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राजस्थान में दूसरी डोज लगाने की रफ्तार धीमी, लेकिन बूस्टर डोज को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का प्रलाप

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एस पी मित्तल, अजमे

राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की त्वरित गति से काम करने की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। 29 दिसंबर को सीएम अशोक गहलोत ने कोरोना संक्रमण को लेकर मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ संवाद किया। इसमें चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भी राय रखी। इस बैठक की कार्यवाही का प्रसारण न्यूज चैनलों पर हुआ। यह बैठक 29 दिसंबर को शाम सवा सात बजे खत्म हुई और पौने आठ बजे सरकार के गृह विभाग ने संयुक्त शासन सचिव सीमा कुमार की ओर से नई गाइड लाइन जारी हो गई। सवाल उठता है कि क्या मात्र 30 मिनट  में मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों और चिकित्सा वैज्ञानिकों की राय का निष्कर्ष निकाल कर गृह विभाग ने गाइडलाइन तैयार कर ली? गाइड लाइन को मुख्यमंत्री से स्वीकृत भी करवा लिया। आधा घंटे में जिस प्रकार गाइड लाइन जारी हुई, उससे प्रतीत होता है कि मंत्रिमंडल की बैठक से पहले ही गाइड लाइन तैयार हो गई थी। बैठक तो सिर्फ दिखाने के लिए की। बैठक के बाद कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया। सीएम गहलोत ने दिन में ही जो निर्देश दिए उसी के मुताबिक बैठक खत्म होते ही गाइड लाइन जारी कर दी गई। सवाल यह भी है कि जब गाइड लाइन पहले से तैयार थी तब मंत्रियों को अपनी राय प्रकट करने को क्यों कहा गया? क्या मंत्रियों की राय कोई मायने नहीं रखती है? जिन लोगों ने न्यूज चैनलों पर बैठक की कार्यवाही का लाइव प्रसारण देखा उन्होंने सुना होगा कि खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने अपनी दबंग आवाज में साफ कहा कि 31 दिसंबर तक राजस्थान में कोई पाबंदी नहीं लगाई जानी चाहिए। चूंकि राजस्थान में नाइट कर्फ्यू प्रभावी नहीं था, इसलिए होटल, रिसोर्ट वालों ने नव वर्ष के जश्न की बुकिंग कर ली है। अब एक-दो दिन पहले बुकिंग निरस्त नहीं की जा सकती है। खाचरियावास ने मुख्यमंत्री को सलाह दी थी कि पाबंदियां 1 जनवरी से लागू की जाए। जबकि चिकित्सा मंत्री परसा राम मदेरणा का कहना रहा कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए तत्काल प्रभाव से पाबंदियां लगाई जाएं। हालांकि अब नई गाइड लाइन जारी हो गई है, लेकिन देखना होगा कि इन पर अमल कैसे हो सकता है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के साथ ही एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र के विरुद्ध प्रलाप शुरू कर दिया है सीएम गहलोत का कहना है कि केंद्र सरकार के पास बूस्टर  डोज की वैक्सीन नहीं है, इसलिए प्रीकॉशन डोज की चालाकी की गई है। जबकि सब जानते हैं कि वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज लगाने में अन्य राज्यों के मुकाबले राजस्थान बहुत फिसड्डी है। खुद सीएम गहलोत वैक्सीन लगाने की धीमी रफ्तार से चिंतित है। इसलिए अब वैक्सीन को अनिवार्य किया गया है। राजस्थान में लाखों लोग पहली डोल लगवा कर गायब हो गए है। जबकि पहले डोज के 45 दिन बाद दूसरी डोज जरूरी थी। जिस प्रदेश में लाखों लोगों ने दूसरी डोज भी नहीं लगवाई है उस प्रदेश के मुख्यमंत्री बूस्टर डोज को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना कर रहे है। यही भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती है।

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