नदीम
यही कोई चार महीने पहले की बात होगी। लखनऊ में एक खबर ने सनसनी पैदा कर दी थी। खबर ही ऐसी थी। एक जज साहब ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि बीच सड़क उनकी कार रोक कर उनकी हत्या की कोशिश हुई। जज की हत्या की कोशिश, यह खबर सुनते ही पुलिस के तो हाथ-पांव फूल गए। घटनास्थल पर जो भी सबूत मुमकिन हो सकते थे, उनको खंगालने के बाद यह पाया गया कि जो कहानी बताई जा रही है, वह अतिरंजित है। हत्या की कोशिश जैसा कुछ नहीं हुआ। सड़क पर ओवरटेक करने को लेकर गरमा-गरमी, तू-तड़ाक हुआ था। वैसे तो गाड़ी को लेकर सड़क पर झगड़े सामान्य श्रेणी में गिने जाते हैं लेकिन किसी जज को यह कैसे बर्दाश्त हो सकता है कि कोई व्यक्ति उनके साथ गरमा-गरमी या तू-तड़ाक करे? सो उन्होंने एफआईआर का ऐसा मजमून तैयार किया, जिसमें आरोपी को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। शुकर, नई टेक्नोलॉजी का, जिसने आरोपी को हत्या के प्रयास वाले मुकदमे से बचा लिया क्योंकि कई लोगों ने इस घटना का वीडियो बनाया था, कुछ सीसीटीवी फुटेज भी मिल गए थे, सो हत्या का प्रयास पहली नजर में ही साबित नहीं हो पाया।
इस घटना की याद इसलिए आई कि अभी चार दिन पहले लखनऊ में फिर एक घटना हुई। वह भी पहले वाली घटना की मानिंद। रियल स्टेट के एक बहुत बड़े कारोबारी और पूर्व सांसद के बेटे-बहू को भी बीच सड़क लूटने की एफआईआर दर्ज हुई। एफआईआर में कहा गया कि बेटे-बहू जब ड्राइवर के साथ कार से लौट रहे थे तो कार को बीच सड़क पर रोक कर लूट की कोशिश की गई। एक तो नामचीन व्यवसाई का मामला, फिर पूर्व सांसद, एफआईआर मिलते ही इस घटना में पुलिस के पसीना छूटने लगा। बदनामी का डर जो ठहरा। इसमें भी शुरुआती जांच शुरू हुई। उपलब्ध सबूतों को खंगाला गया तो यह घटना भी पहली वाली घटना की तरह ही अतिरंजित पाई गई। रोडरेज की घटना थी लेकिन एक कार में बड़े बाप के बेटे-बहू थे तो उन्हें दूसरे को इतनी आसानी से नजरअंदाज करना गंवारा नहीं था, उसे सबक सिखाना जरूरी था। फिर ऐसी पटकथा तैयार की गई,जिसमें आरोपी को 14 साल तक की सजा हो सकती है।
इन दोनों घटनाओं से एक बड़ा सवाल उठता है कि मनचाही पटकथा तैयार कर पुलिस को गुमराह करना कितना जायज है? यह कृत्य पेशेवर अपराधियों द्वारा अंजाम दिया जाए तो भी यह बात समझी जा सकती है कि उनके लिए कानून का सम्मान कोई मायने नहीं रखता। गैर कानूनी कृत्य उनकी आदत में शुमार होता है। वह कोई भी रास्ता अख्तियार कर सकते। करते ही हैं। लेकिन समाज के जिम्मेदार तबके से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। उनकी तरफ से ऐसा गैर जिम्मेदाराना कृत्य माफी के काबिल नहीं होना चाहिए। किसी भी संभ्रांत शख्स के कोई भी गैर कानूनी कृत्य से गलत संदेश जाता है।
सोशल मीडिया के जमाने में हजार-दो हजार नहीं बल्कि अनगिनत लोगों की नजर से यह खबर गुजरी होगी एक जज ने सड़क पर गाड़ी की ओवरटेकिंग को लेकर हुए सामान्य झगड़े को कैसे हत्या के प्रयास में बदलने की कोशिश की की? न जाने कितने लोगों के जेहन में यह बात घर कर गई होगी कि अगर सड़क पर कोई सामान्य झगड़ा हो जाता है तो विरोधी को सबक सिखाने के लिए ऐसी कोई गंभीर पटकथा तैयार की जा सकती है। अगर जहां की घटना होगी, संयोग से अगर वहां कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं होगा या किसी ने घटना का वीडियो नहीं बनाया होगा तो आरोपी को अपने को निर्दोष साबित करना कितना मुश्किल हो जाता होगा। इसलिए जरूरी है कि ऐसी पटकथा लिखने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो, भले ही वे कितने ही बड़े लोग क्यों न हों?