जमीन को हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेजों का खेल, विक्रयकर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था के सदस्यों के हित की है जमीन
शहर की एक संस्था की जमीन को हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेजों का खेल, लबे समय से खेला जा रहा है। जिस जमीन को भू-माफिया हड़पना चाहते हैं। वो राज्य शासन के सिलिंग एक्ट की धारा 20 के तहत विमुक्ति प्राप्त भूमि होकर विक्रयकर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था की है। इस जमीन को एक परिवार वर्तमान में अपने भू-माफिया साथियों के साथ मिलकर असत्य नोटरी दस्तावेजों के आधार पर प्लाटों की खरीदी- बिक्री करवा रहा है। जबकि इस भूमि से जुड़ा विमुक्ति का आदेश स्पष्ट रूप से उल्लेखित करता है कि इस भूमि का विक्रय व विकास उक्त संस्था अपने सदस्यों को ही कर सकती है। अन्यथ यह भूमि शासकीय घोषित होगी। इन तथ्यों को भी ना मानते हुए उक्त परिवार और भू-माफिया इस पर मकानों का निर्माण कर खरीद- फरोख्त में लिप्त है। इस जमीन पर मकानों का निर्माण भी शुरू हो चुका है। इस संबंध में शिकायतें होने के बावजूद आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अगर जल्द ही प्रशासन ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया तो संस्था की जमीन पर कब्जा हो जाएगा और जमीन पर कटे प्लाटों के असली मालिकों के हाथ कुछ नहीं लगेगा। ये पूरा मामला झोन क्रमांक 21 के वार्ड क्रमांक 81 का है। उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र पहले झोन क्रमांक 13 के तहत आता था। विक्रयकर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था की ये जमीन हवा बंगला झोन के ठीक पीछे है। इसका खसरा नंबर 526/1/1 है। भूमि का कुल क्षेत्र 2.87 एकड़ है। जानकारी के मुताबिक पूरा मामला ये है कि ये जमीन साल 1985 में मेजर रामाराव बोराड़े द्वारा अपनी स्वअर्जित संपत्ति, जिसमें उक्त भूमि सम्मिलित है। जिसका विक्रय अनुबंध रामाराम बोराड़े ने विक्रयकर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था से 4 फरवरी 1985 को 20 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से कर दिया गया था। विक्रय अनुबंध के बाद भूमि, शहरी भूमि सिलिंग एक्ट 1976 की धारा 20-1 के तहत विमुक्ति आदेश पत्र प्राप्त हुआ।
आदेश में उल्लेखित मुख्य शर्ते ये हैं
• शर्त 1- धारक अर्थात रामराव बोराडे, उक्त भूमि का विक्रय भकिय में केवल और केवल विक्रयकर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था को ही कर सकते हैं।
शर्त 2- छूट दी गई भूमि का विकास केवल विक्रयकर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था द्वारा ही किया जाएगा।
शर्त 3- जिन शर्तों के साच विमुक्ति प्रदान की गई है। यदि उनमें से किरी एक भी हार्त का पालन नहीं किया जाता है तो उक्त भूमि
रिक्त मानकर शासन की भूमि मानी जाएगी। • उक्त सभी परिस्थितियां स्पष्ट होने के बाद मृत किसान रामाराव के पुत्र पुत्रियों द्वारा सुनियोजित तरीके से अपने भू-माफिया मित्रों के साथ मिलकर मृत किसान की पत्नी मृतिका चंद्रप्रभा पति रामाराव बोराड़े के मरणोपरांत फर्जी नेोटरी दस्तावेज तैयार कर अपने परिचितों को उक्त जमीन पर छोटे-छोटे भूखंड काटकर बेचे जा रहे हैं। साथ ही भवनों का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए उक्त परिवार और भू-माफिया द्वारा कॉलोनी निर्माण और भवन निर्माण के लिए आवश्यक किसी भी तरह की शासकीय अनुमति नहीं ली है। जिसके तहत संस्था के भूखंडधारी सदस्य व संस्था के पदाधिकारियों द्वारा कई शिकायतें निगम, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को की गई है। बावजूद इसके भू-माफियाओं के दबाव-प्रभाव में अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। • उक्त प्रकरण इन्दौर मेट्रो कार्यालय के संज्ञान में आने के बाद कार्यर्यालय की टीम द्वारा जब पड़ताल की गई तो यह पता चला कि निगम प्रशासन द्वारा अवैध निर्माणकर्ताओं को चार बार नेटिस जारी हो चुका है, इसके बाद भी अधिकारी, भूमाफियाओं से सांठगांठ कर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। मौन धारण कर भूमाफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं।
स्वानित्व व कब्जा
इस मामले में इन्दौर नगर पालिका निगम कार्यालय से 8 मई 2023 को अवैध निर्माण हटाने के लिए नेटिस दिया गया। इसके बाद 5 मार्च 2024 को दूसरा नोटिस थमाया। तीसरा बेटिस 16 अप्रैल 2024 और चौथा नोटिस 22 मई 2024 अंतिम नोटिस दिया गया। इसमें उल्लेखित किया गया कि अवैध निर्माण को बेटिस प्राप्ति दिनांक से तीन दिवस के भीतर हटाकर सूचित करें। अन्यथा नगर पालिका अनिधिनियम 1956 की धारा 307 व मप्र भूमि विकास के नियम 2012 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी। जिसकी समस्त जवाबदारी निर्माणकर्ताओं की होगी। इसके बाद नगर निगम ने न नोटिस जारी किया और ना ही मौके पर कोई कार्रवाई की। ऐसे में अवैध निर्माण लगातार बढ़ रहा है। भूमाफिया निगम के उन नोटिसों को घता बताकर अपना काम और धड़ल्ले से कर रहे हैं।
भू-माफिया गोल्डी कर रहा फर्जीवाड़ा
इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि जो परिवार इस पूरे फर्जीवाड़े के पीछे है। वो क्षेत्र के एक भू-माफिया गौरव द्विवेदी उर्फ गोल्डी के साथ मिलकर इस पूरे फजीवाड़े को अंजाम दे रहे हैं। इसमें ोल्डी के साथ एक तहसीलदार का नाम मिला होना भी सामने आ रहा है। जो देवास जिले में पदस्थ बताया जा रहा है। बता दें कि इस मामले में संस्था सेशन कोर्ट में केस हार चुकी है। कोर्ट ने तर्क दिया था कि जिस पॉवर के तहत रजिस्ट्री की थी। उसकी मौत होने से वो पॉवर शून्य हो गया है। इस कारण रजिस्ट्री भी छूय हो चुका है। हालांकि संस्था का एग्रीमेंट जीवित है। संस्था के पक्ष में सिलिंग एक्ट है। भूमि का डायवर्शन संस्था के नाम से हुआ है। नक्क्षा भी पास हो चुका है। इन सभी चीजों को कोर्ट ने वैध माना है और इनके संबंध में कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिए। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।