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हो सके तो हकीम खां सूर का भी नाम मिटा देना….. हाकिम जो हल्दी घाटी का Hero था

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अनुपम गुप्ता

सुना है आजकल मुग़लों के इतिहास मिटाने पर workout हो रहा है,,,, खैर जो मर्जी हो करो हो सके तो हकीम खां सूर का भी नाम मिटा देना,,, वो हाकिम जो हल्दी घाटी का Hero था

महाराणा प्रताप के बहादुर सेनापति #हकीम-खां-सूर के बिना हल्दीघाटी युद्ध का उल्लेख अधूरा है। 18 जून, 1576 की सुबह जब दोनों सेनाएं टकराईं तो प्रताप की ओर से अकबर की सेना को सबसे पहला जवाब हकीम खां सूर के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने ही दिया जबकि अक़बर के सेनापति मान सिंह थे

कहते हैं हाकिम खान से उनके दुश्मन थर थर कांपते थे उनके अंतिम युद्ध में उनकी वीरता दिल दहला देने वाली है जब
हल्दीघाटी के युद्ध के समय हाकिम खान लड़ते लड़ते शहीद हो गए. उनका सिर कट कर गिर गया लेकिन उनका धड घोड़े पर ही रहा. मरने के बाद भी उनका सर कटा शरीर, हाथ में तलवार देखकर मुगलों के पसीने छूट गए.

कुछ दूर जाकर जहाँ उनका धड़ गिरा वहीँ पर उन्हें दफनाया गया.

हाकिम खान के साथ उनकी प्रसिद्ध तलवार को भी दफनाया गया. धीरे धीरे उस क्षेत्र के लोग उन्हें संत मानाने लगे. आज हाकिम खान को पीर का दर्ज़ा प्राप्त है.

शिवाजी का तोपख़ाना प्रमुख एक मुसलमान था। उसका नाम इब्राहिम ख़ान था।

कैसे मिटाओगे महारानी #लक्ष्मी बाई के महान तोपची गौश खान के इतिहास को जिसने उस वक्त की सबसे आधुनिक कड़क बिजली तोप का न केवल अविष्कार किया बल्कि उन्होने बड़ी सावधानी से रास्ते में आए मंदिर को बचाते हुए अंग्रेजों पर गोलों की इतनी बरसात की,, कि अंग्रेजों को पीछे हटना प़डा था,,
रानी लक्ष्मीबाई के पास #ख़ुदा बक्स गौश खान सहित 1500 पठान अंगरक्षक थे, जो हमेशा उनके साथ रहते थे।

बुंदेलखंड में रक्षाबंधन का पर्व सांप्रदायिक सौहार्द का अनूठा पैगाम देता है। 1857 की क्रांति में महारानी लक्ष्मीबाई (Maharani Laxmi Bai ) ने बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय (Nawab Banda Ali Bahadur) को राखी भेजकर फिरंगियों के खिलाफ मदद मांगी थी। बहन की राखी की लाज निभाने के लिए नवाब अली बहादुर द्वितीय 10 हजार सैनिकों के साथ फिरंगियों से युद्ध करने झांसी पहुंच गए थे।
यहाँ तक का अंतिम संस्कार तक उनके मुह बोले भाई नक़ाब अली बहादुर ने किया था

टीपू सुल्तान

कैसे टीपू सुल्तान ने लड़कर दलित महिलाओं को अपना स्तन ढकने का अधिकार दिलाया था?

केरल के त्रावणकोर इलाके, खास तौर पर वहां की महिलाओं के लिए 26 जुलाई का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन 1859 में वहां के महाराजा ने अवर्ण औरतों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़े पहनने की इजाज़त दी थी। अजीब लग सकता है, पर केरल जैसे प्रगतिशील माने जाने वाले राज्य में भी महिलाओं को अंगवस्त्र या ब्लाउज़ पहनने का हक पाने के लिए 50 साल से ज़्यादा सघन संघर्ष करना पड़ा।
इन सब पर भी मन न भरे तो,,,, परमाणु संपन्न भारत से अब्दुल कलाम का भी नाम मिटा देना!!!
पर याद रखना की इतिहास कभी मिटाया नहीं जा सकता है हाँ छिपाया जरूर जा सकता वो भी थोड़े वक्त के लिए!!

संग्रह स्रोत,, विकिपीडिया,, इत्यादि,,
अनुपम गुप्ता 🇮🇳

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