*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
आखिर, मोदी जी ने गलत क्या कहा है। फिर विरोधी बेबात का वितंडा क्यों खड़ा कर रहे हैं। क्या अयोध्या में रामलला के लिए विशाल घर नहीं बन रहा है, पक्का वाला? क्या 1992 के बाद से रामलला तंबू वगैरह के टेंपरेरी घर में ही नहीं रह रहे थे, देश के करोड़ों गरीबों की तरह? तो क्या इसमें कोई शक है कि 22 जनवरी से मोदी की ही उपस्थिति में रामलला पक्के मकान में शिफ्ट हो जाएंगे। यानी करीब बत्तीस सर्दियां टेंट में ठिठुरते हुए गुजरीं तो गुजरीं, पर इस बार रामलला कड़ाके की सर्दी का काफी हिस्सा पक्की छत के नीचे आराम से बिताएंगे।
बेचारे मोदी जी ने यही तो कहा कि जैसे, सत्तर साल सिर पर पक्की छत के बिना सर्दी, गर्मी, बारिश की मार झेलने के बाद, चार करोड़ लोगों को पक्की छत मिली है, वैसे ही रामलला को तीस साल से ज्यादा के बाद पक्का घर मिल रहा है! रामलला भी इस सर्दी में बेघर से घरवान होने वाले हैं — इससे बढ़कर खुशी की क्या बात होगी!
पर लगता नहीं है कि विरोधियों को रामलला के टेंट की ठिठुरन से निजात पाकर, पक्के घर की सु:ख-सुविधा में पहुंच जाने की खुशी है। वर्ना रामलला की ठिठुरन से जान छूटने के असली मुद्दे को छोडक़र, इस पर झगड़ा खड़ा करने नहीं पहुंच जाते कि यह कैसे कह दिया कि चार करोड़ गरीबों की तरह, रामलला को भी पक्का घर दिला दिया? रामलला को गरीबों से प्यार है या नहीं, यह तो रामलला जानें, पर रामलला की आम भारतीयों से कैसे बराबरी कर दी, उस पर गरीब-बेघरों से? आखिर, वह तो हमारे भगवान हैं।
रही गरीबों की बात, तो उनसे तो बाकायदा मोदी जी तक ने प्रार्थना की है कि रामलला का नये गृह मंदिर में प्रवेश देखने, अयोध्या अभी हर्गिज नहीं जाएं। उनका नया घर परमानेंट है, सो उसे देखने के लिए अनंतकाल तक कभी भी जाएं, बस 22 जनवरी को और उसके आस-पास न जाएं।
खैर! गरीब फिर कभी रामलला का नया घर देखने जाएं या काशी कॉरीडोर की तरह, फीस के डंडे से दूर ही हंकाल दिए जाएं, पर रामलला को पक्का घर दे रहे हैं, यह पीएम जी ने कैसे कह दिया? लला सही, पर हैं तो आखिरकार भगवान ही! टेंट में रहना पड़े या खुले आसमान के नीचे, पर भगवान के इतने बुरे दिन तो नहीं आ सकते हैं कि कोई इंसान उन्हें पक्का मकान दिलाए! ये तो नास्तिकों वाली बोली है, जो कहते हैं कि भगवान ने इंसान को नहीं, इंसान ने भगवान को बनाया है। अगर इंसान, भगवान को बना सकता है, तो उनके लिए मकान-वकान तो सब बना ही सकता है!
छि:-छि:, नास्तिकों वाले काम का इल्जाम और वह भी मोदी जी पर। जो मोदी जी साल के तीन सौ पैंसठ के तीन सौ पैंसठ दिन, काम के अठारह घंटों में से औसतन छ: घंटे तो भजन-पूजन के वीडियो बनवाने में लगाते ही हैं; उन पर नास्तिकों वाले काम का इल्जाम! यह तो कुफ्र है, कुफ्र। वैसे भी, मोदी जी ने कब कहा कि उन्होंने रामलला का पक्का मकान बनवाया है? रामलला की छोड़िए, मोदी जी ने तो कभी अपने मुंह से यह भी नहीं कहा कि उन्होंने चार करोड़ गरीबों के घर बनवाए हैं। उन्होंने तो सिर्फ इतना कहा है कि जैसे चार करोड़ गरीबों के दिन फिरे हैं, वैसे ही रामलला के दिन फिरे हैं, जैसे चार करोड़ गरीबों के पक्के घर बने हैं, वैसे रामलला पक्के घर के स्वामी बन रहे हैं। और यह तो खैर किसी को कहने की जरूरत ही नहीं है, सभी जानते हैं कि चाहे गरीबों के चार करोड़ घर हों या रामलला का एक, पक्के घर तो किसी नेहरू या इंदिरा या राजीव के राज में नहीं, मोदी जी के ही राज में बने हैं। अब क्या मोदी जी इस सच का इशारा भी नहीं करें? ऐसे तो कल को कहा जाएगा कि मोदी जी को इस सच्चाई का भी जिक्र नहीं करना चाहिए कि रामलला को वह खुद, पक्के मकान का कब्जा दिलाने जा रहे हैं। ऐसी बंदिशें तो मोदी जी पर कभी चुनाव आयोग भी नहीं लगाएगा, फिर ये विपक्ष वाले होते कौन हैं, इस तरह की बंदिशों की मांग करने वाले। मोदी जी, नये साल में कम-से-कम इतना तो हर रोज याद दिलाएंगे कि उनके हाथों से पट्टा पाकर ही रामलला पक्के घरवान बने हैं। इसकी याद दिलाने में भी संकोच-लिहाज के चक्कर में पड़ेंगे, तब तो लड़ लिया और जीत लिया 2024 का चुनाव!
वैसे, 2023 जाए या 2024 आए, मोदी जी को कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे दिल खोलकर 2023 में गिफ्ट पर गिफ्ट दे रहे थे, जरूर 2024 में भी देते रहेंगे। देखा नहीं, 2023 के आखिरी कार्य दिवस पर कैसे अयोध्या पर ही गिफ्टों की बारिश कर आए। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की गिफ्ट। रिनोवेटेड और नामांतरित रेलवे स्टेशन का गिफ्ट। वंदे भारत और अमृत भारत ट्रेनों का गिफ्ट। और कई-कई परियोजनाओं का गिफ्ट। भले ही बिल सरकारी खजाने पर पड़ता हो, भले ही मोदी जी के रोड शो पर फूल बरसाने का खर्चा भी करदाता की जेब से निकलता हो, पर गिफ्ट बांटने की उदारता तो खास मोदी जी की है। और 2024 में भी कम-से-कम चुनाव तक तो गिफ्ट देने का ये सिलसिला यूं ही चलता ही रहेगा। भूल गए, 2024 की तो शुरूआत ही, लाखों गरीबों के साथ रामलला को पक्का घर गिफ्ट किए जाने के साथ होने जा रही है। सैकड़ों कैमरों के सामने, अपने करकमलों से मोदी जी रामलला को पक्के घर की चाभी गिफ्ट करेंगे।
पर यह भी तो अच्छा नहीं लगता कि यह गिफ्टबाजी बिल्कुल इकतरफा ही रहे। अकेले मोदी जी ही गिफ्ट पर गिफ्ट देते जाएं और बाकी सब गिफ्ट लेते ही जाएं, यह भी तो ठीक नहीं है। आखिरकार, रिटर्न गिफ्ट भी तो एक चीज होती है। पक्के घर का गिफ्ट देने वाले को रिटर्न गिफ्ट में क्या रामलला, दिल्ली की गद्दी पर पांच साल का एक्सटेंशन भी नहीं दिलाएंगे! जो पक्के, परमानेंट घर में लाए हैं, उन्हें पांच साल और दिलाने में भी कृपणता दिखाएंगे!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*