~ नीलम ज्योति
यदि आज की आधुनिक शिक्षा प्राप्त पीढ़ी से आप पूछें कि “कृष्णावल” क्या है तो संभव है कि ९८ % तो यही कहेंगे कि उन्होंने यह शब्द सुना कभी सुना ही नहीं है। यदि आप दादी नानी से पूछें या पचास वर्ष पूर्व के लोगों से पूछें तो वे आपको बता देंगे कि गाँव में “कृष्णावल” प्याज या पालंडु को कहा जाता है। और यह शब्द ही प्याज के लिए प्रचलित था उस समय में।
प्याज को ग्रामीण क्षेत्रों में कांदा भी कहते हैं।
अंग्रेजी में इसे Onion (ऑनियन) या अन्यन कहते हैं। यह कंद श्रेणी में आता है जिसकी सब्जी भी बनती है और इसे सब्जी बनाने में मसालों के साथ उपयोग भी किया जाता है।
इसे संस्कृत में कृष्णावल कहते थे।
वैसे इस शब्द को विस्मृत कर दिया गया है और आजकल यह शब्द प्रचलन में नहीं है।
कृष्णावल कहने के पीछे एक रहस्य छुपा हुआ है। आईए, देखिए कि प्याज को क्यों कहते हैं कृष्णावल :
दक्षिण भारत में खासकर कर्नाटक और तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में प्याज को आज भी कृष्णावल नाम से ही जाना जाता है।
इसे कृष्णवल कहने का तात्पर्य यह है कि जब इसे खड़ा काटा जाता है तो वह शङ्खाकृति यानी शङ्ख के आकार में दिखता है। वहीं जब इसे आड़ा काटा जाता है तो यह चक्राकृति यानी चक्र के आकार में दिखाई देता है।
आप जानते ही हैं कि शङ्ख और चक्र दोनों श्री हरि विष्णु के आयुधों में से हैं और श्री कृष्ण जी श्री हरि के दशावतार में ही पूर्णावतार (नवें अवतार) हैं।
शङ्ख और चक्र की आकृतियों के कारण ही प्याज को कृष्णावल कहते हैं। कृष्ण और वलय शब्दों को मिलाकर बना “कृष्णावल” शब्द है।
कृष्णावल कहने के पीछे केवल यही एक कारण नहीं है ; अपितु यदि आप प्याज को उसकी पत्तियों के साथ उलटा पकड़ेंगे तो वह गदा का भी रूप ले लेता है।
यह भी रोचक है कि यदि पत्तों के काट दिया जाए तो वह पद्म यानी कमल का आकार लेता है।
गदा और पद्म भी भगवान श्री हरि विष्णु के आयुध हैं जिसे वे चक्र और शङ्ख के साथ धारण करते हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना ही है कि आजकल किन्नर जैसा रूप धरे कथित धार्मिक कथावाचक, जो केवल अपने आप को ही धर्म का झण्डावरदार समझते हैं ; इस कृष्णावल की निंदा में अनर्गल बातें करते हैं, इसे त्याज्य बताते हैं। वे अधार्मिक हैं.