अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

शुचिता के नाम पर क्या आकांक्षा जैसी लड़कियों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिये?

Share

कुमुदिनी पति

सभ्य समाज के लिए ऐसे मामले अस्पृश्य होते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि आकांक्षा जैसी लड़कियां खुद अपनी बढ़ी हुई अवास्तविक आकांक्षाओं की शिकार होती हैं और अक्सर उनकी कहानी का पटाक्षेप तभी होता है जब वे इस दुनिया से विदा ले चुकती हैं।

वाराणसी के चर्चित आकांक्षा दुबे काण्ड में नामजद आरोपी समर सिंह को गिरफ्तार करने में उत्तर प्रदेश पुलिस को दो हफ्ते का समय लग गया जबकि वाराणसी प्रधानमंत्री का अपना चुनाव क्षेत्र है। इसी बीच अफवाहों का बाज़ार गर्म होता रहा और साशल मीडिया पर तमाम सनसनीखेज़ वीडियो साझा किये जाते रहे जिनमें से कई तो खौफनाक थे।

कम से कम 20 लाख लोगों ने इस भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की अदाकारा का आखिरी वीडियो देखा (2 बजे रात के बाद) जो मौत से कुछ पहले उसने साझा किया था। वह एक घायल पक्षी की भांति निरीह लग रही थी, लगातार रो रही थी और अपने ही हाथ से अपना मुंह दबाए हुए थी, मानो चीखना चाहती हो पर किसी के भय से अपने को रोके हुए हो। आत्महत्या हो या हत्या, इस मौत की कहानी दर्दनाक होगी, यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।

आकांक्षा का पक्ष लेना क्यों जरूरी?

सभ्य समाज के लिए ऐसे मामले अस्पृश्य होते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि आकांक्षा जैसी लड़कियां खुद अपनी बढ़ी हुई अवास्तविक आकांक्षाओं की शिकार होती हैं और अक्सर उनकी कहानी का पटाक्षेप तभी होता है जब वे इस दुनिया से विदा ले चुकती हैं। इसके पहले तक उनकी लाइफस्टाइल मौज-मस्ती, फैन्स का प्रोत्साहन, एक डायरेक्टर से दूसरे डायरेक्टर व प्रोड्यूसर को पकड़ने-छोड़ने और सुर्खियां बटोरने में सराबोर रहती है। वे ग्लैमर की दुनिया में तबतक विचरण करती हैं जबतक उनके साथ अनहोनी नहीं घट जाती। और तबतक बहुत देर हो चुकी होती है।

बलिया के कुंवर सिंह इंटरमीडियेट कॉलेज के प्रधानाचार्य शशि कुमार सिंह कहते हैं, ‘‘यह दौर कुछ ऐसा है कि अधिकतर महत्वाकांक्षी लोग दौलत और शोहरत कमाने के लिये नैतिकता, मर्यादा व शुचिता की परवाह नहीं करते। ये चीज़े उनकी नज़रों में प्रतिगामी और बकवास हैं क्योंकि बचपन से ही उन्हें घुट्टी पिलाई जाती है कि साध्य पर ध्यान देना चाहिये, साधन पर नहीं। ग्लैमर की दुनिया तो वैसे भी नकलीपन, रोमांच और सनसनी के अवयवों से निर्मित होती है। वहां रिश्ते भी अपनी सहूलियत और योजना के तहत बनाए जाते हैं।’’

तो शुचिता के नाम पर क्या आकांक्षा जैसी लड़कियों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिये?

उत्तर प्रदेश आंगनवाड़ी सुपरवाइजर्स एसोसिएशन की रेणु शुक्ला कहती हैं, ‘‘इस घटना को समाज में महिलाओं की स्थिति से जोड़कर ही देखना चाहिये। लड़कियों के लिए जब पढ़ाई लिखाई के संसाधन नहीं होते और नौकरियां मिलना और मुश्किल होता जा रहा हो; साथ ही परिवार में समाज को लेकर कोई समझदारी न होती हो, तो लड़कियों को कोई भी मुम्बई और बॉलीवुड के सपने दिखाकर मूर्ख बना सकता है। फिर, आसान तरीके से अधिक पैसा और नाम कमाने की ख्वाइश तो बहुतों में रहती है। आखिर, जन चेतना विकसित करने काम तो कोई कर नहीं रहा।’’

चहुं ओर अप-संस्कृति का बोलबाला

सच में अगर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की बात करें तो वह टीआरपी पर सर्वाइव करती है। आधुनिक तकनीक ने मनोरंजन को हर हाथ तक पहुंचा दिया है। और, अगर हम बहुत बड़े कैन्वास पर देखें तो आज ओटीटी प्लेटफॉर्म और वेब सीरीज़ का ज़माना है। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को इससे सबसे अधिक फायदा मिला है, क्योंकि भोजपुरी डायस्पोरा (विदेश में रहने वाले प्रवासी) बहुत बड़ा है। अब तो भोजपुरी ओटीटी ऐप भी लॉन्च हो चुका है और भोजपुरी वेब सीरीज़ खासे लोकप्रिय हैं। लोग कहेंगे कि हम क्यों सिर्फ भाजपुरी फिल्म इंडस्ट्री (भोजीवुड) की बात कर रहे हैं, जबकि अश्लीलता तो हर जगह है?

दरअसल जैसे ही आप भोजीवुड का नाम लेते हैं, तो किसी भी व्यक्ति के दिमाग में एक ही छवि बनती है-भोजपुरी के द्विअर्थी गीत, ढिंग-चिक-ढिंग-चिक बजने वाला घटिया संगीत, भोंड़े व सेक्सी नाच और देह प्रदर्शन जो हर त्योहार, हर समारोह या राजनेताओं व धनाड्यों के बच्चों के विवाह में ‘धूम मचा’ रहे हैं। नाइट बसों में अश्लील भोजपुरी फिल्में दिखाई जा रही हैं और टेम्पो में भद्दे गाने भी बजते हैं।

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, बंगाल में लगभग हर गुमटी पर ऐसे सीडी बजते हैं। सबसे दुखद तो यह है कि अब क्रान्तिकारी वाम आन्दोलन के गढ़ रहे आरा, बक्सर, पटना, छपरा और बलिया में तक इनका बोलबाला बढ़ता जा रहा है, क्योंकि किसी स्वस्थ विकल्प पर मेहनत की ही नहीं गई। जहां लाखों लोग भोजीवुड के गायक-कलाकारों को सुनने के लिए मारा-मारी करते हैं, वहां कितने लोग भिखारी ठाकुर का ‘रुपया गिनाई दिहल, पगहा धराई दिहल’,‘नगरिया छोर के जाए के परी…’ या गोरख पाण्डे के ‘जनता की आई पलटनिया हिलेले झकझोर दुनिया..’, ‘गुलमिया अब हम नहीं बजइबो, अजदिया हमरा के भावेले…’ जैसे गीत सुनते हैं?

धन और गीतकारों के अभाव में जनवादी गीतों के सीडी बहुत ही कम बनते और बिकते हैं। और, शायद वाम आनदोलन से जुड़े लोग जनवादी गीतों, बेहतर लोक गीतों और नाटकों व नृत्यों के महत्व को नहीं समझते हैं। इसलिए इनका व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं है।

पटना के वरिष्ठ पत्रकार प्रणव चौधरी से बात करने पर पता चला कि अधिकतर लोग भोजीवुड की पहुंच और आर्थिक मजबूती का आंकलन ही नहीं कर पाते। इसमें विदेशों में रह रहे भोजपुरी डायस्पोरा का उसमें बहुत बड़ा योगदान है। मॉरीशस, सिंगापुर, फिजी, सूरीनाम, ट्रिनिदाद, टोबैगो, जमाका, गुयाना से लेकर कैरिबियन, दक्षिण अफ्रीका और दुबई, आबू धाबी जैसे देशों में काफी बड़ा भोजपुरी डायस्पोरा है। आंकड़ों की मानें तो उनकी संख्या करोड़ों में है।

प्रणव कहते हैं, ‘‘बाहर से इतना राजस्व आता है कि इसके सेलिब्रिटी करोड़ों में नहीं अरबों में खेलते हैं। वे बड़े लाव-लस्कर के साथ चलते हैं और 50-50 बाउन्सर भी रखते हैं। इनके लिंक बॉलीवुड में सलमान खान, शहरुख खान और अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार्स से लेकर भाजपा के शीर्ष नेताओं, अखिलेश यादव और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद तक से है। आप इन्हें बिग बॉस और कपिल शर्मा के शोज़ में भी देखेंगे। कहने का मतलब कि ये ग्लैमर जगत में रचे-बसे हैं। सोशल मीडिया में इनके कई कई लाख फॉलोवर भी होते हैं। मसलन खेसारी लाल के 29 लाख फॉलोवर्स हैं, और पवन सिंह के 25 लाख।”

“निश्चित ही भोजपgरी के नाम पर इन्हीं का बोलबाला है और गरीब व निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों की लड़कियां, जो अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं, पर थोड़ा बहुत नाचना-गाना जानती हैं, अपने को इंडस्ट्री में लॉन्च करने के सपने देखती हैं, ऐक्ट्रेस बनने की आकांक्षा रखती हैं। कोई छोटा ही सही स्लॉट मिल जाता है तो वे एन्ट्री ले लेती हैं। इनका भयानक शोषण भी होता है…बाकी हमारे सामने है ही। काफी समय से राजनेता सोन मेले में ऐसे भोंडे गीत और नृत्य की प्रस्तुतियां बड़े चाव से देखते आए हैं, तो यह कोई नई बात नहीं है।’’

पूछने पर कि इसे कैसे रोका जाए, वे कहते हैं, ‘‘मुश्किल है क्योंकि इसकी एक पैरलल इकोनॉमी तैयार हो चुकी है। फिर भी सरकार को काशिश करनी चाहिये।’’

क्या भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का ‘मी टू’ समय आ गया है?

आकांक्षा दुबे की हत्या ने भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की कुछ लड़कियों को बोलने पर मजबूर कर दिया जैसा कि ‘मी टू’ कैंपेन के समय हुआ था। अक्षरा सिंह मीडिया में कहती हुई सुनी जाती है कि लड़कियों को अपने दम पर आगे बढ़ना चाहिये और अपने काम के जरिये पहचान बनानी चाहिये, न कि इस या उस डायरेक्टर या हीरो के आगे-पीछे घूमकर। वह बताती है कि कुछ लोग 2018 से उसके पीछे पड़े हुए हैं और उसके मॉर्फ्ड गंदा वीडियो वायरल कर रहे हैं। वह पूछती हैं कि क्या उसे भी आकांक्षा की तरह मौत के घाट उतारने की तैयारी है?

एक और अदाकारा बताती है कि उसे जो गाना सुनाया गया, बाद में उसे बदल दिया गया और ऐक्टर उसे इतना ‘‘अनकमफर्टेबल’’ करता है कि बार-बार कोरियोग्राफर को हस्तक्षेप करना पड़ता है, पर उसके कान में जूं नहीं रेंगती।

एक अदाकारा बताती है कि लड़कियों को प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, ऐक्टर सभी ‘‘कम्प्रोमाइज़’’ करने को कहते रहते हैं। जो लड़की मना करती है, उसे काम ही नहीं मिलता। प्रियंका पंडित बोलती है कि एक एमएमएस ने उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी। अब वह कृष्ण भक्ति में समय गुज़ारती है।

आकांक्षा की मां ने भी मीडिया के सामने कहा है कि ‘‘बेटी बताई थी कि उसको डायरेक्टर समर सिंह 3 साल से मानसिक व शारीरिक रूप से टॉर्चर करता था। और उसका दोस्त प्रोड्यूसर संजय सिंह मौत से कुछ ही दिन पहले जान से मारने की धमकी दे चुका था। न ही आकांक्षा को पैसा दिया जाता न किसी और के साथ काम करने दिया जाता। जब वह अपनी मर्जी से दूसरों के साथ काम करने निकल गई, उसे ब्लैकमेल कर मौत के घाट उतार दिया गया।’’

पर सवाल उठता है कि इस भोजीवुड माफिया से भिड़ने का माद्दा है किसमें?

टीवी और बॉलीवुड की संस्कृति भी कोई भिन्न नहीं है

नारी स्वतंत्रता की एक प्रवक्ता और खुद भोजपुरी भाषा के लिए काम कर रही स्वर्णकान्ता कहती हैं कि ये लड़कियां बहुत कुछ नहीं कर सकतीं क्योंकि उनके पास वैकल्पिक रोज़गार नहीं है जिससे इतनी जल्दी और इतना अधिक पैसा मिल सकेगा। कई बार तो पूरा परिवार इन लड़कियों की कमाई पर निर्भर रहता है। यहीं नहीं टीवी कलाकार भी डिप्रेशन में जाते हैं या आत्महत्या कर रहे हैं।

बिहार के सुशान्त सिंह राजपूत की मैनेजर और उसकी खुद की मौत की गुत्थी भी आज तक सुलझी नहीं। उनके अनुसार हमें वैकल्पिक जनवादी संस्कृत का व्यापक प्रचार-प्रसार करना चाहिये। रवीश कुमार का चैनल बिहान इस दिशा में काम कर रहा है। और एक अच्छा गाना ‘बम्बई में का बा’ मनोज बाजपेई और अनुराग ने बनाया है, जो बम्बई में श्रमिकों के जीवन का चित्रण करता है। इसी तरह चंदन तिवारी का कबले गोरकी के करब गुलामी बालमा आदि हैं। पर कम ही लोग इनके बारे में जानते हैं।’’

बॉलीवुड में भी कई अच्छी अदाकाराओं की मौतें रहस्यमय रहीं-फेहरिस्त लम्बी है-मीना कुमारी से लेकर सिल्क स्मिथा, परवीन बाबी, दिव्या भारती, ज़िया खान, नफीसा जोसफ, श्रीदेवी आदि। लेकिन ये सारे मामले दबा दिये गए। इनके त्रासद जीवन पर कहानियां लिखी जाती हैं, फिल्में भी बन जाती हैं, पर फिल्म जगत को कोई फर्क नहीं पड़ता है। स्ट्रगलर्स का शोषण जारी रहता है। यहां पूंजी बड़े स्केल पर काम करती है, तो ग्लैमर ही प्रधान रहता है-दूध में मक्खी गिर भी गई तो उसे निकालकर फेंक दिया जाता है। पर भोजीवुड में उतनी बड़ी पूंजी का कारोबार नहीं होता।

कई बार तो हम याद करते हैं कि ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ाइबो’ (उस समय 5 लाख में बनी और 75 लाख कमाई) या ‘नदिया के पार’(80 लाख में बनी और 4.2 करोड़ कमाई) जैसी छोटे बजट की साफ-सुथरी फिल्मों को भी बहुत लोकप्रियता मिली थी। बाद में गाने बनने लगे और फिर पिक्चर। पर इनका स्तर लगातार गिरता चला गया।

ऐसा लगता है जैसे कि एक प्यारी, लोकप्रिय भाषा का दोहन करने में सब लग गए। अब तो 20-30 वर्ष की युवतियों के सेक्सुअलाइज़्ड प्रदर्शन पर ही सारा दारोमदार है। और जैसे-जैसे टीआरपी बढ़ रही है, क्वालिटी गिरती जा रही है। अब तो अधिकतर निर्माता, निर्देशक, गायक, ऐक्टर सब एक ही व्यक्ति होता है। लड़की तो महज एक एक्स्ट्रा की तरह होती है, जिसे इस्तेमाल करके पैसा कमा लिया जाता है, कुछ समय बाद हटाकर दूसरी और जवान लड़की आ जाती है और यह किस्सा जारी रहता है।

शशि कुमार कहते हैं, ‘‘आकांक्षा की मौत जैसी दुखद घटनाएं कम तो की जा सकती हैं, पूरी तरह रोकी नहीं जा सकती जबतक कि इनके संभावित शिकार शोषण से उबरने के लिए पलटवार करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर लेते।’’पर क्या उनके लिए यह संभव है जबतक इस संस्कृति के विरुद्ध एक सांस्कृतिक व सामाजिक ‘क्रान्ति’का सूत्रपात नहीं होता। तबतक कई आकांक्षाओं की आकांक्षा का गला घोंटा जाता रहेगा। आखिर कब जागेंगे भोजपुरी संस्थानों और उनसे जुड़े लेखक-साहित्यकार व रंगकर्मी?

(कुमुदिनी पति स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं।)

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें