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जस्टिस चंद्रचूड़ खास विचारधारा को माननेवाले ट्रोलरों के निशाने पर

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नवल किशोर कुमार

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ इन दिनों खास विचारधारा को माननेवाले ट्रोलरों के निशाने पर हैं। ट्वीटर पर उनके संबंध में तमाम तरह की आपत्तिजनक बातें कही जा रही हैं। इनमें उनमें परिजनों को भी शामिल किया जा रहा है।

16 मार्च, 2023 को मुख्य न्यायाधीश को ट्रोल किये जाने को लेकर तेरह विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से न्यायसम्मत हस्तक्षेप करने की मांग की। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तनखा के नेतृत्व में लिखे गए पत्र में राष्ट्रपति और भारत के अटार्नी जनरल से ऐसे ट्रोलरों पर कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है। उन्होंने अटार्नी जनरल को स्मरण दिलाया है कि देश पहले विधि अधिकारी होने के नाते यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे दिल्ली पुलिस के कमिश्नर से पूरी रिपोर्ट तलब करें तथा विधि मंत्रालय और सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्रालय से ट्रोलरों पर कार्रवाई करने का निर्देश दें। पत्र पर हस्ताक्षर करनेवालों में आम आदमी पार्टी के सदस्य राजीव चड्ढा, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की प्रियंका चतुर्वेदी आदि शामिल हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि यह सब महाराष्ट्र में जून, 2022 में तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा निवर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विश्वास मत हासिल करने के लिए दिये गए आदेश संबंधी सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों के कारण किया जा रहा है। एक दूसरी संभावना यह भी जतायी जा रही है कि हिंडनबर्ग रिसर्च सेंटर द्वारा अडाणी समूह के संबंध में जारी रपट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी गठित की है, उसके विरोध में भी ट्रोलर उनके ऊपर हमलावर हैं।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने इस मामले में अपना फैसला गत 16 मार्च को सुरक्षित रख लिया। इस पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा शामिल रहे। 

इससे पहले गत 15 मार्च, 2023 को पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्यपाल के ऐसे आचरण से लोकतंत्र का तमाशा बन जाएगा। पीठ ने कहा कि किसी सत्तासीन दल के अंदर बगावत हो सकता है, लेकिन यह उस दल का आंतरिक मामला है और केवल इसी आधार पर निर्वाचित सरकार को बहुमत साबित करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। यदि ऐसा हुअ तो निर्वाचित सरकार का पतन हो सकता है और लोकतंत्र तमाशा बन सकता है।

इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि तत्कालीन राज्यपाल के पास ऐसी अनेक परिस्थितियां थीं, जिनके आधार पर उन्होंने बहुमत साबित करने को कहा। इनमें एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 34 विधायकों का हस्ताक्षर वाला पत्र भी था।

पीठ ने कहा कि यह आप हमें मत बताइए कि क्या हुआ। पूरे देश ने देखा है कि किस तरह के राजनीतिक हालात पैदा किये गये। पीठ ने तत्कालीन राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्यपाल ने दो बातों को नजरअंदाज किया। एक तो यह कि कांग्रेस और एनसीपी जिसके विधायकों की संख्या 97 थी, उनमें कोई मतभेद नहीं था। और दूसरा यह कि शिवसेना जिसके पास 56 विधायक थे, उसके केवल 34 विधायक थे और उन्होंने केवल बगावत किया था, जो कि उस दल का आंतरिक मामला था, राज्यपाल को आगे बढ़कर दखल देना साबित करता है कि उन्होंने राज्यपाल के पद का दुरुपयोग किया।

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