मुनेश त्यागी
आजकल सरकार में के विरोध में कुछ लिखना, पढ़ना और बोलना जैसे महाअपराध हो गया है। जो कोई भी आदमी सरकार की गलत नीतियों का, गलत निर्णयों का विरोध करता है, उसके खिलाफ लिखता या बोलता है या उनकी आलोचना करता है, तो उसे साम्प्रदायिक हिंदुत्ववादी अंधभक्तों द्वारा एकदम से देशद्रोही, कम्युनिस्ट, आतंकवादी, माओवादी, मार्क्सवादी, नक्सलवादी, टुकड़े टुकड़े गैंग और न जाने क्या क्या कहा जाने लगता है और यह सब वे लोग कर रहे हैं जो वर्तमान सरकार को समर्थन दे रहे हैं और उसकी हिमायत कर रहे हैं। ये सब लोग सरकार के अंधभक्त ही हैं।
यहीं पर सवाल उठता है कि क्या सरकार की आलोचना करना, उसके जनविरोधी निर्णयों में कमी निकालना और उनका वाजिब विरोध जाहिर करना, कोई देशभक्तिहीन कार्य हो गया है? पहले तो सरकार केवल अपने विरोधियों की आलोचना करती थी, उन्हें परेशान करती थी, उन्हें बोलने लिखने से रोकती थी। कई बार तो कई लेखकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई है। ऐसे ही हालात में राहुल गांधी को अपनी बात कहने की एवज में अपनी संसद सदस्यता गवानी पड़ी है। अब तो हद हो गई है, सरकार अपनी आलोचना को लेकर इतनी अंधी हो गई है कि वह देश के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी बख्शने को तैयार नहीं है। भारत के कानून मंत्री ने तो रिटायर्ड जजों को भी आलोचना के कटघरे में खड़ा कर दिया है।
हमने अपने तमाम राजनीतिक जीवन में देखा है और सुना है और किया है कि जब जब सरकार जनता के खिलाफ, किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों के खिलाफ, गलत नीतियां बनाती थी, गलत फैसले लेती थी, सबको शिक्षा नहीं देती थी, सबको स्वास्थ्य या काम मोहिया नहीं कराती थी, किसानों की फसलों का वाजिब दाम नहीं देती थी और मजदूरों का न्यूनतम वेतन नहीं देती थी और मजदूरों के कानून लागू नहीं करती थी, तब सरकार की विपक्षी पार्टियों और संगठनों ने, सरकार का विरोध किया था, उसकी आलोचना की थी और उसकी गलत नीतियों को, जनविरोधी और देश विरोधी और समाज विरोधी बताया था।
आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं, जब वे कल विपक्ष में थे, तो वे भी तब सरकार की नीतियों की आलोचना कर रहे थे, और कमियां निकाल रहे थे, सरकार की आलोचना कर रहे थे और न जाने क्या क्या कह रहे थे? अब यहां पर सवाल उठता है कि वर्तमान सरकार को ऐसा क्या हो गया है कि वह अपनी आलोचना सुनने को तैयार नहीं है? अपनी नीतियों की कमियां सुनने को तैयार नहीं है? अपनी नीतियों और कमियों में कोई नुक्ताचीनी सुनने को तैयार नहीं है और अपने विरोधियों को दबाने और देशद्रोही बताने पर उतर आई है।
अब तो हद हो गई है, जब इस सरकार के कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों को कह रहे हैं कि “वे भारत विरोधी गैंग में शामिल हो गए हैं और वे विपक्षी पार्टियों की भूमिका अदा कर रहे हैं और भारत की न्यायपालिका, विपक्षी दलों की भूमिका अदा कर रही है।” यहीं पर सवाल उठता है कि इन भूतपूर्व जजों की गलत आलोचना करके, क्या कानून मंत्री न्यायपालिका के खिलाफ जनता को भड़काने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? क्या कानून मंत्री के इस बयान से, जनता में भारत की न्यायपालिका और न्यायमूर्तियों के खिलाफ गलत संदेश नहीं जाएगा?
इन सब मुद्दों को लेकर पिछले दिनों भारत के जाने-माने सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्टों के वरिष्ठ वकीलों ने एकजुट होकर कहा है कि सरकार की आलोचना करना देशभक्तिहीन कार्य नहीं है। इन सब वकीलों ने कानून मंत्री के इस बयान की जोरदार तरीके से मजम्मत की है और उन्होंने कहा है कानून मंत्री को इन सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की आलोचना और उन्होंने डराना, धमकाना कानून सम्मत और संविधान सम्मत नहीं है।
इन वरिष्ठ वकीलों ने अपने एक संयुक्त बयान में कहा है कि सरकार की आलोचना न तो वतन के खिलाफ है, ना ही देशभक्तिहीन है और ना भारत विरोधी है। उन्होंने कहा है कि भारत के नागरिकों द्वारा विरोध प्रकट करना, सरकार की नीतियों की आलोचना करना और शांतिपूर्ण तरीके से सरकार की नीतियों का विरोध करना, उन सबका बुनियादी मानवाधिकार है। उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार की आलोचना करना देशभक्तिहीन कार्य नहीं है।
उन्होंने आगे कहा है कि सरकार राष्ट्र नहीं है और राष्ट्र सरकार नहीं है। जो सरकार जनता के खिलाफ और देश के खिलाफ कानून बनाएगी, नीतियां बनाएगी, उसका विरोध किया जाएगा। इस विरोध को किसी भी दशा में अनुचित नहीं ठहराया जा सकता। एक संयुक्त बयान में देश के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के 323 वकीलों ने सरकार के कानून मंत्री के इस वक्तव्य की कठोर आलोचना की है। इन वकीलों में इकबाल छागला, राजू रामचंद्रन, जनक द्वारकादास, कपिल सिब्बल, अरविंद दातार, श्रीराम पंचू, अभिषेक मनु सिंघवी आदि शामिल थे।
इस प्रकार हम पूरे यकीन के साथ कहेंगे कि सरकार की गलत नीतियों के, गलत फैसलों के आलोचक, पूरी तरह से देशभक्त हैं और जो लोग सरकार की कमियों की, प्रशासन की कमियों की और संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने के फैसलों की आलोचना करते हैं, वे सभी अपने जन्मजात और बुनियादी मानवाधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं। क्योंकि संविधान के अनुसार अपनी राय व्यक्त करना, लिखना, अपने बयान देना, बोलने और अभिव्यक्ति का पूरा अधिकार है, सरकार इस अधिकार पर कोई रोक नहीं लगा सकती।
हम यहां पर मजबूती के साथ कहना चाहेंगे कि भारत के कानून मंत्री द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों समेत सरकार के की नीतियों की आलोचना करने वाले दूसरे समस्त नागरिकों को डराना, धमकाना सरकार के लिए शोभनीय नहीं है। भारत के कानून मंत्री का यह बयान एकदम पूर्ण रूप से अशोभनीय है और उनकी मंत्रालय की गरिमा के खिलाफ है। इन सभी लोगों ने भारत की सेवा करते हुए अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ उर्जा लगाई है, अपने जीवन का सर्वोच्च और सर्वश्रेष्ठ देश के लिए न्योछावर किया है, अब उनकी सही और वाजिब आलोचना को देशभक्तिहीन नहीं कहा जा सकता। भारत के कानून मंत्री को, अपना यह आपत्तिजनक बयान तुरंत वापस लेना चाहिए।