अग्नि आलोक

क्या सच में औरत देवी है? / आज़ाद देश की आज़ादी / समझो माहवारी का दर्द / बहुत हुआ अब मोमबत्ती जलाना

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क्या सच में औरत देवी है?

सविता देवीकांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

सब कहते हैं औरत देवी का रूप है,
फिर क्या ही फ़र्क पड़ता है वह सुंदर है या कुरूप है,
पति ज़िंदा हो तो सुहागन और ना हो तो अभागन का स्वरूप है,
अरे ! यह तो खा गई अपने पति को, देखो कितनी मनहूस है,
पता नहीं कहां जाती है काम के बहाने?
देखो तो सही कितनी मसरूफ है,
शर्म नहीं है इसे, पति मर गया और रंगीन दुपट्टे ओढ़ने लगी है,
अब तो मत ही कहो कि यह शरीफ़ है,
मदद मांगे भी तो किस से, लोगों को तो बुरी लगती उसकी तशरीफ़ है,
अरे! देखो तो सही, इतनी ऊंची आवाज़ में बातें करने लगी है,
ना कोई शर्म न लिहाज, फिर कहती है कि इसमें मेरा क्या कसूर है?
दुनिया ने उसके देखे हुए सारे सपनों को अनदेखा कर दिया,
देखे भी तो क्या? उसके सारे ख़्वाब अब चकनाचूर है,
बड़ी शौक़ीन थी वह दूसरों की ज़िंदगी में रंग भरने की,
खत्म हो गई उसकी सारी रंगत, अब वह जैसे बेनूर है,
बेबस और हताश कर दिया उसे लोगों के तानों ने,
अब नहीं रहा उसके चेहरे पर कहां कोई नूर है,
लेकिन फिर भी वह अपनी माँ के लिए हीरा और कोहिनूर है,
अपने ही बच्चों की शादी वाले रस्मों में शामिल नहीं हो सकती,क्योंकि वह एक विधवा है और बिना पति के औरत का कोई अस्तित्व नहीं,उसे बार बार याद दिलाने का ठेका जो ले रखा है समाज के ठेकेदारों ने,
आपको नहीं पता क्या? समाज का यही तो कारोबार है,
जब बड़े लोगों के घरों में काम करने जाती एक औरत,
मजबूरी का फायदा उठाते हैं लोग और समझते उसे मशीन हैं,
बहुत थक जाती है, फिर भी काम करती रहती है,वह औरत है, बहुत सहनशील इसकी तासीर है,
कभी किसी ने इज़्ज़त नहीं दी, ना ही की कभी प्यार से बात,
जब बह चल बसी दुनिया से, सब कहने लगे देवी का रूप थी,
देखो तो सही, उसकी कितनी सुंदर तस्वीर है

आज़ाद देश की आज़ादी

यशोदा कुमारीगया, बिहार


कहने को तो हम आज़ाद देश की वासी हैं,फिर भी आधी आबादी हिंसा की दासी है,अपने कोख में जिसे पालती और दूध पिलाती,फिर भी स्त्री हर वक़्त उसी से है डरती,जिस स्तन का दूध पीकर बनता है मर्द,औरत को हमेश अबला बोल और दिया दर्द,प्रकृति के उपवन में नारी की हुई जो सृष्टि,संसार की रचना में सुगंधित करती वृद्धि,अफ़सोस इस ज़ुल्मी ज़माने की,न दिया इज्जत, न मान और न ही आज़ादी


समझो माहवारी का दर्द



भावना गढ़िया
कक्षा-12
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड
उस दर्द में भी किशोरियां,कामकाज में लगी रहती हैं,चाहे लड़की हो या औरत,घर का सारा काम करती है,अपने शरीर को छोड़कर,घर का ध्यान रखती है,उस वक्त कमजोरी में भी,तपती धूप में मेहनत करती है,थोड़ा सा तो दर्द समझा करो उसका,इस माहवारी में साथ देने के लिए,
कोशिश तो किया करो उसका।।

बहुत हुआ अब मोमबत्ती जलाना



पार्वती
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड
बहुत हुआ अब मोमबत्ती जलाना,देकर दिखाओ अब न्याय यहां,देश भर की बेटियों पर अत्याचार,इतना आसान नहीं है सब भूल पाना,
अब नहीं कर सकते समय की बर्बादी,
और कितना सहेगी बेटी और देगी कुर्बानी,
कब तक सहेगी आख़िर ये सब,
क्यों नहीं होते क़ानून और सख़्त,
अब नहीं चाहिए दो मिनट का मौन,
देकर दिखाओ जल्द सजा उन्हें और,
सुना है क़ानून के हाथ होते बड़े लंबे हैं,
फिर क्यों हाथ लड़खड़ाते नज़र आते हैं,
क्यों मौन आज सब नज़र आ रहें है?
आख़िर कब होगा इसकी सजा का एलान?
यही है लड़कियों का प्रश्न आज॥

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