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आत्म’विकास चाहिए तो प्राणायाम-ध्यान करना ही होगा

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 डॉ. प्रिया

    _एक सज्जन ने पूछा है कि ध्यान के बारे में बताइये। मन बिलकुल नहीं लगता कहीं और ना ही ख़ुशी होती है। मदद कीजिये?_

     जो भी मैं यहाँ लिख रही हूँ वह करना अनिवार्य है यदि आप स्वयं में बदलाव चाहते हैं और केवल बातचीत के इच्छुक नहीं हैं। यहाँ उत्तर इसलिये लिख रही हूँ क्यूँकि ऐसे प्रश्न अकसर आते हैं। 

पहली बात यदि कोई व्यक्ति शोषण, मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना से गुज़रा है तो उसे चिकित्सक की सहायता चाहिये पहले थोड़ा सहज होने के लिये। 

      बाक़ी लोग व्यायाम, प्राणायाम जैसे नाड़ी शोधन , कपालभाती कम से कम तीन महीना करें, दो मिनट से शुरू करके १५ मिनट तक पहुँचे।

     कुछ भी नहीं करना चाहते तो प्रातः और सायं सैर करें। नहीं करेंगे तो मस्तिष्क से टॉक्सिंस बाहर नहीं निकालेंगे और कुछ बदलाव नहीं आयेगा। ध्यान के बाद भी व्यायाम ज़रूरी होता है क्यूँकि ध्यान से कैमिकल्स बदलते हैं, तो टॉक्सिंस बाहर फेंकने होते हैं नहीं तो शरीर बीमार और थकावट महसूस करने लगता है। 

अब आध्यात्मिक तरीक़े की बात करें तो मन इसलिये कहीं नहीं लगता और बेचैन या निराश रहता है क्यूँकि मन का स्वभाव है अभाव पर नज़र रखना। जो है उसके लिये मन शुक्रगुज़ार नहीं होता।

    मान लीजिये कि आपके पास प्रेमिका है किंतु पैसा नहीं , पैसा है लेकिन कोई प्यार करने वाला नहीं, नौकरी है तो परमोशन नहीं। जो भी नहीं है वहीं सारा ध्यान। बहुत से कारण हो सकते हैं। 

      क्यूँ होता है ऐसा? अहंकार के कारण। बहुत जल्दी मनचाहा चाहिये, रास्ता नज़र नहीं आता, असफल होते ही दिल हार जाते हैं, स्वयं को एक विशेष रूप में नहीं देख पाते। यदि मेहनत करते हैं और फल नहीं मिलता तो निराश, हताश हो कर बैठ जायेंगे। नशा करेंगे।

असल बात तो यह है कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति का आकर्षण तब तक ही रहता है जब तक उसे भोग ना लिया जाये। नहीं तो रिश्तों में दरार नहीं आती या अधिक भोगने के बाद वस्तु बेकार ना लगती। 

     तो शरीर स्वस्थ रखने के अतिरिक्त क्या करना है कि मन भी स्वस्थ ही रहे? ध्यान करें? क्या ध्यान से सभी समस्याएं दूर हो जायेंगी? नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा? ध्यान करते हुए माँग पर नज़र अधिक है तो ध्यान एक नया तनाव बन जायेगा। 

     ध्यान सहज हो कर करें। एक आधा घंटा जब आँख बंद करते हैं (तीन महीने कम से कम), तो भीतर मौन गहराने लगता है, उत्तर स्वयं ही मिलना शुरू हो जाते हैं। ठहराव बड़ने लगता है। बहुत से अनुभव होते हैं तो उत्साह बड़ता है।

      किसी प्रश्न को लेकर रात में ध्यान के बाद सो जायें, तो कहीं ना कहीं से उत्तर मिल जाता है। ऐसा नहीं की सभी मनोकामनाएँ पूरी हो जायेंगी, लेकिन आपको दूसरे रास्ते मिलेंगे, आपका हठ कम होगा, विवेक बढ़ेगा।आप निराशा में नहीं लगातार प्रयत्न में विश्वास करेंगे।

      परमात्मा के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे अपनी मेहनत के बाद और उसे शांति से स्वीकार करेंगे।

अब जल्दबाज़ी में कुछ नहीं होता। पढ़ाई२५ वर्ष, युवा होने में बीस वर्ष, नौकरी में कहीं पहुँचने के लिये२५-५० वर्ष तो ध्यान का फल अभी कैसे? जैसे संसार के कार्यों में संयम काम आता है, वैसे ही ध्यान में भी समय लगता है।

     बल्कि ज़्यादा समय लगता है क्यूँकि ध्यान बिलकुल नया है, आदत नहीं है। पुरानी आदतें ज़ोर पकड़ती हैं। जैसे किसी को वज़न कम करना हो तो खाने की आदत और भी ज़ोर लगाती है जब तक कि आप दृढ़ निश्चय से ख़ुद पर क़ाबू ना पा लें। उसी तरह ज़रा सी बात हो, कच्चा साधक ध्यान छोड़ देता है। 

     ख़ुद को बदलना चाहते हैं तो  ध्यान और व्यायाम करना ही होगा ताकि निराशा, हताशा से संबध स्वयं ही टूट जाये और प्रज्ञा का विकास हो और आप जीवन को सहजता से जी पायें। मुश्किलें तो सदा रहेंगी किंतु आप बेचैन नहीं होंगे और हर समस्या का हल खोज ही लेंगे।

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