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लुटेरे साम्राज्य की साम्राज्ञी को सलाम कैसे करें?

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मुनेश त्यागी 

       अंग्रेज हमारे यहां व्यापारी बनकर आए थे क्योंकि अंग्रेजों के यहां खाने पीने को कुछ नहीं था, वे गरीबी और पिछड़ेपन का शिकार थे। भारत से आने से पहले उनके यहां नालियों धनंजय तक नहीं थे। भारत में आकर उन्होंने व्यापार तो कम किया मगर भारत को कब्जाने की मुहिम में लग गए और अंततः उन्होंने अपनी-अपनी लूट, झूठ, छल कपट, मक्कारी भ्रष्टाचार और रिश्वत के कारण भारत की धरती को कब्जा लिया और इसे अपनी लूट और चोरी का सबसे बड़ा माध्यम बना लिया। अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक के अनुसार अंग्रेजों ने 1765 से लेकर 1938 के बीच भारत से 45 ट्रिलियन रुपए की चोरी, डकैती और लूट की थी और दुनिया के सबसे विकसित और हंसती खेलती अर्थव्यवस्था को, दुनिया का सबसे गरीब मुल्क बना डाला था। अंग्रेजों द्वारा भारत की यह लूट, दुनिया की अभी तक की सबसे बड़ी लूट है।

     वे सोने के भारत को लूट कर ले गए थे। 1830 में भारत दुनिया का सबसे विकसित और धनी देश था। मगर अंग्रेजों ने इस सोने की चिड़िया को लूट कर एक कंगाल मुल्क बना दिया और उन्होंने अपने देश को भर लिया और वह देखते ही देख कर दुनिया का बहुत बड़ा धनवान देश बन गया जो आज भी उसी लूट के माल पर जिंदा है।

   1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता प्रेमी और लड़ाकू जनता पर, स्वतंत्रता सेनानियों पर, दुनिया के सबसे घृणित और भयंकर अपराध किए थे।  1857 के महान स्वतंत्रता सेनानी बहादुर शाह जफर की आंखों के सामने ही अंग्रेजों द्वारा, उसके दो बेटे और दो पौतों का कत्ल किया गया और उनके सर तश्तरी में रखकर बहादुर शाह जफर के सामने पेश किए गए। दिल्ली से लेकर इलाहाबाद तक सड़कों पर लाशें ही लाशें लटकी नजर आती थीं। भारत की आजादी चाहने वालों के उन्होंने हजारों गांव जला डाले। ये हिंसक और जालिमाना कूकृत्य अंग्रेजों ने भारत की जनता को डराने के लिए किया था, उनके अंदर खौफ बैठाने के लिए किये थे और ऐसा करके उसने अपने को, दुनिया का सबसे क्रूर और जालिम मुल्क  साबित किया था।

     अंग्रेजों के आने से पहले हमारा देश सुखचैन और अमन शांति से जी रहा था। अंग्रेजों ने अपनी लूट और साम्राज्य को कायम करने के लिए और इसे बनाए रखने के लिए, भारत में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के बीज बोए। उन्होंने अपने हित स्वार्थ पूर्ति के लिए, अपने पक्ष में फैसला लेने के लिए, भारत की अदालतों में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी और छलकपट को जन्म दिया और जजों और वकीलों को खरीदा। इस प्रकार भारत में, अदालतों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की शुरुआत अंग्रेजों की, जिसका खामियाजा हम आज भी भुगत रहे हैं।

      अट्ठारह सौ सत्तावन की सबसे बड़ी विरासत और महानता, हिंदू-मुस्लिम की एकता थी। भारत के लुटेरे अंग्रेज, इस हिंदू मुस्लिम एकता से डर गए थे और उन्होंने इस हिंदू मुस्लिम एकता को अपने लुटेरे शासन के लिए खतरनाक माना था। अतः जनता की एकता और हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के लिए उन्होंने भारत में सांप्रदायिकता के बीच बोये। उन्होंने 1906 में हिंदू महासभा की और 1907 में मुस्लिम लीग की स्थापना की और इस प्रकार भारत की जनता को हिंदू मुसलमान में बांट दिया और बेहद अफसोस की बात है कि अंग्रेज अपने इस मिशन में कामयाब हुए और हिंदू महासभा, बाद में आर एस एस और मुस्लिम लीग अपने जन्म काल से लेकर आज तक भारत की जनता की एकता को तोड़ रहे हैं और सांप्रदायिक  विभाजन और जहर, आज भी लुटेरे पूंजीवादी निजाम का सबसे बड़ा रक्षा कवच बना हुआ है।

     जलियांवाला बाग कांड में अंग्रेजों ने दुनिया का सबसे बड़ा नरसंहार और हत्याकांड किया था और इसमें हजारों बच्चों, लोगों और महिलाओं की निर्मम हत्या की और अफसोस की बात यह है कि कई बार मांग करने के बाद भी अंग्रेज महारानी ने, इस हत्याकांड के लिए भारत के लोगों से माफी नहीं मांगी, भारत को लूटने के लिए कभी भी माफी नहीं मांगी और भारत से लूटी गया धन संपदा वापस नहीं की।

      हिंदुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ, जो बाद में हिंदुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र संघ बना, के सदस्यों ने, अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए, उनके खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की घोषणा कर दी थी। इसी नीति के तहत उन्होंने लखनऊ के निकट काकोरी घटना को अंजाम दिया और ब्रिटिश खजाना लूट लिया, जो बाद में काकोरी कांड के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ।

      इस घटना के बाद हमारे क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला। इस मुकदमे में अंग्रेज जज ने कहा था कि हालांकि इन लोगों पर हत्या के सबूत नहीं है, इन्हें प्राण दंड नहीं दिया जा सकता, मगर क्योंकि ये क्रांतिकारी हैं, इंकलाब की बात करते हैं, समाजवाद की बात करते हैं, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद का नारा बुलंद करते हैं, किसी भी दशा में भारत में हिंदू मुस्लिम एकता कायम करने की बात करते हैं और अंग्रेजों को भारत से भगाना चाहते हैं, इसलिए इन्हें मृत्यु दंड देता हूं और इस प्रकार लुटेरे अंग्रेज शासन के दलाल जज ने रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान और राजेंद्र नाथ लाहिडी को फांसी की सजा दे दी और उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

     इसके बाद असेंबली में बम फेंकने के कारण हमारे क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला, इसमें भी अंग्रेज न्याय की पोल खुल गई। अंग्रेज किसी भी दशा में भगत सिंह को फांसी देना चाहते थे, उसे अदालत में अपने बयान नही देना चाहते थे। इससे नाराज होकर जस्टिस आगा हैदर ने ट्रिब्यूनल से इस्तीफा दे दिया। वे भगत सिंह को फांसी देने पर तुले हुए थे, अतः अंग्रेजों ने दूसरे मुसलमान जस्टिस अब्दुल कादिर को नियुक्त किया और फिर इस ट्रिब्यूनल ने गलत तथ्यों पर, गलत आधार पर राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को फांसी दे दी।

     लोग कहते हैं कि अंग्रेज बड़े न्याय प्रिय थे और उनकी न्याय व्यवस्था दुनिया की सबसे बेहतरीन न्याय व्यवस्था थी। मगर ये दोनों केस अंग्रेजों की न्यायप्रियता की पोल खोल कर रख देते हैं। अंग्रेज और उनकी अदालतें, सिर्फ और सिर्फ अपने हित साध रहे थे। आजादी से, उनका न्याय से, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से, उनका कोई लेना-देना नहीं था।

     भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस किसी भी तरह से भारत को आजाद करना चाहते थे। भारत की आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस पहले जर्मन तानाशाह हिटलर से मिले। उसके बाद जापानी तानाशाह तोजो से मिले। मगर जब दोनों तानाशाहों ने भारत को आजादी देने से मना कर दिया, तो एक सोची समझी रणनीति के तहत सुभाष चंद्र बोस अपने साथी हबीबुर्रहमान के साथ सोवियत संघ के राष्ट्रपति स्टालिन से मिलने जा रहे थे, तो अंग्रेजों ने एक साजिश के तहत सुभाष चंद्र बोस को हवाई दुर्घटना में चीन में मार डाला।

      भारत की जनता किसी भी तरह से आजादी पाने को आतुर थी। इसी नीति के तहत भारत में करो या मरो और अंग्रेजों भारत छोड़ो, आंदोलन शुरू किया गया था। इस महान आंदोलन से डर कर और इस आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया, उनके साथ अत्याचार किए जुल्म किए और उसके बाद 1946 में भारत की नेवी सेना ने विद्रोह कर दिया और अंग्रेजी झंडे के स्थान पर उन्होंने तिरंगा, लाल झंडा और हरा झंडा लेकर प्रदर्शन किया और हमारे देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों को भारत से जाने के लिए मजबूर किया।

     अंग्रेज जो भारत को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचा गए थे, वह यह थी कि जब भारत आजाद हुआ तो उन्होंने जाते-जाते भारत के खंड खंड कर दिए और संप्रदाय के आधार पर भारत को टुकड़ों में बांट दिया और इस प्रकार में पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश का निर्माण कर गए। अंग्रेजों की इस नीति के कारण हमारा देश आज भी सांप्रदायिक आधार पर सबसे ज्यादा पीड़ित है। आज भी यहां सबसे ज्यादा संप्रदायिक दंगे होते हैं। इसी के साथ साथ अंग्रेज हमारे यहां पूंजीवादी व्यवस्था के तौर-तरीकों को स्थापित कर गए और मुनाफे पर आधारित व्यवस्था की नीतियों को मजबूत करके गए। आज हमारे देश का शासक वर्ग अंग्रेजों की नीतियों पर चल रहा है। वह आज भी हिंदू और मुसलमान एकता को तोड़ने पर आमादा है, जनता की एकता तोड़ने के लिए वह हिंसा कराता है, दंगे कराता है, नफरत की खेती और राजनीति कर रहा है। आज भी हमारे देश में किसानों और मजदूरों का सबसे ज्यादा शोषण होता है। उनके साथ सबसे ज्यादा अन्याय, शोषण और हिंसा होती है और मानवाधिकारों का सबसे ज्यादा हनन होता है।

    भारत सरकार दो दिन पहले  राजपथ का नाम बदलकर कर कर्तव्य पथ कर रही थी और चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी की वह भारत से गुलामी के तमाम सबूतों को मिटा कर ही दम लेगी। इसके अगले दिन ब्रिटेन की महारानी का निधन हो गया तो, इस पर भारत की सरकार ने घोषणा की कि 11 सितंबर को भारत का राष्ट्रीय झंडा झुका रहेगा। अब एकदम से अंग्रेजों के प्रति इतना प्रेम कहां से उमड़ पड़ा? हम मोदी सरकार के इस निर्णय से सहमत नहीं हैं। हमारे देश को लूटने वाले, हमें सैंकड़ों वर्षों तक गुलाम बना कर रखने वाले साम्राज्य के किसी भी प्रतिनिधि को, हमारा राष्ट्रीय झंडा नहीं झुकाया जाना चाहिए।

    इस प्रकार भारत का शासक वर्ग आज भी अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई साम्प्रदायिक और पूंजीवादी शोषक और अन्याय करने वाली और किसानों मजदूरों का खून पीने वाली नीतियों की राह पर चल रहा है। जिस देश ने हमारे ऊपर साम्राज्य स्थापित करके हमें गुलाम बनाया, हमारे उद्योग धंधे खत्म कर दिए, हमारी खेती को उजाड़ दिया, हमारे हंसते खेलते हुए देश को सबसे गरीब बना दिया, सबसे ज्यादा लूटा और खसोटा, हमारे देश के लाखों-करोड़ों स्वतंत्र सेनानियों को मौत के घाट उतार दिया हो, जो जाते-जाते हमारे देश को सांप्रदायिक आधार पर बांट गए हों और जिन असभ्य अंग्रेजों ने अपने इन कुकर्मों के लिए कभी भी भारत की जनता से माफी नहीं मांगी हो, तो ऐसे में, लुटेरे और हमें गुलाम बनाने वाले लुटेरे साम्राज्य की साम्राज्ञी को, हम कैसे सलाम कर सकते हैं?

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