अग्नि आलोक
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अगर आप तंत्र सीखना चाहते हैं तो .. 

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(कोरा कागज बनकर, केवल समय दें)

  *~ डॉ. विकास मानव*

      _बहुत सारे मैसेज/कॉल आते हैं मेरे पास. लड़के-लड़कियां तंत्र सीखने की इच्छा प्रकट करते हैं. लड़कों का अधिक जोर अप्सरा साधना पर होता है और लड़कियों का वशीकरण साधना पर._

  हलांकि प्राच्यविद्या की ओर झुकाव अच्छी बात है. बहुत स्वागतयोग्य बात है कि युवा साथी तंत्र सीखना चाहते हैं.

       लेकिन ये बहुत दुर्भाग्य की बात है कि युवावर्ग को लगता है कि ऑडिओ से, वीडियो से, मैसेंजबाजी से या दौलत लेकर कोई उन्हें फटाफट तंत्र सिखा देगा और वे सिद्ध हो जायेंगे.

 तंत्रसाधना इंटर्नशिप भी नहीं है जो करते करते आ जायेगी. तंत्र चेतना का उच्चतम विषय है. अपौरुषेय वेद इस विषय के अंतर्गत भी एक उपलब्धि हैं.

      ‘अपौरुषेय ’ कहना ही इस बात का द्योतक है कि जिस विषय के अंतर्गत वेद आता है – वह विषय आपको एक इंडिविजुअल व्यक्ति से बढ़कर कुछ बनने की संभावना देता है।

        आप सुगंध-दुर्गध, सर्दी-गर्मी, मन-आत्मा नहीं देख सकते तो क्या इनके अस्तित्व को मानने से इनकार कर सकते हैं? आप हवा नहीं देखते तो क्या वह नहीं है? स्वास मत लें, आपको आपकी औकात पता चल जाएगी.

   अगर आप सत्य नहीं देख पाते तो यह आपका अंधापन है. अगर आप अपेक्षित को अर्जित नहीं कर पाते तो यह आपकी काहिलताजनित विकलांगता है.

  बिल से बाहर निकलें, समय दें : सब देखें, सब अर्जित करें.“ विज्ञान द्वारा अस्वीकृति की स्थिति में नहीं आ पाने और तमाम फैक्टर पर सहमति जताने के बावजूद मूढ़ जन अदृश्य जगत को, पैरासाइकॉलोजी को अविश्वसनीय मान लेते हैं. वजह तंत्र के नाम पर तथाकथित/पथभ्रष्ट तांत्रिकों की लूट और भोगवृत्ति भी रही है। इन दुष्टों द्वारा अज्ञानी, निर्दोष लोगों को सैकड़ों वर्षों से आज तक छला जाता रहा है।

     वस्तुतः ये तांत्रिक होते ही नहीं. स्वार्थ सिद्धि, भोग-शोषण या व्यापार की मंसा से तंत्र में सिद्धि प्राप्त ही नहीं की जा सकती.

     तंत्र ‘सत्कर्म’- ‘योग’ और ‘ध्यान ‘ की ही तरह डायनामिक रिजल्ट देने वाली प्राच्य विद्या है. इस के प्रणेता शिव हैं और प्रथम साधिका उनकी पत्नी शिवा. जो इंसान योग, ध्यान, तंत्र के नाम पऱ किसी से किसी भी रूप में कुछ भी लेता हो : वह अयोग्य और भ्रष्ट है. यही परख की कसौटी है.

     तंत्र के नियम और सिद्धान्त अपनी जगह अटल, अकाट्य और सत्य हैं। इन पर कोई विश्वास करे, न करे लेकिन इनके यथार्थ पर कोई अंतर पड़ने वाला नहीं है।

    सूक्ष्मलोक, प्रेतलोक, अदृश्य शक्तियां, मायावी शक्तियां आदि सभी होती हैं. प्रेतयोनि और देवयोनि को विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है — निगेटिव और पॉजिटिव एनर्ज़ी के रूप में.

  समझे ..?

नहीं समझें?

    ये बात जितनी सुंदर है, उससे कहीं अधिक भयावह भी है. सुंदरता : वास्तविक सुंदरता के साथ भय जुड़ा ही होता है. बिना भय के कैसी सुंदरता?

      तीनों लोकों में जो सबसे सुंदर हैं : महादेवी राजराजेश्वरी ललिता महात्रिपुर सुंदरी – वे ही महाकाली भी हैं : सबसे भयावह ! भय होता है इसलिए इनसे डर लगता है. और बहुत तेज़ आवाज़ में आपका दिमाग हथियार डाल देता है ,आपको अपने मन की ही आवाज़ सुनाई नहीं देती और परिणामस्वरूप आप अपने नगण्य अस्तित्व के प्रति कांशियस हो जाते हो.

   भय लगता है, क्योंकि एक तो तंत्र आपको सच में विरक्त कर देता है. आप इंजॉय सब करते हो लेकिन आप की रगों में बस खून ही बहता है, कोई व्यक्ति वस्तु अथवा स्थान नहीं.

      दूसरा कारण है कि इंडिविजुअलिटी से परे जाने का कोई बहुत खास भौतिक लाभ नहीं होता सिवाय एक बहुत बड़ी चुल्ल के मिटने के. यह चुल्ल है जो आपसे ऐसे प्रश्न करवाती है : जैसे–”ईश्वर है या नहीं है? जीवन का पर्पज क्या है? जीवन क्या है? हम कहां से आए हैं? मृत्यु के बाद क्या होता है?” आदि.

       ऐसे प्रश्न आम जन के लिए, भैंसबुद्धि के लिए, पशुजीवी के लिए बेहूदा हैं.  इनका आम जीवन से कोई बहुत खास लेना देना नहीं है. लेना देना है तो केवल उनके लिए जो उच्चतर जीवन स्तर पर रहते हैं और पूर्णत्व के अभिप्सू हैं.

  इसीलिए भारत में तंत्र का लोप होता चला गया. यहां आमजन का जीवन की रोटी तक सीमित हो गया, और कथित खासजन का जीवन ऐसोआराम तक. त्यौहार केवल पार्टी तक सीमित हो गए और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने “अनपढ़ता” को धर्म का मूल स्त्रोत मान लिया.

   धर्म/तंत्र/वेद/ ध्यान/ सामाजिक विज्ञान/नीति इनके के लिए नहीं हैं.

        जिस “स्वयं की नगण्यता” अनुभव करने से व्यक्ति डरते थे – वे एक ऐसे सामाजिक अंधकार में गिरते चले गए , जहां पर सामाजिक रूप से सारे के सारे ही नगण्य हो गए.

  कैसा वैभव ?

 किसी स्थान का वैभव उस स्थान के लोगों से होता है ना कि स्थान के कारण ! 

     तंत्र को सीखने के लिए बहुत अधिक खाली होना पड़ता है. इतना खाली कि जैसे कोई नवजात शिशु होता है। इतने खाली हो लें और समय दें. आप अपेक्षित तंत्रसिद्धियाँ अर्जित कर लेंगे. बिना आपसे कुछ भी लिये, हम आपको सब सिखा देंगे.

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