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*जापानी लोककथा : सच भाग गया*

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       ~ रीता चौधरी

ऊका मन्त्री बन गया तो प्रजा के सभी लोग बहुत खुश हुए क्योंकि ऊका न्याय करने वाला था ! वह न्याय के महत्त्व को समझता था !वह स्वयं भी ईमानदार था इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उसके अधिकारी भी कर्तव्यनिष्ठ थे।

    वे ऊका के स्वभाव को समझ गये थे ! उसने समय-समय पर ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये थे और बतला दिया था कि निर्बल सबसे पहले न्याय पाने का अधिकारी  होता है !

एक बार उसने दावत दी और नगर के संभ्रान्त लोगों को और राज्य के अधिकारियों को निमन्त्रित किया।

      दावत बहुत शानदार थी , फिर भी ऐन मौके पर उसे विचार आया कि भोजन के अन्त में सभी मेहमानों को ताचीबाना [ सन्तरा जैसा फल ] परोसा जाना चाहिए ! उसने अपने सबसे अधिक वफादार और विश्वस्त सेवक नाऊसोके को स्वर्णमुद्रा देकर भेजा – २०० ताचीबाना बहुत जल्दी ले आओ.

नाऊसोके गया और बहुत जल्दी ही २०० ताचीबाना ले आया !परन्तु ऊका को यह क्या हो गया ?

    ऊका ने हुक्म दिया कि २०० ताचीबाना गिनो !ऐसा संदेह ? ऐसा संदेह तो पहले कभी नहीं हुआ.

     नाऊसोके से कभी बहुमूल्य वस्तुओं को लेकर भी ऊका ने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया आज ये फलों की गिनती करवा रहे हैं ?

खैर ,नाऊसोके ने ताचीबाना गिने , १९८ फल थे.

दोबारा गिने , तीसरी बार गिने फल १९८ ही थे. नाऊसोके चकरा गया. हुजूर , मैं तो २०० गिन कर लाया था. ऊका नाराज हो गया , जरूर तुमने दो ताचीबाना चुराये हैं , तुमने मुझे धोखा दिया है.

    नाऊसोके परेशान हो गया – हुजूर , मैं तो २०० गिन कर लाया था ! मैंने चोरी नहीं की.

     ऊका ने नाराज होकर – दंडाधिकारी को हुक्म दिया कि इसे शिकंजे में कस दो ! नाऊसोके को शिकंजे में कस दिया गया !वह बेहोश हो गया ! उस पर पानी डाला गया और होश आने पर दोबारा शिकंजे में कस दिया गया !नगर के संभ्रान्त लोग तमाशे की तरह नाऊसोके  को पिटता  देख रहे थे , लेकिन किसी ने चूँ तक नहीं की।

     जब नाऊसोके अधमरा हो गया , तब उसने स्वीकार कर लिया कि– हाँ , मैंने दो ताचीबाना चुराये थे !उसने ऊका से हाथ जोड़ कर कहा कि आप की बात सच है , मैंने सचमुच दो ताचीबाना चुराये थे ! आप जो दंड देना चाहें , मैं उसे स्वीकार कर लूँगा.

ऊका रोने लगा , उसने कहा नाऊसोके , तुम आज मुझे माफ कर देना ! आज मैंने एक खास प्रयोजन से तुम्हारी यह दुर्गति की है.

   ऊका ने नाऊसोके के शरीर में स्वयं ही मलहम लगायी , रुई लगायी और कई बार उससे क्षमा माँगी.

ऊका ने सब लोगों के सामने अपनी कमीज की आस्तीन में से दो ताचीबाना निकाल कर कहा कि- दो ताचीबाना नाऊसोके ने नहीं ,मैंने चुराये थे.

     आप सभी ने देख लिया था कि मार के मारे सच भाग गया और इस निर्बल आदमी ने अपना वह जुर्म कबूल कर लिया , जो इसने किया ही नहीं था लेकिन  आपके मन में संवेदना नहीं जगी ?आप के बीच किसी ने चूँ तक नहीं की ? न्याय सामाजिक-तत्त्व है  और  निर्बल   समाज की कमजोर कड़ी है , यदि वह टूटती है तो समाज भी टूटता है।

     इसलिए न्याय  पाने का सबसे पहला -अधिकारी तो सबसे अधिक निर्बल ही होता है ! सबसे पहले उसी को न्याय मिलना चाहिए !सबल के पक्ष में दिया जाने वाला न्याय निर्बल के मन में न्याय के प्रति सन्देह जगाता है.

      ऊका ने कहा कि -जो शासन-प्रणालियाँ इस प्रकार से निर्बल के हक में से न्याय को चुराती हैं , सच को झुठलाती हैं , वे न्याय नहीं , न्याय का आडंबर करती हैं , ढोंग करती हैं.

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