*कहीं लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस परिवर्तन से कांग्रेस को बड़ा नुकसान न हो जाए*
*कमलनाथ विजनरी नेतृत्वकर्ता हैं, उनके हटने से कांग्रेस को हो सकता है बड़ा नुकसान*
*पार्टी आलाकमान का बगैर सोचे समझे लिया गया फैसला कहीं पार्टी को भारी न पड़ जाए*
*जिस कांग्रेस को कमलनाथ ने एक धागे में पिरोया उसके बिखरने की आशंका*
*विजया पाठक,
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में बड़ा परिवर्तन किया गया। वर्षों से सत्ता में वापसी के सपने संजोये बैठी कांग्रेस पार्टी को 2018 के चुनाव में जीत दिलाकर सत्ता में कायम करने वाले कमलनाथ की जगह अब जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे को बनाया गया। पूर्व सीएम कमलनाथ के अध्यक्ष बनने के पहले प्रदेश में कांग्रेस बिखरी और गुटों में विभाजित थी। कमलनाथ ने उस बिखराव और गुटों को खत्म किया और पार्टी को एक धागे में बांधे रखा। जिसका का ही नतीजा था कि पार्टी कमलनाथ के नेतृत्व में 2018 में जीत हासिल की। इसके साथ ही 2023 के चुनाव में कांग्रेस एक दमदार तरीके से चुनाव लड़ी। कांग्रेस आलाकमान ने भले ही पीढ़ी परिवर्तन कर प्रदेश में युवा नेतृत्व का संदेश दिया है लेकिन शायद आलाकमान इस बात को भूल गया कि कांग्रेस को मध्यप्रदेश में पुनः जीवित करने का जो कार्य कमलनाथ ने किया था वह कार्य शायद ही कोई दूसरा नेता कर पाता। इसके साथ ही कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष न होने से प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नुकसान होने की आशंका है। खैर, अब देखने वाली बात यह है कि आलाकमान के इस निर्णय पर युवा टीम कितना खरा उतरती है।
*जल्दबाजी में लिया गया है निर्णय*
विधानसभा चुनाव की हार का ठीकरा किसी पर फोड़ने का आशय यह बिलकुल नही है कि जिस नेतृत्व में पार्टी ने एकजुट होकर कार्य किया है उसी नेतृत्व को बदल दिया जाये। कांग्रेस आलाकमान और राहुल गांधी का यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया फैसला है। कमलनाथ वरिष्ठ नेता हैं और उन्हें प्रदेश की राजनीति की बेहतर समझ है। उनमें पार्टी और संगठन के साथ लेकर चलने की क्षमता है। ऐसे में कमलनाथ को लोकसभा चुनाव के पहले ही पद से हटा देना अपने आप में कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल साबित हो सकता है।
*कमलनाथ के कार्यकाल को भुलाया नहीं जा सकता*
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल को भुलाया नहीं जा सकता है। कमलनाथ ने न सिर्फ प्रदेश में कांग्रेस का सूखा वर्ष 2018 के चुनाव में जीत दर्ज कर खत्म किया था बल्कि लगातार चार वर्ष तक विपक्ष में बैठकर उन्होंने एक धारदार विपक्षी दल की भूमिका भी निभाई। प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस की जीत और हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा सहित बालाघाट जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में उन्होंने जिस रणनीति के साथ कार्य किया उसके परिणाम हम सभी के सामने हैं। छिंदवाड़ा की सभी सीटों पर कांग्रेस का झंडा बुलंद किया तो वहीं बालघाट में भी पार्टी को मजबूती प्रदान की है।
*कमलनाथ ने भारत जोड़ो यात्रा में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका*
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी कमलनाथ की मुख्य भूमिका रही है। मध्यप्रदेश में यात्रा की सफलता का श्रेय कमलनाथ की विजनरी लीडरशिप को जाता है। कमलनाथ ने अलग थलग पड़ी पार्टी और नेताओं को एक सूत्र में पिरोया और कांग्रेस को प्रदेश में मजबूती प्रदान की। यही कारण था कि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के पक्ष में माहौल बना और पार्टी पूरी मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतरी।
*बड़ी गलती साबित हो सकता है फैसला*
प्रदेश कांग्रेस में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इतना बड़ा परिवर्तन कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा नुकसानदेह हो सकता है। अगले तीन से चार महीनों में देश में लोकसभा चुनाव हैं। ऐसे में कमलनाथ द्वारा तैयार की गई पूरी प्लानिंग पर आलाकमान ने पानी फेर दिया है। कमलनाथ अपनी टीम के साथ मैदान में भी उतर गए लेकिन इस एक फैसले ने उन्हें यही रोक दिया। आलाकमान का यह फैसला बड़ी गलती साबित हो सकता है।