राजेश चौधरी
सुप्रीम कोर्ट में हिजाब मामला पहुंच गया है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। उसने स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनकर जाने पर लगाए गए राज्य सरकार के बैन को बरकरार रखा। मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स ने सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने होली के बाद सुनवाई का फैसला किया है। वैसे सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले ऐसे कई मामले हैं, जिनमें उसे संवैधानिक सवालों के जवाब देने हैं। इनमें सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश, अग्नि मंदिर में गैर पारसी से शादी करने वाली महिलाओं के प्रवेश, दाउदी बोहरा समुदाय की महिलाओं के खतने और मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित मामले शामिल हैं।
सबरीमला से शुरुआत
14 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला लार्जर बेंच को रेफर कर दिया था। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और पारसी महिलाओं के अन्य समुदाय में शादी के बाद अग्नि मंदिर में प्रवेश पर रोक जैसे मामले भी लार्जर बेंच को रेफर किए थे। इन सब पर सुनवाई होनी है। दरअसल 28 दिसंबर 2018 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 4 बनाम एक से दिए बहुमत के फैसले में कहा था कि 10 साल से लेकर 50 साल की उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर बैन लिंग के आधार पर भेदभाव वाली प्रथा है और यह हिंदू महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन करती है। इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई। रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच ने तीन बनाम दो के बहुमत से मामले को लार्जर बेंच में रेफर कर दिया था। वहीं, मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश का मामला भी सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया गया। 25 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य प्रतिवादियों से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम महिलाओं को देश भर की तमाम मस्जिदों में प्रवेश दिया जाए क्योंकि यह रोक अवैध, असंवैधानिक और समानता के अधिकार, जीवन के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। अर्जी में कहा गया है कि कुरान और हदीस में लिंग के आधार पर कोई भेद नहीं है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों का खतना कराने की परंपरा को भी चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 8 मार्च 2017 को केंद्र के साथ-साथ दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा। याचिकाकर्ता ने कहा है कि बच्चियों का खतना कराने की यह परंपरा मानवाधिकारों और बाल अधिकारों का उल्लंघन है। वहीं पारसी महिलाओं के अग्नि मंदिर में प्रवेश का मामला भी सुनवाई के दायरे में होगा। परंपरा के मुताबिक अगर कोई पारसी महिला गैर पारसी से शादी कर लेती है तो उसका अग्नि मंदिर में प्रवेश वर्जित हो जाता है।
14 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने सबरीमला मामला लार्जर बेंच को रेफर करते हुए कहा था कि इस तरह की पाबंदियां अन्य धर्मों में भी हैं। सुप्रीम कोर्ट को इसका निराकरण करना है और ऐसे मामलों में जुडिशल नीति तय करनी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लार्जर बेंच का जो फैसला होगा उससे कई मुद्दों पर विराम लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने लार्जर बेंच के सामने 7 सवालों को रेफर किया। इन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच अपना नजरिया पेश करेगी। ये सवाल हैं- एक, अनुच्छेद-25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दायरा क्या है? दो, अनुच्छेद-25 के तहत व्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म और पंथ के निहितार्थ क्या हैं? तीन, क्या किसी को अनुच्छेद-26 के तहत मिले धार्मिक अधिकार संविधान के पार्ट -3 के तहत पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता और स्वास्थ्य पर निर्भर हैं? चार, अनुच्छेद-25 व 26 के तहत नैतिकता का दायरा क्या है? पांच, अनुच्छेद-25 के तहत धार्मिक प्रैक्टिस का जो अधिकार है उसके जुडिशल रिव्यू का दायरा क्या है? छह, ‘हिंदुओं’ से क्या मतलब है? सात, जो व्यक्ति किसी धर्म विशेष से ताल्लुक नहीं रखता है क्या वह जनहित याचिका के माध्यम से उस धर्म या उस धर्म के प्रैक्टिस पर सवाल उठा सकता है?
अंतहीन बहसें
इसी बीच अब हिजाब का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया है। कर्नाटक हाईकोर्ट के इस संबंध में दिए गए फैसले के खिलाफ की गई अपील में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता की व्याख्या में गलती की है। हाईकोर्ट ने इस बात को भी नहीं देखा कि निजता के अधिकार के तहत हिजाब पहनने का अधिकार मिला हुआ है। याचिका में यह भी कहा गया है कि हाईकोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि हिजाब अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में आता है। गौर करने की बात है कि अनुच्छेद-19 (1)(ए) के तहत हिजाब पहनना अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन इसके साथ ही अनुच्छेद-25 के तहत यह धार्मिक प्रैक्टिस के दायरे में आता है। जाहिर है इन मुद्दों के कई जटिल कानूनी और संवैधानिक पहलू हैं और ये विभिन्न धर्मों से जुड़े हैं। इन पर न केवल इन धर्मों के दायरे के अंदर बहस चलती रही है बल्कि संवैधानिक अधिकारों से जु़डे सवाल भी उठाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ जब अपना नजरिया स्पष्ट करेगी तो अंतहीन सी बहसों पर विराम लग सकेगा।