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*मणिपुर : कितनी लूटी जाएंगी नारियां और कब तक चुप रहेंगी सरकारें*

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            पुष्पा गुप्ता

      मणिपुर में जारी हिंसा के दौरान हुआ एक वीभत्स काण्ड हाल ही में देश-दुनिया के सामने दरपेश हुआ है। एक वायरल वीडियो में भीड़ द्वारा दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया जा रहा है जिसके बाद इनपर यौन हमला भी हुआ। यह शर्मनाक वाकया 4 मई को इम्फाल से 35 किलोमीटर दूर कंगपोकपी ज़िले में घटित हुआ। दंगाई भीड़ ने मणिपुर पुलिस “स्क्वायड” से ही इन महिलाओं को छुड़ाया और इस कुकृत्य को अंजाम दिया। 

       घटना के सामने आते ही मणिपुर के मसले पर मुँह में दही जमाये बैठे प्रधानमन्त्री मोदी ने शर्मसार होने का ढोंग करते हुए तुरन्त घड़ियाली आंसू बहाने शुरू कर दिये। राज्यों के चुनावों में प्रचारमन्त्री का चोला पहन रैलियों में दनदनाने वाले प्रधानमन्त्री का मणिपुर के प्रति रवैया इनकी मंशा को साफ़ ज़ाहिर कर देता है।

      कर्नाटक के चुनावों में दिन-रात एक करने वाले मोदी ने हिंसाग्रस्त मणिपुर में जाना तक गवारा नहीं समझा। इस पूरे दौरान अमेरिका, तुर्की, फ्रांस, सऊदी अरब तक में मोदी जी ने हाज़िरी लगवाई पर ये मणिपुर का ही रास्ता भूल गये हैं। 

       4 मई की उक्त घटना की वीडियो वायरल होते ही सरकारी मशीनरी भी फौरन सक्रिय हो गयी। राज्य में इण्टरनेट पर बैन को पाँच दिन और बढ़ा दिया गया तथा ट्विटर पर कार्रवाई की धमकी से लेकर सभी जगहों से इस वीडियो को हटाने का फ़रमान सुना दिया गया। लेकिन राज्य के निकम्मे और बेशर्म मुख्यन्त्री बीरेन सिंह ने खुद ही उगल दिया कि इस तरह के बलात्कार जैसे 100 से अधिक मामलों से जुड़ी एफआईआर पुलिस के पास दर्ज हैं।

असल में हिंसा और यौन हमलों की घटनाएँ कहीं ज़्यादा बड़े पैमाने पर हुई होंगी। भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाजों में दंगों और हिंसा में स्त्रियाँ को सबसे पहला निशाना बनाया जाता है। सत्ताधारियों द्वारा यदि बलात्कारियों को बरी किया जायेगा, इनके लोगों द्वारा उन्हें मालाएँ पहनायी जायेंगी, उनके समर्थन में तिरंगा यात्राएँ निकाली जायेंगी तो फिर ऐसी निकृष्ट मानसिकता के लोगों का मन बढ़ना स्वाभाविक ही है।

     स्त्री उत्पीड़न के मामले में भाजपा और संघपरिवार से हम पाखण्ड की ही उम्मीद कर सकते हैं।

      मणिपुर में जारी हिंसा के दौरान ही मैतेयी और कुकी दोनों ही समुदायों की विचारणीय आबादी अपने प्रदर्शनों में लगातार शान्ति की अपील कर रही है और खुद को बचाने के लिए सत्ता से गुहार लगा रही है लेकिन यहाँ क़ानून-व्यवस्था को लकवा मार गया है। सत्ता की शह के बिना क्या यह सम्भव है कि किसी राज्य में ढाई महीने तक इस तरह की अराजकता जारी रह सके? मैतेई लीपुन चीफ़ प्रमोत सिंह के संघी-भाजपाई ‘कनेक्शन’ और इसके संगठन की मौजूदा हिंसा में भूमिका को कौन नहीं जानता! तथाकथित मैतेयी राष्ट्रवाद का झण्डाबरदार यह व्यक्ति कुकी समुदाय के ख़िलाफ़ सरेआम ज़हर उगलता रहा है। वैसे तो मणिपुर में हिंसा का लम्बा अतीत है लेकिन आबादी के बीच इतना पार्थक्य कभी नहीं हुआ। 

हालिया हिंसा में एक बड़ा कारक यहाँ संघ परिवार व भाजपा की बढ़ती मौजूदगी और उसके नफ़रती फ़ासिस्ट प्रयोग का रहा है। यहाँ 2017 से ही भाजपा की सरकार है जिसका इस समय दूसरा कार्यकाल चल रहा है। पिछले छह वर्षों के दौरान संघ परिवार ने सचेतन रूप से यहाँ “मैतेयी राष्ट्रवाद” को बढ़ावा देने और उसे “हिन्दुत्ववादी भारतीय राष्ट्रवाद” के साथ जोड़ने के तमाम प्रयास किये हैं। मैतेयी समुदाय के फ़ासीवादीकरण के लिए भाजपा लम्बे समय से हाथ-पैर मारती रही है।

      मैतेयी अस्मितावादी राजनीति की प्रतिक्रिया में कुकी लोगों के बीच से कुकी पहचान पर ज़ोर देने वाली कुकी अस्मितवादी कट्टर राजनीति भी ज़ोर पकड़रही है। एक अस्मिता का उभार अन्य अस्मिताओं के उभार की भी ज़मीन को तैयार करता है। इस तरह की फूट परस्ती से सबसे अधिक फ़ायदा भाजपा को ही होता है। दंगों में बहे मेहनतकश जनता के ख़ून से वोटों की फ़सल को सींचना भाजपा की पुरानी फ़ितरत है। 

      मणिपुर में भारतीय राज्यसत्ता द्वारा दमन का पुराना इतिहास रहा है। यहाँ ‘आफ़्सफ़ा’ जैसे क़ानून लागू किये गये और सैन्य दमन थोपा गया जिसमें थंगजाम मनोरमा नामक महिला के साथ कुछ सैनिकों द्वारा अंजाम दी गयी बर्बर बलात्कार की घटना भी शामिल है। इसके ख़िलाफ़ बड़ा प्रतिरोध उठ खड़ा हुआ था।

पहले मणिपुर राज्यसत्ता का सीधा आतंक झेलता था आज यहाँ भाजपा के फ़ासीवादी एजेण्डे को थोपा जा रहा है और मणिपुरी लोग एक-दूसरे के ही ख़ून के प्यासे बना दिये गये हैं।

      मेहनतकश जनता को यह बात समझनी होगी कि इस हिंसा और दंगों में सिवाय नुकसान के हमारे कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला है। मज़लूमों और कमज़ोरों का शिकार करने वाले खुद भी शिकार होने के लिए अभिशप्त होते हैं। न तो भाजपा को मैतेयी समुदाय की मेहनतकश जनता से कोई मतलब है और न ही कुकी समुदाय के कट्टरपन्थी तत्त्वों को कुकी जनता के असल हालात से कुछ लेना-देना है।

        आपसी एकजुटता बनाते हुए साझे दुश्मन की पहचान करके असल मुद्दों के लिए संघर्ष संगठित करने में ही दोनों समुदायों की भलाई है।

        मणिपुर पर उन सभी का ख़ून खौलना ही है जो इस देश के फ़ासिस्ट सत्ताधारियों और उनके समर्थकों की तरह इंसान होने का दरजा खो नहीं चुके हैं। लेकिन कल तक यह ख़ून फिर ठण्डा हो गया और आप फिर बस मीम और चुटकुलों पर इमोजी चिपकाने में मसरूफ़ हो गये तो उनमें और आपमें फ़र्क़ बस दो-चार पायदान का रह जायेगा।

अगर ख़ुद को इंसान समझते हैं तो इस घिनौने समाज को बदलने की कोशिशों में जुटिए। फ़ेसबुक पर आये दिन परोसी जाने वाली न्यारे-प्यारे हिन्दुस्तान की गुलाबी तस्वीरों से किसी भ्रम में मत रहिए।

      दशकों से इस देश की पोर-पोर में फैलाया जा रहा नफ़रत का ज़हर एक भयानक बीमार और सड़ा हुआ समाज बना रहा है। 

       गुजरात 2002 में जब सैकड़ों औरतों के साथ हैवानियत हो रही थी तो समाचार एजेंसी यूनीवार्ता के दिल्ली दफ़्तर में मेरी एक महिला सहकर्मी उसे बेशर्मी से जस्टीफ़ाई कर रही थी। बाद में आजतक के स्टिंग आपरेशन के वीडियो में सबने देखा कि पूरे परिवार के सामने बैठकर दंगाई और बलात्कारी किस तरह अपने “कारनामों” की डींगें हाँक रहे थे। 

ज़्यादा दिन नहीं हुए जब असम की राजधानी की मुख्य सड़क पर भीड़ ने एक प्रदर्शन में शामिल आदिवासी युवती को सरेआम नंगा करके दौड़-दौड़ाकर पीटा था। 

        गैंगरेप और बच्चियों से बलात्कार के वीडियो जिस समाज में लाखों की तादाद में बिकते हों, जहाँ एक बच्ची के बलात्कारियों के पक्ष में तिरंगा लेकर जुलूस निकाले जाते हों, और जहाँ फ़ासिस्ट कुत्तों से लेकर लिबरल-प्रगतिशील मुखौटा ओढ़े अनेक बुद्धिजीवियों तक की सबसे बड़ी फ़ैंटसी किसी स्त्री को जबरन निर्वस्त्र करने की हो, वहाँ क्या आश्चर्य कि ऐसा हर शर्मनाक अपराध भी चन्द दिनों में भुला दिया जाता है? 

        अपने देश की ‘गंगा-जमनी’ तहज़ीब और आपसी भाईचारे के क़सीदे पढ़ते हुए इस कड़वी सच्‍चाई को क़तई नज़रअन्‍दाज़ मत करिए कि हम एक बर्बर, निरंकुश और जहालत से भरे, लम्‍बे समय से ठहरे हुए समाज में रह रहे हैं जहाँ ऐसी बर्बर प्रवृत्तियों के पनपने और फलने-फूलने के लिए प्रचुर खाद-पानी मौजूद है।

आम जन की सदियों की ग़ुलामी (यहाँ मतलब जनता की दासता से है, संघी शब्‍दावली में देश की सदियों की ग़ुलामी से नहीं) ने अज्ञान, अशिक्षा, ग़रीबी, कूपमंडूकता और ठहरावग्रस्‍त जीवन के जिस अँधेरे में उन्‍हें क़ैद करके रखा है उसमें इंसान का रह-रहकर जानवर बन जाना कोई अनहोनी बात नहीं है।

      लोगों के बीच मौजूद सबसे निकृष्‍ट भावनाओं, पिछड़ेपन, असुरक्षा और भय-सन्‍देह की प्रवृत्तियों को जब लगातार उकसाया जाता है, तो उनके एक हिस्‍से को उन्‍मत्‍त और पागल पशुओं की भीड़ में तब्‍दील कर देना मुश्किल नहीं रह जाता। ख़ासकर स्त्रियों के प्रति घृणा को जिस तरह से बढ़ावा दिया गया है और अपनी हर नाकामी और बदहाली का प्रतिशोध स्त्री शरीर को नोचकर लेने की जिस वहशी आदत को परवान चढ़ाया गया है, उसके नतीजे हम बार-बार देख रहे हैं।

       मणिपुर में जो कुछ हो रहा है वह कोई स्वतःस्फूर्त “जनभावनाओं का प्रकटीकरण” नहीं है। भारतीय राज्य और आरएसएस की दशकों की कारगुज़ारियों का नतीजा है। मणिपुर का बेशर्म मुख्यमंत्री कह रहा है कि वहाँ ऐसी बहुत-सी घटनाएँ हो चुकी हैं, इसीलिए इंटरनेट बंद किया गया है। ड्रोन से कोने-कोने पर नज़र रखने के दावे करने वाला बेशर्म प्रधानमंत्री देशभर में थू-थू होने पर तीन महीने बाद बेटियों की बेइज़्ज़ती पर कार्रवाई करने की बात कर रहा है।

      लेकिन इनका असली रूप यह है कि आज ही दिल्ली की एक अदालत ने बेटियों को बेइज़्ज़त करने वाले बृजभूषण सिंह को नियमित ज़मानत दे दी है — बस उसे हुई असुविधा के लिए माफ़ी नहीं माँगी है! 

       भारतीय सेना के जवानों ने जब मणिपुर की थंगजम मनोरमा के साथ बलात्कार करके उसके गुप्तांग में संगीन भोंकी थी तब उसका वीडियो नहीं जारी हुआ था पर उसके विरोध में ‘Indian Army – Rape Us!’ का बैनर लेकर निर्वस्त्र प्रदर्शन करने वाली मणिपुरी महिलाओं की तस्वीर सबने देखी थी।

       तब भी बहुत से लोगों का ख़ून खौला होगा। लेकिन उस समय भी बहुतों ने उल्टे उन औरतों को ही गालियाँ दी थीं जो सेना को “बदनाम” कर रही थीं। कम से कम ऐसे दो को मैं जानता हूँ जो बाक़ी मामलों में “प्रगतिशील” हैं!

सड़ाँध इस समाज की रग-रग में फैली हुई है! मणिपुर, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली या पूरे देश में रोज़ बेइज़्ज़त की जा रही स्त्रियों के लिए अगर वाक़ई आपके दिल में दर्द है, अगर आप आक्रोश से भर उठते हैं तो इस सड़कर बजबजाते सामाजिक ढाँचे को तबाह करने के लिए कमर कसिए। इसके ध्वंसावशेषों पर ही नये समाज की इमारत खड़ी होगी।

     अपने बलात्कारी रावण बृजभूषण को किस तरह सत्ताधीशों ने बचाया और किस तरह से दिल्ली पुलिस नें कोर्ट में उसकी जमानत का विरोध करने के बजाए चुप रही : हम सबके सामने है. आज यह पापी अट्टहाश करना खुलेआम घूम रहा है. बलात्कारियों का हौसला बुलंद करने का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है.

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