेजों के अनुसार जिला सहकारी भूमि विकास बैंक ने वर्ष 1999 से 2007 के दौरान पौने दो करोड़ रुपए में 983 एकड़ जमीन नीलम कर दी थी। इसमें बड़ा जमीन नीलामी घोटाला सामने आया था। सहकारिता विभाग के 9 अधिकारी सस्पेंड किए गए थे। सरकार ने खुद आगे रहकर साल 2011 में हाईकोर्ट के महाधिवक्ता को पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक मर्या. द्वारा भूमि नीलामी की कार्यवाही करते समय किसानों को विधिवत सूचना नहीं दी गई। विक्रय की उद्घोषणा सहकारिता विभाग के जिला कार्यालय और तहसील कार्यालय में प्रकाशित नहीं कराई गई। साथ ही बकाया राशि के वसूली हेतु आवश्यक भूमि का निर्धारण किए बिना ही पूरी भूमि की नीलामी और भूमि का ऑफसेट प्राइज तय किए बगैर कलेक्टर गाइडलाइन से कम दर पर भूमि विक्रय की कार्यवाही की गई। भूमि की बिक्री संबंधित ग्रामों में नहीं की जाकर अन्य स्थानों पर की गई। तत्कालीन प्रमुख सचिव मध्यप्रदेश शासन सहकारिता विभाग ने अपर कलेक्टर भोपाल को प्रभारी अधिकारी नियुक्त करते हुए इस मामले याचिका किसानों की ओर से हाईकोर्ट में लगाई।
ब्याज सहित रकम वापस करने का निर्देश
हाई कोर्ट में नारायण सिंह की ओर से भी याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने 1 नवंबर 2022 को इस प्रकरण में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने बैंक और प्रतिवादियों को नीलामी में जिन व्यक्तियों द्वारा जमीन खरीदी गई थी, उन्हें पैसा ब्याज सहित वापस करने के आदेश दिए और बैंक नीलामी को अवैध मानते हुए निरस्त कर दिया। साथ ही नीलाम की गई जमीन पर याचिकाकर्ता के नाम चढ़ाने के आदेश दिए गए। इस बीच आदिवासी नारायण सिंह की मृत्यु हो गई। उनके तीनों बेटे कमल सिंह, हिम्मत सिंह ने झगरिया खुर्द स्थित इस जमीन को कोर्ट के आदेश के साथ अपने नाम पर नामांतरण करने के लिए आवेदन दिया। इसके साथ ही जमीन पर कोई भी निर्माण न करने के लिए भी आवेदन दिया गया। नायब तहसीलदार ने इसे एक साल अटकाए रखा। सुनवाई के दौरान वर्तमान भूमि स्वामी सेज ग्रुप की किरण अग्रवाल ने वकील के माध्यम से अपना पक्ष भी रखा।
इस तरह होती रही खरीदी-बिक्री
आदिवासी की जमीन की खरीदी-बिक्री का खेल इस तरह खेला गया कि सारे कायदे-कानून धरे के धरे रह गए। यह जमीन बैंक नीलामी में राजेंद्र पाटीदार द्वारा खरीदे जाने के बाद इसे देवेंद्र साहू, प्रेम नारायण विश्वकर्मा और रघुवीर मीणा को बेचा गया। इसके बाद इस जमीन को 2009 में किरण अग्रवाल ने खरीदा। एक और नामांतरण को लेकर प्रक्रिया चल रही थी। दूसरी और तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह ने दिसंबर 2023 में सेज ग्रुप को इस पर कॉलोनी विकास की परमिशन दे दी। जमीन को बैंक नीलामी में खरीदने वाले राजेंद्र पाटीदार ने हाईकोर्ट में रिट अपील लगाकर कहा कि मुझे सुनवाई के दौरान मौका नहीं दिया गया। कोर्ट ने पाटीदार की अपील स्वीकारते हुए दोबारा इस केस की सुनवाई शुरू कर दी है। मामला हाईकोर्ट में होने के बाद भी एक ओर सेज ग्रुप इस जमीन पर कॉलोनी काटकर आम जनता को बेच रहा हैं। वहीं दूसरी ओर आदिवासी नारायण सिंह की मृत्यु के बाद अब उसके बेटे दर-दर भटक रहे हैं। इस कानूनी लड़ाई में जमीन माफिया और उसके गुंडे आदिवासी परिवार को डरा धमका रहे हैं। कोरे कागजों में हस्ताक्षर कराकर ले जाते हैं। प्रदेश में कैसे आदिवासियों का संरक्षण होगा यह इस मामले से समझा जा सकता है।

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