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भोजपुरी फिल्मों के एक कथित नायक की जातिवादी विकृत,वीभत्स सोच ! कितनी मानवीय !

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निर्मल कुमार शर्मा

‘नायक ‘ यह शब्द भारतीय फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाने वाले किरदार के लिए गढ़ा गया है ! आम भारतीय जनमानस में इस नायक से यह अपेक्षा रहती है कि वह शारीरिक रूप से सुन्दर,सुडौल,बलशाली तो हो ही,वह मानसिक तौर पर भी समदर्शी,सभ्य और सुसंस्कृत हो ! वह भारतीय समाज में व्याप्त तमाम विकृतियों, कुरीतियों,गरीबों और वंचितों से होनेवाले भेदभाव,अश्यपृश्यता,छूआछूत आदि के विरूद्ध गरीबों के पक्ष में शोषकों और अत्याचारियों से लड़कर उनका वास्तविक हक दिलाने वाला, जातिवाद, धार्मिक वैमनस्यता,पाखंड, अंधविश्वास आदि से सर्वथा मुक्त हो ! वह समाज में होनेवाले हर अन्याय,असहिष्णुता,बर्बरता,क्रूरता,असभ्यता,अश्लीलता,अमर्यादित घटनाओं के विरूद्ध गरीबों और कमजोर तबके के लोगों के पक्ष में चट्टान की तरह खड़ा रहनेवाला हो ! सुप्रसिद्ध फिल्म ‘नायक ‘ का नायक अनिल कपूर उक्तवर्णित गुणों से संपन्न नायक का बेहतरीन अभिनय किया था, जिसमें वह आम भारतीय गरीब जनता के हित के लिए तत्कालीन सत्तासीन मुख्यमंत्री से भिड़ जाता है ! उस फिल्म के अभिनेता अनिल कपूर की व्यक्तिगत सोच उस फिल्म की पटकथा से कितनी मेल खाती है,मुझे नहीं पता,लेकिन आजकल सोशल मिडिया पर भोजपुरी फिल्मों के एक कथित तौर पर नायक की भूमिका निभाने वाले बीजेपी के कट्ठर समर्थक कथित उच्च जातियों के मन में चुनाव के दौरान दलितों के घर खाना खाने का नाटक करनेवालों की कितनी घटिया मानसिकता है !उसकी असली और घटिया नीयत उस विडिओ से जगजाहिर हो गई ! इस विडिओ में वह एक दलित के घर से खाना खाकर लौटते हुए,अपने दोस्तों के बीच यह अत्यंत फूहड़ व जातिवादी टिप्पणी किया है, जिसे उसी गाड़ी में बैठे किसी शख्स ने रिकॉर्ड कर लिया,भोजपुरी फिल्मों में कथित नायक की भूमिका में नजर आनेवाले इस नरशाचर का पूरा नाम रविकिशन शुक्ला है,जो सरेआम कह रहा है कि ‘उनका (दलितों का ) पसीना इतना महक रहा है कि क्या बतावें ! ‘ मानों इस नरपिशाच के पसीने से गुलाब की खुशबू जैसी गंध आती हो ! यह दरिंदा दलितों की विपन्नता,अभावग्रस्तता तथा दमघोंटू सामाजिक अपमान की जहालत भरी जिंदगी की स्थिति में केवल एक महीने रहकर अनुभव करे ! और तब अपने पसीने को सूंघकर अनुभव करे कि क्या इसके पसीने से तब भी गुलाब जैसे सुंगन्धित खूशबू वाली गंध आ रही है !

रवि किशन - विकिपीडिया


इस देश में आज से ठीक 71 साल पहले लागू किए गए संविधान,जिसको 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था और भारतीय राष्ट्रराज्य उसी दिन एक गणतंत्र बन गया था,में प्रथम पृष्ठ पर यह स्पष्टता से लिखा गया है कि ‘हम भारत के लोग,भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न,समाजवादी, पंथनिरपेक्ष,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों कोः सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय,विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईसवी को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। ‘
अब यक्ष प्रश्न है कि क्या हम भारत के रहने वाले सभी जाति,धर्मों के लोग आपस में उक्त लिखित संविधान प्रदत्त अधिकार के तहत बराबरी के मर्यादा का पालन करते हैं ?पिछले 71 सालों में क्या संविधान प्रदत्त इस वचन को यहाँ की जितनी भी सरकारें जो इस देश में सत्तारूढ़ रहीं हैं,वे इस देश में जाति,धर्म विहीन बराबरी के समाज की स्थापना कर पाई हैं ?इसका उत्तर है बिल्कुल नहीं। अभी पिछले दिनों एक सरकारी सर्वेक्षण किया गया उसमें यहाँ के हिन्दूवादी समाज के कथित उच्च जातियों के लोगों से जब पूछा गया कि ‘क्या वे अभी भी इस देश के कथित नीची जातियों से भेदभाव व छूआछूत रखते हैं ? ‘उनमें से 70 प्रतिशत लोगों ने कहा ‘नहीं,दलित जातियों में से कोई भी मेरी टेबल पर बैठकर खाना खाए, हमें कोई आपत्ति नहीं है। ‘ लेकिन जब उनसे आगे यह पूछा गया कि ‘क्या आप किसी नीची जाति के घर का बना हुआ भोजन खा लेंगे ?या आप अपने रसोईघर में किसी नीची जाति के व्यक्ति को भोजन पकाने की अनुमति देंगे ?’ इस प्रश्न के उत्तर में अधिकांशतः कथित उच्च जातियों के लोगों ने स्पष्टता से कहा कि ‘नहीं,ये तो नहीं हो सकता। ‘ मतलब भारत की कथित उच्च जातियों के लोग बहुसंख्यक नीची कही जानेवाली जातियों से एक निश्चित दूरी अभी भी बनाए रखना चाहतीं हैं !
इस देश को गणतंत्र घोषित होने के बाद 71 साल का एक-एक दिन इसका जीता-जागता गवाह है कि यहाँ के जातिगत् आधार पर बँटे समाज में जातिगत् वैमनस्यता,अश्यपृश्ता, छूआछूत,असमानता,नारकीय भेदभाव आदि यहाँ के कथित धर्म और जाति के स्वयंभू ठेकेदारों ने तो और भी सुदृढ़ किया ही है,सबसे दुःख और अफसोस की बात यह है कि यहाँ की लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों के कर्णधार,जिन पर संविधान की गरिमा की रक्षा करने की सबसे ज्यादे महती जिम्मेदारी व प्रतिबद्धता है,वे ही संवैधानिक व्यवस्था की बखिया उघाड़े जा रहे हैं और उसकी धज्जियाँ उड़ाए जा रहे हैं। यहाँ पूरी निर्लज्जता और बेशर्मी से इसी देश में किसी क्षेत्र विशेष में जातियों की बाहुल्यता के आधार पर अपनी राजनैतिक पार्टी के जातिवादी उम्मीदवार तय किए जाते हैं ! जहाँ तक यहाँ के समाज की बात है,यहाँ का समाज दुनियाभर के सशक्त व उन्नतिशील राष्ट्रों के समाजों से जातिगत् वैनस्यता के मामले में सबसे क्रूर,अमानवीय,असहिष्णु व गिरा हुआ समाज है,उदाहरणार्थ यहाँ हजारों उदाहरण हैं,जिसमें कथित नीची जातियों के साथ अमानवीयता व क्रूरता की पराकाष्ठा तक यहां की ऊँची कही जानेवाली जातियाँ दुर्व्यवहार करतीं हैं,कहीं केवल नीची कही जानेवाली जाति के युवक द्वारा मूँछ रखने,कुर्सी-मेज पर खाना खा लेने,अपनी शादी में घोड़े पर बैठने,मरी गाय की खाल न छीलने,खेत में मजदूरी न करने आदि कारणों पर अमानवीय बेइज्जती के साथ-साथ उनको मौत के घाट उतार दिए जाने की अत्यंत दुःखद घटनाओं के समाचार प्रायः समाचार पत्रों में प्रकाशित होते ही रहते हैं। इसके लिए अक्सर कथित दोषियों पर मुकदमें आदि होते रहते हैं,लेकिन भारतीय न्यायिक व्यवस्था की लचर व भेदभावपूर्ण व्यवहार से बहुत कम दोषियों को ही सजा हो पाती है।
यक्ष प्रश्न है कि इस तरह के कदाचार के मामले में किसी व्यक्ति को सजा देने के लिए यहाँ की न्यायिक व्यवस्था अपनी आधी-अधूरी कोशिश तो करती है,परन्तु भारतीय समाज में जातिवाद को खूब खाद-पानी देने वाले और उसे परिपोषित कर जातिगत् व धार्मिक वैमनस्यता को बढ़ावा देने वाले राजनैतिक पार्टियों के कर्णधारों के किए गंभीर अपराध पर यहाँ की न्यायपालिका के कथित न्यायमूर्ति भी अपनी आँखें बन्द कर लेते हैं,उदाहरणार्थ अभी पिछले दिनों हाथरस में एक कथित नीची जाति की लड़की से उसके गाँव के ही कथित कुछ उच्च जाति के नरपिशाच युवकों ने पहले बलात्कार किया,उसकी जीभ काटी,उसकी गर्दन और रीढ़ तोड़कर उसको बुरी तरह शारीरिकरूप से चोट पहुँचाई,लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार का मुखिया कथित एक उच्च जाति का मंदिर का पुजारी है,उसने स्पष्टरूप से उस दलित लड़की की घोर उपेक्षा किया और प्रत्यक्षतः बलात्कारियों की मदद किया,मसलन,हफ्तों बलात्कार होने को ही नकारता रहा,उचित ईलाज न कराके इधर-उधर घुमाता रहा,अंततः उस अबला लड़की की दुःखद मौत हो जाने के बाद उसके शव को उसके परिजनों के इच्छा के विरूद्ध जाकर रात के अंधेरे में अपनी उत्तर प्रदेश पुलिस फोर्स की मदद से जबरन जलाकर सबूत मिटा देने के अक्षम्य अपराध करके,बलात्कारियों के मनोबल को और बढ़ाने का कुकृत्य किया,जबकि सम्बन्धित राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते उसका यह अभीष्ट,न्यायोचित्त व संवैधानिक कर्तव्य था कि वह निरपेक्ष,निर्लिप्त और निष्पक्ष भाव से बलात्कारियों को बगैर जातिगत् दुराग्रह के संवैधानिक अधिकार के तहत कठोरतम् दंड दिलवाने की प्रक्रिया अपनाता,लेकिन वह जातिगत् दुर्भावनाओं को बहुत ही फूहड़, अमर्यादित व असंवैधानिक ढंग से बढ़ावा दिया ! आश्चर्य और हतप्रभ करनेवाली स्थिति है कि इस देश के एक मुख्यमंत्री द्वारा इतने बड़े अपराध करने के बावजूद यहाँ की न्यायपालिकाएं उस मुख्यमंत्री पर अपने स्वतः संज्ञान के अधिकार का अब तक प्रयोग नहीं कीं ! उलटे यह बेशर्म और खुद अपराधिक पृष्ठभूमि का,आकंठ कई मुकदमों में स्वयं आरोपित मुख्यमंत्री उन न्यायप्रिय लोगों पर अनेकों मुकदमें किया है,जो लोग और पत्रकार उसके द्वारा उक्त कुकृत्य का विरोध कर रहे थे ! आज भी उनमें से कई जेलों में बंद हैं ! इसी तरह की एक घटना अभी कथित सुशासन बाबू के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री के बिहार राज्य के वैशाली जिले में हुई,जिसमें एक दलित भूमिहीन खेतिहर मजदूर की 30 वर्षीया जवान लड़की को शौच के लिए खेतों में जाते वक्त उसी गिंव के कथित उच्च जातिवादी गुँडे बंदूक की नोक पर अपने घर उठाकर ले गये ! कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार कर उसकी निर्ममतरीकों से हत्या कर पास के तालाब में फेंकर फरार हो गये ! मुझे नहीं पता उस लोमहर्षक घटना में संलिप्त गुँडों को अभी तक पकड़ा गया या नहीं ! मुझे तो कथित उच्च जाति की स्त्रियों की विकृत मानसिकता पर भी आश्चर्य होता है कि वे गाँव की ही एक दलित की बेटी के साथ अपने घर में अपने दरिंदे पुत्रों,पतियों और तमाम पड़ोसी मर्दों से अपनी आँख के सामने बलात्कार होते देखतीं हैं ! जातिवाद वीभत्सता की इस तरह की घटनाएं इस देश में अक्सर होतीं ही रहतीं हैं। इस तरह इस देश में जातिवाद कभी समाप्त ही नहीं होगी। न यहाँ के समाज के सभी जातियों को संविधान प्रदत्त सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय व समानता का कभी अधिकार मिल पाएगा ! सबसे बड़े दुःख और अफसोस की बात यह है कि इस देश और भारतीय समाज को जातिवाद रूपी कोढ़ ने पतन,गुलामी और दुनियाभर में सबसे पिछड़ा होने को भी अभिशापित किया है,परन्तु जातिवाद को यथावत रखनेवाली शक्तियां अभी भी अपना पूरा जोर और शक्ति इस बात के लिए लगाईं हुईं है कि यहाँ भारतीय समाज को विखंडित करनेवाला नरपिशाच मनु द्वारा अविष्कृत जातिवादी व्यवस्था कायम रहनी ही चाहिए,इसमें कोई शक नहीं कि इस अमानुषिक और राक्षसी सोच के मुख्य अभियुक्त इस देश पर शासन करनेवाली भारतीय जनता पार्टी की पितृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही है। इस देश के 85 प्रतिशत बहुसंख्यक आबादी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस विकृत और अमानवीय सोच को लागू करने से पूर्व ही सशक्त, संगठित व सामूहिकरूप से प्रबलतम् विरोध करनी ही चाहिए,यह समयोचित्त,न्यायोचित्त व हर तरह से सभी के लिए,इस देश और यहाँ के समाज के लिए भी कल्याणकारी भी है। इस जातिवादी जहर की ही वजह से ही यहाँ कोई भी मजदूर आंदोलन, किसान आंदोलन,छात्र आंदोलन और कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा काल्पनिक वर्ग संघर्ष भी कभी भी सफल नहीं होता ! वास्तविकता यह है कि इस देश में बगैर जातियों को समाप्त किए वर्ग संघर्ष की कल्पना करना ही बेमानी है,क्योंकि यहाँ के मजदूर,किसान और छात्र ही जब हजारों जातियों-उपजातियों में बँटे हैं,तो उस स्थिति में वर्ग संघर्ष की बात करना ही निरी मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है ! सच्चाई और कटुयथार्थ यह है कि इस देश से जब तक जातिवादी रूपी कैंसर का समूल नाश नहीं होगा,तब तक कम्युनिस्ट पार्टियों का वर्गसंघर्ष एक दिवास्वप्न ही रहेगा,इसलिए सर्वप्रथम इस देश से जातिवाद रूपी कैंसर को जड़मूल से मट्ठा डालकर नष्ट करना ही होगा,तभी इस देश में कोई भी आंदोलन सफलीभूत होगा और तभी इस देश में सभी के लिए खुशहाली भी आयेगी।
अब समय आ गया है,और निकट भविष्य में ही आ भी जाएगा कि उक्तवर्णित ऐसे कथित नायकों,बलात्कारियों, हत्यारों और नरपिशाचों को सार्वजनिक तौर पर सौ-सौ कोड़े लगाये जांए और लाल किले के सामने सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र कर के महीनों खंभों पर उल्टा लटकाकर जूतों और चप्पलों से ऐसे दरिंदों की पिटाई हो ! जातिवाद को स्थापित करनेवाला दरिंदा,नरपशु मनु की ये जारज और अवैध संतानों की सोच पर घिन आती है,जो हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर पूरे भारतीय समाज और इस राष्ट्रराज्य में जातीय व धार्मिक वैमनस्यता व घृणा की बदबू फैलाकर सबसे बड़े धर्म ‘इंसानियत धर्म ‘ की ही सरेआम हत्या कर देते हैं और सत्तासीन रहना चाहते हैं और इसी के बल पर इस देश को कथित हिंदूराष्ट्र बनाना चाहते हैं ! इन नरपिशाचों को मनुष्य या इंसान कहना ही मनुष्य या इंसानियत का घोर अपमान है ! ये इस धरती के जीव ही नहीं हैं,जिनमें करूणा,दया,प्रेम, सहिष्णुता,क्षमा आदि के इंसानियत के गुण हों ! ये पराग्रही या मानवेत्तर जीव हैं !

निर्मल कुमार शर्मा, ‘गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण तथा पत्र-पत्रिकाओं में सशक्त,निष्पृह, बेखौफ व स्वतंत्र लेखन ‘, गाजियाबाद,उप्र,

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