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भारतीय समाज का लाइलाज ‘कैंसर ‘हैं वर्णवाद,जातिवाद और छुआ-छूत

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   मुनेश त्यागी

भारत की आजादी के स्वतंत्रता आंदोलन में और आजादी मिलने के मौके पर यह सोचा गया था कि अंग्रेजों की गुलामी के बाद, भारतीय समाज में समरसता आएगी, भाईचारा आएगा, बराबरी की भावना आएगी, हजारों साल पुराने शोषण, जुल्म, गरीबी, मुफलिसी, छुआछूत ऊंच -नीच और छोटे – बड़े की मानसिकता और सोच का खात्मा हो जाएगा, भारत के सब लोग बराबर होंगे, कोई छोटा नहीं होगा, कोई बड़ा नहीं होगा, सब एक समान होंगे, सब में आपसी भाई-चारा होगा।

                 इसी कामना और भावना को लेकर भारत का संविधान बनाया गया जिसमें प्रस्तावित किया गया कि भारत में एक समतामूलक समाजवादी और भाईचारे पर आधारित समाज का निर्माण किया जाएगा और उसमें यह भी प्रस्तावित किया गया की हजारों साल से चली आ रही गुलामी, छोटे -बड़े, ऊंच-नीच और छुआछूत की भावना का और सोच और मानसिकता का समूल विनाश कर दिया जाएगा, इनको जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया जाएगा और धराशाई कर दिया जाएगा।

               मगर ये सारे विचार और सिद्धांत, एक ख्वाब की भांति सिद्ध हुए हैं । संविधान में लिखित और वर्णित इन विचारों को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका ! आज हम देखते हैं कि भारत में वही हजारों साल पुरानी अमानवीय सोच है, वही मानसिकता है, वही विचार हैं, जिसमें बहुत से लोगों और जातियों को आज भी छोटा और नीच समझा जाता है। उसकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर कोई पहचान नहीं है। वे आज भी हजारों साल पहले वाली स्थिति में रह रहे हैं !

              इसी का परिणाम है कि हमारे समाज में आज भी वर्णवाद ,जातिवाद और छुआ-छूत की जन विरोधी, अमानुषिक, समाज विरोधी और देश विरोधी भावनाएं और सोच मौजूद हैं। यहां पर सवाल उठता है कि आखिर आजादी के 75 साल बाद भी और संविधान में यह सब लिखे जाने के बाद भी यह मानसिकता क्यों बनी हुई है ? यह मानसिकता क्यों बरकरार है ?

             जब हम इतिहास के पन्नों पर जाते हैं और भारतीय समाज के बारे में सोचते हैं तो हम पाते हैं कि यह व्यवहार, सोच और मानसिकता सामंती, मनुवादी और पूंजीवादी सोच और मानसिकता के काकटेल का परिणाम है और यह समस्या आज भी बनी हुई है ! आजादी के बाद इस जातिवाद, वर्णवाद और छुआ-छूत की समस्या को दूर नहीं किया गया। इस से निजात पाने की कोशिश नहीं की गई। ये चोरी छिपे हमारी सोच और व्यवहार में बने रहे।

आखिर भारतीय समाज से जातिवादी दुराग्रह हटता क्यों नहीं ! 

          हमारे भारतीय समाज में तथाकथित सबस बड़े कवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में निम्न दोहों या चौपाइयों को लिखकर पहले से ही जातिवादी वैमनस्यता से दग्ध भारतीय समाज में जातिवादी वैमनस्यता को और ज्यादा सुदृढ़ किया है उदाहरणार्थ –

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु , नारी ..!

                      ये सब ताड़न के अधिकारी..!

और…. 

पूजिए विप्र ज्ञान गुण हीना …..!

        पूजिए ना शूद्र गुण ज्ञान प्रवीणा…!

साम्यवादी देशों की तर्ज पर  भारत में भी यह आजमाया जाय ! 

            सवाल उठता है कि ऐसे में क्या किया जाए ? जब हम इतिहास पर नजर डालते हैं तो हमें पता चलता है कि सोवियत संघ रूस के महान नेता ब्लादीमिर ईल्यिच लेनिन के और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में  वर्ष 1917 की रूसी क्रांति के बाद वहां पर भाई-चारे की भावना पैदा की गई, वहां पर आदमी आदमी के बीच के अंतर, भेद-भाव और छोटे बड़े की सोच को,ऊंच-नीच की भावना को समूल खत्म कर दिया गया। इस अमानवीय भावना को और इस सोच को, खत्म करने के लिए रूसी क्रांति ने सफाई कर्मचारियों और दबे कुचले लोगों को आर्थिक समानता मुहैया कराई और दूसरे कर्मचारियों के मुकाबले सफाई कर्मचारियों की तनख्वाह में बेतहाशा वृद्धि कर दी गई !

              ऐसा करने पर देखते ही देखते कुछ समय बाद, वहां से समाज से छोटे – बड़े, ऊंच-नीच, असमानता और छुआ-छूत की भावना बिल्कुल समाप्त हो गई ! लोग आपसी भाई-चारे से रहने लगे। उनके बीच की कड़वाहट खत्म हो गई। उनकी बीच ऊंच -नीच और छोटे – बड़े की भावना खत्म हो गई और इस प्रकार क्रांति के महान कारनामों ने इस जनविरोधी और अमानवीय सोच को धराशाई कर दिया गया !

           आमतौर से समाजवादी मुल्कों में वहां हुईं क्रांतियों के बाद यह देखा गया है कि वहां समाज में सामाजिक सौहार्द पैदा किया गया,सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की अनिवार्य कार्य नीतियां लागू की गईं, छोटे – बड़े की भावना को खत्म कर दिया गया है, छुआ-छूत की भावना को समूल विनाश कर दिया गया है और लोगों में आपस में भाई-चारे की, आपसी मित्रता और दोस्ती की भावना पैदा की गई है और वहां से छुआ-छूत और छोटे -बड़े की भावना खत्म कर दी गई है।

 पूंजीवादी और सामंती सोच के देश मनुस्मृति की वर्णवादी सोच को और मजबूत करना चाहते हैं !

                इसके विपरीत पूंजीवादी और सामंती सोच के संकीर्ण सोए वाले देश और वहां के समाज व्यवस्था में आज हम देख रहे हैं कि पूंजीवादी, सामंती और मनुवादी सोच की मानसिकता भारत से खत्म ही नहीं हो रही है ! हमारा यह भी कहना है कि पिछले 75 वर्षों में कांग्रेस,जनता दल आदि ने भारतीय समाज में युगों-युगों से दीमक की तरह जड़ जमाए इस सोच को खत्म करने की कोशिश ही नहीं की गई ! इस जनविरोधी और अमानवीय सोच एवं व्यवहार को धराशाई नहीं किया गया और यह जनविरोधी और मानव विरोधी सोच, हमारी सोच और व्यवहार का हिस्सा बनी रही। अब वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो मनुस्मृति आधारित नरपिशाचिक घोर जातिवादी और धार्मिक वैमनस्यता के रथ पर सवार होकर ही 2047तक सत्ता में बने रहने का मन में सपना संजोए हुए है !

                   वर्णवाद,जातिवाद और छुआ-छूत सामाजिक कोढ़ हैं। इनको बाकायदा जानबूझकर बनाए रखा गया है, क्योंकि सामंतवादी,मनुवादी और पूंजीवादी सोच का कॉकटेल इस जनविरोधी और मानव विरोधी सोच और मानसिकता को खत्म नहीं कर रहा है बल्कि पिछले दिनों में हमने देखा है कि यह समस्या और बढ़ गई है जिसका परिणाम हमने देखा है कि राजस्थान में एक 9 वर्ष के बच्चे को तथाकथित एक उच्च जाति के हेडमास्टर के मटके से पानी पी लेने के कथित अक्षम्य अपराध नाम पर छुआ-छूत की घोर जातिवादी मानसिकता ने उस प्रधानाचार्य ने उसे जान से ही मार दिया गया, उसकी निर्मम हत्या कर दी ! अभी-अभी उत्तर प्रदेश से खबर आई है कि एक शिक्षक ने अपने एक दलित छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी क्योंकि वह समय से अपनी फीस नहीं जमा कर पाया था ! उत्तर प्रदेश का यह मामला राजस्थान जैसे राष्ट्रव्यापी नहीं होगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश राज्य की बागडोर एक ऐसे कथित योगी के साथ है,जो मोदीजी के बाद दूसरे पायदान पर खड़ा जातिवाद का घोर समर्थक हैं !..और वह दलितों को,उनके बच्चे और बच्चियों को घोर दमन करने के लिए कुख्यात है ! ये वही व्यक्ति है जो हाथरस के एक दलित बेटी के शव को उनके परिजनों की इच्छा के विरूद्ध जबरन अपनी पुलिस से रात के अंधेरे में जलाकर खाक कर दिया था !  

भारतीय समाज से जातिवाद कैसे हटे ..कुछ सुझाव..

               हम भारतीय समाज में देख रहे हैं कि ‘आज भी दलितों को, बाल्मीकि युवकों को मूछ रखने की इजाजत नहीं है, कई इलाकों में वे साइकिल पर भी नहीं चल सकते, कई इलाकों में वे अपनी शादी में भी दूल्हे बनकर घोड़ी पर नहीं बैठ सकते। अब समय आ गया है और वक्त का तकाजा है कि जनता में समाजवादी सोच और मानसिकता पैदा की जाए, उनके अंदर से छोटे बड़े ऊंच-नीच की मानसिकता को खत्म किया जाए और समाजवादी सोच और मानसिकता का समाज कायम किया जाये। इसके बिना हमारे समाज से वर्णवाद,जातिवाद, छुआ-छूत, गैरबराबरी की भावना और सोच को कभी भी खत्म या नेस्तनाबूद ही नहीं किया जा सकता !

                इन जनविरोधी भावनाओं और समाजविरोधी, मानवविरोधी सोच और मानसिक विकृतियों के उन्मूलन का, इनके समूल विनाश का अभियान चलाया जाए और जनता में आपसी भाई-चारे,बराबरी,प्रेम,सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी जाए,सारे दलितों, बाल्मिकियों, सफाई कर्मचारियों और गरीबों को आर्थिक रूप से साम्यवादी देशों यथा क्यूबा, विएतनाम ,चीन और रूस की तर्ज पर मजबूत बनाया जाए, इन्हें रोजगार दिए जाएं, नौकरियां दी जाए और इनकी तनख्वाहों में दूसरे कर्मचारियों की मुकाबले और ज्यादा वृद्धि की जाए, काम को काम समझा जाए और श्रम को आदर और सम्मान दिया जाए और इन्हें मानवीय दृष्टि से देखा जाए, तभी हमारे समाज से वर्णवाद, जातिवाद, छोटे- बड़े, ऊंच-नीच और छुआ-छूत की भावना का खात्मा हो ही सकता है।

         -मुनेश त्यागी,जनकवि और सीनियर ऐडवोकेट,मेरठ कोर्ट,मेरठ, संपर्क- 98371 51641

           संकलन-निर्मल कुमार शर्मा,’गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण ‘, गाजियाबाद, उप्र, संपर्क-9910629632,

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