मालवा का होल्कर राज्य जहां 1818 में मंदसौर संधि के पश्चात रेजीडेंसी क्षेत्र अंग्रेजों की लिए अलग से निर्मित किया गया था। छावनी क्षेत्र और रेजीडेंसी क्षेत्र में होल्कर राज्य के कानून लागू नहीं होते थे। वहां अंग्रेजों के नियम लागू होते थे। जब अंग्रेज अधिकारी और सैनिक इस क्षेत्र में रहने लगे तो उन्होंने इस क्षेत्र में व्हाइट चर्च स्थापित किया था। होल्कर राज्य के कुछ दस्तावेजों में उल्लेख मिलता है कि 1882 में दो ईसाई धर्म प्रचारक इंदौर आए थे, जिनका नाम रेवरेंड जेएफ कैम्पबेल और जे विल्की थे।25 दिसंबर आने से पूर्व ही ईसाई समाज में उत्साह हो जाता है। गिरजाघरों में साज-सज्जा और रौनक होना आरंभ हो जाती है। वैसे तो 25 दिसंबर को बड़ा दिन भी कहते है और इस तारीख से दिन बड़े होना भी आरंभ हो जाते है, यानि सूर्य उत्तरायण, मकरसंक्राति से सूर्य को उत्तरायण होना मानते है।
पहला प्राचीन व्हाइट चर्च
रेजीडेंसी कोठी में एजी जी रहते थे और उनसे जुड़े तमाम अधिकारियों के निवास भी इसी क्षेत्र में थे, इसीलिए इंदौर में प्राचीनतम चर्च इसी क्षेत्र में है। पहला प्राचीन व्हाइट चर्च है जो 1857 में निर्मित हुआ जो संत अनास चर्च था, यह एक इंदौर की प्राचीन धरोहर है। दूसरा रेड चर्च जो रॉबर्ट्स नर्सिंग होम के समीप रेड चर्च है, जिसे होली फैमली के नाम से भी जाना जाता है, यह 1869 में निर्मित हुआ था। इसे महू निवासी फ़्रांसिसी पादरी फादर पाली कॉर्प ने जनसहयोग से निर्मित करवाया था। उस समय इसका नाम सेंट फ्रांसिस क्रैथेडल था।
ऐतिहासिक प्राचीन भवनों में एक विरासत
होल्कर राज्य और ईसाई मिशनरियों के मध्य विवाद निर्मित हो गया था। यह हल होने के बाद नगर में कनाडा के यूनाइटेड चर्च की मिशनरी ने 1884 में जीपीओ के समीप कनेडियन मिशन कॉलेज आरंभ किया था। धीरे-धीरे ईसाई समुदाय की जनसंख्या नगर में बढ़ती गई और अन्य स्थानों पर चर्च स्थापित होते गए। शिक्षा के विकास में भी मिशन स्कूलों का नगर में महत्वपूर्ण योगदान है। आज 25 दिसंबर को इन दोनों चर्चों में रौनक रहेगी। ये भवन इंदौर की ऐतिहासिक प्राचीन भवनों में एक विरासत है।