नई दिल्ली*। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की राष्ट्रीय समिति ने असम सरकार द्वारा “असम मिंया परिषद के पदाधिकारियों की अनैतिक गिरफ्तारी और “मिंया संस्कृति” के संग्रहालय को जबरन बंद करने की कड़ी भर्त्सना की है। राष्ट्रीय समिति की ओर से जारी एक वक्तव्य में इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा है कि उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में बंगाल से बहुत सारे मुसलमानों को अंग्रेज व्यापारी चाय बागानों में काम करने के लिए असम लेकर आये थे। बंगला भाषी यह मुस्लिम समुदाय तभी से अपनी अस्मिता और संस्कृति के लिए संघर्षरत रहा है। हिकारत में उसके लिए दिए गए “मिंया’ नाम को उन्होंने संघर्ष के सांस्कृतिक हथियार के रूप में अपना लिया। “मिंया कविता” इसी संघर्ष की उपज है। कुछ वर्षों पहले हाफिज अहमद की कविता “मैं एक मिंया हूँ” जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो पूरी दुनिया का ध्यान इस समुदाय की तकलीफों और सांस्कृतिक पहचान के संघर्ष की ओर गया। असम मिंया परिषद द्वारा “मिंया” संस्कृति को पहचान देने वाली चीजों,सांस्कृतिक उपकरणों को संग्रहित करके संग्रहालय की स्थापना परिषद के अध्यक्ष श्री मोहर अली के दपकरभीटा, ग्वालपाड़ा आवास पर 25 अक्टूबर को की गई थी। जिसे 26 अक्टूबर को ही जबरन बन्द कर दिया गया तथा मोहर अली समेत तीन लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
आर एस एस और बीजेपी प्रारम्भ से ही असम में ध्रुवीकरण के उद्देश्य से इस समुदाय को बाहरी और राष्ट्रविरोधी साबित करने की मुहिम में लगे रहे हैं और समय समय पर असम सरकार इन्हें निशाना बनाती रही है जो निंदनीय है।
इप्टा का स्पष्ट मत है कि परिषद के पदाधिकारियों के आतंकवादी समूहों से रिश्ते का आरोप निराधार व परिषद की छवि को धूमिल करने का एक प्रयास है। इप्टा असम मिंया परिषद के पदाधिकारियों की अविलंब रिहाई एवं संग्रहालय को खोलने की मांग करती है।
राकेश,
राष्ट्रीय महासचिव, इप्टा