, मुनेश त्यागी
दुनिया के महानतम क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स का जन्म ५ मई १८१८ को हुआ था। उनका देहांत 14 मार्च 1883 को हुआ था। उनकी 205 वीं वर्षगांठ पूरी दुनिया में मनायी जा रही है। कार्ल मार्क्स दुनिया के महानतम क्रांतिकारियों में से एक हैं । मार्क्स के विचारों के बाद दुनिया की चिंतन पद्धति ही बदल गई।
१.मार्क्स ने बताया की वर्गसंघर्ष की उत्पत्ति के बाद, मनुष्य का अभी तक का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है, यानी यहां दो वर्ग हैं, एक लुटेरा वर्ग है, एक लुटने वाला वर्ग। एक मालिक वर्ग है, एक मजदूर वर्ग है। पहला वर्ग दूसरे को लूटता और उसका शोषण आया है और यह लूट समाजवादी समाज के आने तक जारी रहेगी।
२.मार्क्स ने आगे कहा कि सर्वहारा की सत्ता यानी कि मजदूर-वर्ग की सत्ता और सरकार ही किसानों और मजदूरों के अभी तक के शोषण, अन्याय ,भेदभाव और गैरबराबरी को दूर कर सकती है। सत्ता और सरकार पर कब्जा किए बिना, मजदूर वर्ग और किसान वर्ग का और आम जनता का कल्याण नहीं हो सकता ।
३.उन्होंने आगे कहा की साम्यवादी व्यवस्था कायम करके ही मानवता का कल्याण हो सकता है जिसमें न वर्ग रहेंगे और ना राज्य रहेगा यानि जो वर्ग-विहीन और राज्य-विहीन होगी यानी इसमें सब का राज होग, ना कोई शासित होगा, ना कोई शासक होगा, ना कोई शोषण करने वाला होगा, ना किसी का शोषण होगा। सब लोग शिक्षित और समझदार हो जाएंगे। सब लोग काम करेंगे। किसी को काम करने के अधिकार से छूट नहीं मिलेगी। जो काम करेगा वही रोटी खाएगा। उन्होंने बताया कि अभी तक का समाज आदिम साम्यवाद, गुलाम समाज, सामंती समाज, पूंजीवाद समाज रहा है। इसके बाद समाजवादी व्यवस्था आयेगी और जब पूरी दुनिया में समाजवादी व्यवस्था कायम हो जायेगी तो उसके बाद साम्यवाद की व्यवस्था वाला समाज होगा।
४. उन्होंने नारा दिया था कि दुनिया भर के मजदूरों एक हो, यानी कि जब तक दुनिया के पैमाने पर मजदूरों, किसानों और मेहनतकशों की सत्ता कायम न हो जाएगी, तब तक काम चलने वाला नहीं है। इसलिए मनुष्य को अंतरराष्ट्रीयतावादी होना चाहिए। उसकी सोच पूरी दुनिया के लोगों के कल्याण की होनी चाहिए । मार्क्स की यह बहुत बड़ी देन है।
५. मार्क्स ने आगे बताया क धर्म एक अफीम है। यह एक नशा है जिसमें दबे कुचले लोगों को अपना दुख दुख दर्द भुलाने में मदद मिलती है, धर्म उन्हें दबाने और उनका शोषण करने में लुटेरे शासक वर्ग की मदद करता है। मार्क्स ने कहा था कि “धर्म दबे कुचले लोगों के लिए राहत है, हृदयविहीन दुनिया के लोगों का हृदय है और आत्महीनों की आत्मा है, यह जनता की अफीम है।” मार्क्स की यह बात आज भी उतनी ही सही है जितनी कि यह कहे जाने के समय थी।
मार्क्स के विचार यानी मार्क्सवाद मानव मुक्ति का सूत्र है, मनुष्य के कल्याण का विज्ञान है। “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” जिसे मार्क्स और ऐंगेल्स ने मिलकर लिखा था, दुनिया के कम्युनिस्टों की बाईबिल है। मार्क्सवाद वैज्ञानिक समाजवाद की बात करता है। मार्क्स के द्वारा लिखी गई किताब “पूंजी” दुनिया भर में प्रसिद्ध है जो पूंजीवादी शोषण की पोल खोलती है। मार्क्स ने 1864 में अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ की स्थापना में अपनी महती भूमिका अदा की और इसमें योगदान दिया और मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
उनका जीवन भयानक आर्थिक कष्टों और संकटों में बीता। 6 संतानों में तीन बच्चियां ही जीवित रही। उनके तीन बच्चे तो दवाई के अभाव में ही दम तोड़ गए थे क्योंकि मार्क्स के पास उनके इलाज का पूरा पैसा जुटाना संभव नहीं था।
मार्क्सवाद की देन,,,,,,, उपरोक्त पांच सूत्र दुनिया को बेहतर बनाने की मशाल के रूप में काम कर रहे हैं। मार्क्स के विचारों के बाद काम के घंटे निर्धारित किए गए, साप्ताहिक अवकाश मिलना शुरू हुआ, रिटायरमेंट होने पर पेंशन का आगाज हुआ, बाल श्रम पर प्रतिबंध लगा, शिक्षा बच्चों का पहला हक बना, कई सारे बुनियादी अधिकारों की बात हुई जो लोगों को उपलब्ध भी कराए गए।
यह बात अलग है कि आज पूंजीपतियों ने इकट्ठा होकर अपनी उस लूट को, उस हड़पने की नीति को और तेज कर दिया है और समाजवाद के बाद मिले तमाम हक अधिकारों को मजदूरों किसानों और जनता से छीन लिया है और आज हमारे देश को आज से 75 साल पहले वाली अधिकार विहीन स्थिति में पहुंचा दिया है। मजदूरों ने लड़ झगड़कर, बलिदान करके, जो कुछ हासिल किया था, पूंजीवादी निजाम ने उसे छीन लिया है और धीरे-धीरे छीन रहा है।
मगर यह मार्क्सवाद ही है जो एक दिन पूंजीवाद के शासन का अंत करेगा, पूंजीवादी लूट को समाप्त करेगा और एक ऐसी दुनिया बन कर रहेगी जिसमें सबको रोटी मिलेगी, सबको रोजी मिलेगी, सबको काम मिलेगा, सबको घर मिलेगा, सबको सुरक्षा मिलेगी, सबको स्वच्छ पानी और हवा मिलेगी,सबको शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मुहैया करायी जायेगी और जिसमें मजदूरों और किसानों की राजसत्ता और सरकार होगी और यह सरकार सारी जनता के कल्याण के लिए काम करेगी।
यह व्यवस्था मार्क्सवादी विचारों की दुनिया कायम होने पर ही हो सकता है। यहां पर आकर मार्क्स दुनिया के सबसे बड़े विचारक और दार्शनिक बनकर हमारे सामने आते हैं और वह अपने विचारों में आज भी जिंदा है। यह मार्क्स ही है जिन्होंने कहा था कि पूंजीवाद अपने आप में एक संकटग्रस्त व्यवस्था है जो मानव को शोषण, अन्याय, हिंसा, भेदभाव, असमानता और असुरक्षा से मुक्ति नहीं दिला सकती।
आज हम देख रहे हैं कि जब तक मार्क्स के विचारों की दुनिया कायम नही हो जाती, तब तक दुनिया में अमन, न्याय, समता, समानता, जनतंत्र , गणतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और वैश्विकभाईचारा कायम नही हो सकता है ।
मार्क्स दुनिया के सबसे बड़े दार्शनिक बनकर हमारे सामने आते हैं जब वे समता, समानता, जनतंत्र और आदमी के साम्य की बात करते हैं। वे कहते हैं कि “इस दुनिया की अनेक दार्शनिकों और विचारकों ने व्याख्या की है, मगर असली सवाल इसे बदलने का है।”
कार्ल मार्क्स राज्य को एक हथियारबंद और जनविरोधी और पूंजीपतियों का दस्ता मानते थे। वह कहते थे कि जनता को, समाज को पूंजीवादी राज्य कि नहीं, बल्कि जनता के जनवादी राज्य की जरूरत है। उनका कहना था की राज्य पूंजीवाद को बढ़ाने वाला संगठन न होकर रह जाए, बल्कि वह जनता के लिए कल्याणकारी काम करे, जनता की समस्याओं का हल करे और जनता पर होने वाले पूंजीवादी हमलों का दमन करे और इन हमलों से जनता के जनवादी अधिकारों की रक्षा करे।
उन्होंने दर्शन की दरिद्रता की बात की है। उन्होंने दरिद्रता के समूल विनाश की बात की है। दुनिया के कम्युनिस्टों की बाइबिल कहीं जाने वाली ऐतिहासिक और क्रांतिकारी पुस्तक “कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो” में मार्क्स और ऐंगेल्स ने कहा है कि “ओ मजदूरों, तुम्हारे पैरों में जंजीरें बंधी हुई हैं, तुम्हारे पास अपनी जंजीरों के खोने के लिए कुछ भी नही है! दुनिया के मेहनतकशों एक हों।”इसी प्रस्तुत इसी पुस्तक में कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिज्म के सिद्धांत पेश किए और दुनिया में सबसे पहले, सबको आधुनिक शिक्षा, सबको आधुनिक स्वास्थ्य, सबको काम, सबको घर, सब को रोजगार, सबको सुरक्षा और संपत्ति में सब का अधिकार की मांग की। इस छोटी सी पुस्तिका के आने के बाद दुनिया में वैचारिक तहलका मच गया।
हमें यहीं पर एक बात और देखने को मिलती है और वह यह है कि मार्क्स को पूरी दुनिया का लुटेरा पूंजीपति वर्ग गाली गलौज करता है, उनके लिए सबसे ज्यादा अपशब्द प्रयोग करता है और सबसे ज्यादा गिरी हुई नजर से देखता है, क्योंकि मार्क्स वह पहले दार्शनिक थे जिन्होंने मजदूरों का शोषण करने वाले पूंजीवाद के शोषण की खोल खोली और इस शोषणकारी व्यवस्था को बदल कर सामाजिक क्रांति करके, इसके स्थान पर किसानों मजदूरों की सरकार काम करने की बात कही थी। मार्क्स और एंगेल्स का दृष्टिकोण कितना वैज्ञानिक था कि 1917 में रूस में मार्क्सवादी सिद्धांतों को धरती पर उतारा गया और किसानों और मजदूरों की, महान लेनिन के नेतृत्व में क्रांति की गई और उसके बाद दुनिया के कई देशों में मार्क्सवादी क्रांतियां हुई और जनता किसानों और मजदूरों का शासन कायम हुआ और उनकी बहुत सारी समस्याओं का यानी बुनियादी समस्याओं का समाधान हुआ।
मार्क्स का जीवन और दर्शन एक आदमी के बिना अधूरा ही रह जाता है और वह है फ्रेड्रिक ऐंगेल्स, जो उनके सह लेखक और आजीवन दोस्त रहे थे। मार्क्सवाद ऐंगेल्स के बिना पूरा नही हो सकता। मार्क्स ने खुद ही कहा था कि अगर उन्हें और उनके परिवार को एंगिस की निस्वार्थ आर्थिक सहायता नहीं मिलती तो वे अपने लेखन को जारी नहीं रख सकते थे। हम कह सकते हैं कि यदि ऐंगेल्स न होते तो मार्क्सवाद भी न होता। ऐंगेल्स ने सदा ही मार्क्स के परिवार की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक और लेखकीय मदद की।
मार्क्स की पत्नी जैनी मार्क्स के बिना भी मार्क्स की दुनिया अधूरी ही कही जायेगी क्योंकि यह जैनी ही थीं जो मार्क्स की विपन्नता और दुर्समय में मार्क्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडी रहीं, बिना दवाईयों के अपने तीन बच्चों दो लडकों और एक लडकी को मौत के मुंह में समाते देखती रहीं, मगर मार्क्स के मुक्तिकारी और ऐतिहासिक काम में रोडा न अटकाया।
मार्क्स के विचारों की सर्वव्यापी विराटता देखिये कि आज दुनिया का कोई कोना नही है, दुनिया का कोई देश नही है, जहां मार्क्स के विचारों ने दस्तक न दी हो। दुनिया का कौनसा शाषकवर्ग है जो पिछले डेढ सौ सालों में प्रभावित न हुआ हो और दुनिया का कौनसा देश है जहां कम्युनिस्ट पार्टियां, मजदूरों, किसानों, छात्रों नौजवानों महिलाओं की, आदिवासियों की, मुक्ति की लड़ाई न लड रही हों।
यही मार्क्स की विराटता और महानता है कि मार्क्स आज भी दुनिया के सबसे बड़ा क्रांतिकारी विचारक, दार्शनिक और लेखक बने हुए हैं। मार्क्स के साथ साथ हम ऐंगेल्स और लेनिन के क्रांतिकारी योगदान को नही भूल सकते हैं।
यह महान लेनिन ही थे कि जिन्होंने 1917 में मार्क्स के विचारों को धरती पर उतारा और दुनिया में पहली समाजवादी क्रांति की और दुनिया में एक नए युग की यानी समाजवादी युग की शुरुआत की। क्रांति के बाद कृषि की जमीन का, उत्पादन के साधनों का, विनिमय और वितरण के साधनों का राष्ट्रीयकरण और सामाजिकरण किया गया। सत्ता का प्रयोग किसान, मजदूर और मेहनतकशों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए क्या गया और मानव इतिहास में किसानों मजदूरों को सबसे पहले अपना भाग्य विधाता बनाया।
इसने हमें दिखाया और सिखाया कि कैसे सत्ता का इस्तेमाल, एक आदमी के लिए नहीं, बल्कि जनता के कल्याण के लिए किया जा सकता है। यह रूसी क्रांति ही थी जिसने दुनिया में पहली दफ़ा मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों को धरती पर उतारा, जिसके बाद दुनिया में एक के बाद एक, दुनिया के एक तिहाई देशों में क्रांतियां हुई और किसान-मजदूर शासन में बैठे और उनका राज कायम हुआ और वहां उन्होंने जनता के कल्याण के लिए काम किया गया। यही मार्क्स की सबसे बड़ी विशेषता है कि उन्होंने जो कहा था, उसे मजदूर और किसान वर्ग के लोगों ने धरती पर उतारा और क्रांतियां कीं और हजारों साल से चले आ रहे अन्याय शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव और गैर बराबरी को खत्म किया।