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‘चंदा गोपनीय रखना असंवैधानिक’…सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉण्ड पर लगाया बैन

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चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आतिशी का बड़ा बयान

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड को लेकर सर्वसम्मति से एक बड़ा फैसला सुनाया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच द्वारा दिए गए इस फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे।सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश का मंंत्री आतिशी ने स्वागत किया है. चुनावी पारदर्शिता के मामले में यह फैसला बड़ा कदम है.

उच्चतम न्यायालय (SC) ने साफ कहा है कि बड़ा चंदा गोपनीय रखना असंवैधानिक है। कंपनी एक्ट में बदलाव भी असंवैधानिक है। हर चंदा हित साधने के लिए नहीं है। फंडिंग की जानकारी हर आमजन को होनी चाहिए। यह मतदाताओं को हक है। इसके साथ ही चुनावी बॉण्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया, जो राजनीतिक दलों को गुमनाम दान की अनुमति देती है । सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी है। मोदी सरकार की चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1) (ए) का उल्लंघन करके लायी गयी थी। चुनावी बांड योजना दानदाताओं को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से धारक बांड खरीदने के बाद गुमनाम रूप से किसी राजनीतिक दल को धन भेजने की अनुमति देती है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से इस योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को रद्द कर दिया। दान को गुमनाम कर दिया था।

एसबीआई (SBI) को निर्देश दिया 6 मार्च तक चुनावी बॉण्ड की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे। इसके साथ ही कहा कि 13 मार्च तक इसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर डाले। अब तक जा बॉण्ड कैश नहीं कराए गए हैं वह भी वापस किए जाएं। चुनावी बॉण्ड सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है। चुनावी बॉण्ड सूचना के अधिकार कानून (RTI) का भी उल्लंघन है।

जानिए क्या थी चुनावी बॉन्ड योजना?

केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड की घोषणा की। इसे फिर 2018 में लागू किया गया। अब हर तिमाही एसबीआई 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है। ऐसा बताया जाता है बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, संस्था हो और फिर कंपनी हो। इसके माध्यम से अपनी पसंदीदा पार्टी को चंदा दिया जा सकता है। चुनावी बॉन्ड को वही राजनीतिक दल ले सकते हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं। इसके साथ ही चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम एक फीसदी वोट हासिल किए हों।

न्यायालय ने माना कि चुनावी बांड योजना अपनी गुमनाम प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर प्रहार करती है।

निर्णय में कहा गया है कि  कहा.चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है।

संविधान पीठ  ने कहा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि चुनावी बांड जारी करने वाला बैंक, यानी भारतीय स्टेट बैंक, चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण और प्राप्त सभी जानकारी जारी करेगा। उन्हें 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को सौंप देगा। ईसीआई इसे 13 मार्च तक आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। साथ ही राजनीतिक दल इसके बाद खरीददारों के खाते में चुनावी बांड की राशि वापस कर देंगे। दो निर्णय थे, एक सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा, दोनों सहमत थे।

कोर्ट ने कहा कि इस योजना से सत्ताधारी पार्टी को फायदा उठाने में मदद मिल रही थी।फैसले में कहा गया, “आर्थिक असमानता के कारण राजनीतिक स्तर पर अलग-अलग स्तर की व्यस्तताएं होती हैं। जानकारी तक पहुंच से नीति निर्माण प्रभावित होता है और साथ ही बदले की भावना से की जाने वाली व्यवस्था से भी सत्ता में रहने वाली पार्टी को मदद मिल सकती है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि चुनावी बांड योजना को यह कहकर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि इससे राजनीति में काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि दानदाताओं की गोपनीयता महत्वपूर्ण है, लेकिन पूर्ण छूट देकर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता हासिल नहीं की जा सकती।

पीठ ने 2 नवंबर, 2023 को तीन दिन की सुनवाई के बाद योजना की कानूनी वैधता से संबंधित मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बांड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था।

चुनावी बांड योजना दानदाताओं को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से धारक बांड खरीदने के बाद गुमनाम रूप से किसी राजनीतिक दल को धन भेजने की अनुमति देती है।

चुनावी बांड एक वचन पत्र या वाहक बांड की प्रकृति का एक उपकरण है जिसे किसी भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म या व्यक्तियों के संघ द्वारा खरीदा जा सकता है, बशर्ते वह व्यक्ति या निकाय भारत का नागरिक हो या भारत में निगमित या स्थापित हो। बांड, जो कई मूल्यवर्ग में हैं, विशेष रूप से मौजूदा योजना में राजनीतिक दलों को धन योगदान देने के उद्देश्य से जारी किए जाते हैं।

चुनावी बांड वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से पेश किए गए थे, जिसने बदले में ऐसे बांड की शुरूआत को सक्षम करने के लिए तीन अन्य कानूनों – आरबीआई अधिनियम, आयकर अधिनियम और लोगों का प्रतिनिधित्व अधिनियम – में संशोधन किया।

2017 के वित्त अधिनियम ने एक प्रणाली शुरू की जिसके द्वारा चुनावी फंडिंग के उद्देश्य से किसी भी अनुसूचित बैंक द्वारा चुनावी बांड जारी किए जा सकते हैं। वित्त अधिनियम को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया, जिसका अर्थ था कि इसे राज्य सभा की सहमति की आवश्यकता नहीं थी।

वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से विभिन्न कानूनों में किए गए कम से कम पांच संशोधनों को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष विभिन्न याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें कहा गया कि उन्होंने राजनीतिक दलों के लिए असीमित, अनियंत्रित फंडिंग के दरवाजे खोल दिए हैं।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एंड अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया कैबिनेट सेक्रेटरी और अन्य की याचिकाओं में यह आधार भी उठाया गया कि वित्त अधिनियम को धन विधेयक के रूप में पारित नहीं किया जा सकता था।

केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है। मार्च 2021 में, शीर्ष अदालत ने योजना पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक अर्जी खारिज कर दी थी।

चुनावी बांड ब्याज मुक्त धारक बांड या मनी इंस्ट्रूमेंट था जिन्हें भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था। ये बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे।किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-अनुपालक खाते के माध्यम से खरीदा जा सकता था।

राजनीतिक दलों को इन्हें एक निर्धारित समय के भीतर भुनाना होता था। दानकर्ता का नाम और अन्य जानकारी दस्तावेज पर दर्ज नहीं की जाती है और इस प्रकार चुनावी बांड को गुमनाम कहा जाता है। किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बांड की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी। सरकार ने 2016 और 2017 के वित्त अधिनियम के माध्यम से चुनावी बांड योजना शुरू करने के लिए चार अधिनियमों में संशोधन किया था।

ये संशोधन अधिनियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, (आरपीए), कंपनी अधिनियम, 2013, आयकर अधिनियम, 1961, और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 (एफसीआरए), 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों के माध्यम से थे।

2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को वित्त विधेयक के रूप में सदन में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की गई थी।

इस योजना को जनवरी 2018 में घोषित होने के तुरंत बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), कॉमन कॉज और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) सहित कई पार्टियों द्वारा चुनौती दी गई थी।

कॉमन कॉज और एडीआर का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया था कि नागरिकों को वोट मांगने वाली पार्टियों और उम्मीदवारों के बारे में जानकारी पाने का अधिकार है। हालांकि कंपनियों के वित्तीय विवरण कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं, जो सैद्धांतिक रूप से किसी को दान के स्रोत को जानने की अनुमति दे सकते हैं। भूषण का कहना था कि भारत में लगभग 23 लाख पंजीकृत कंपनियां हैं।

भूषण ने तर्क दिया था कि इस पद्धति का उपयोग करके यह पता लगाना कि प्रत्येक कंपनी ने कितना दान दिया है, एक सामान्य नागरिक के लिए संभव नहीं होगा। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने योजना में और अधिक कथित कमियों पर प्रकाश डाला। उनका कहना था कि इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए दान को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ा जाना आवश्यक हो। उनका कहना था कि एसबीआई के स्वयं के एफएक्यू अनुभाग में कहा गया है कि बांड राशि को किसी भी समय और किसी अन्य उद्देश्य के लिए भुनाया जा सकता है।

7 बिंदुओं में समझिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला


1. एसबीआई चुनावी बॉण्ड से चंदा लेने वाले सभी राजनीतिक दलों की सूची जारी करे


2. एसबीआई सभी चुनावी बॉण्ड का ब्यौरा दे जिसे राजनीतिक दलों ने नकद कराया है


3. एसबीआई सभी जानकारी 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को संपूर्ण जानकारी दे


4. एसबीआई से मिली जानकारी को चुनाव आयोग 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर डाले


5. चुनावी चंदे को छुपाना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है


6. चुनावी बॉण्ड के लिए कंपनी एक्ट में संसोधन असंवैधानिक है


7 .निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक जुड़ाव गोपनीय रखना शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा गुरुवार (15 फरवरी) को चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश के बाद दिल्ली सरकार मंत्री आतिशी (Atishi) ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा, “हम चुनावी बांड पर फैसले का स्वागत करते हैं. यह चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.”

बता दें कि लंबे अरसे से विरोधी दलों के नेता चुनावी बॉन्ड के जरिए मिलने वाले पैसे की पारदर्शिता को लेकर​ शिकायत करते आ रहे थे. गुरुवार को उसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैला सुना दिया. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले के तहत चुनावी बॉन्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया है. साथ ही इसे सूचना अधिकार का उल्लंघन भी बताया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच 5 जजों की पीठ ने एसबीआई को अप्रैल 2019 से अब तक मिले चंदे की पूरी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को मुहैया कराने का आदेश भी दिया है. 

VIDEO | Here’s what Delhi minister Atishi (@AtishiAAP) said on Supreme Court’s judgement on Electoral Bonds.

“We welcome the decision on Electoral Bonds. This is a big step in ensuring transparency in election funding,” she said.

(Full video available on PTI Videos -… pic.twitter.com/qKAuZgb7mp— Press Trust of India (@PTI_News) February 15, 2024

अंधेरे में उजाले की किरण

वहीं, चुनाव बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंधेरे में उजाले की किरण की तरह है. कांग्रेस शुरू से इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के खिलाफ थी.”  उन्होंने ये भी कहा कि राजनीतिक दलों को मिले चंदे को लेकर लोगों को जानने का अधिकार है. स्टेट बैंक आफ इंडिया इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करे. इलेक्टोरल बॉन्ड का 95% चंदा 5200 करोड़ रुपये अकेले भारतीय जनता पार्टी को मिला. 

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