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साहित्य : कुछ अरबी शब्दों के अर्थ और परिभाषाएं 

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       पुष्पा गुप्ता 

    1. अल्लाह :

    अरेबिक भाषा के इस शब्द का अर्थ “पूजनीय” है. शास्त्रों के अनुसार पूजनीय वह शक्ति है जिसने इस समस्त ब्रह्माण्ड की रचना की है. जो  अजर है और अमर भी है.  न उसका कोई रूप मनुष्यों ने देखा है और न ही उसने किसी रूप में धरती पर अवतार लिया है। 

     मनुष्यों और अन्य जीवों की तरह वह न किसी से पैदा हुआ और न उसकी कोई संतान है। वह अकेला है और अपने किसी कार्य को करने में किसी पर आश्रित नहीं है। अर्थात वह शक्ति मनुष्यों की तरह खाना पीना सोना और दूसरी चीजों से स्वतंत्र है।

2. मलाइका :

 इस अरेबिक भाषा का अर्थ फ़रिश्ते , देवता आदि है. इस्लामिक शास्त्रों के अनुसार ईश्वर ने फरिश्तों की रचना नूर अर्थात ज्योति से की है. फरिश्तों में कोई जेंडर नहीं होता और न ही इनमें संतानोत्पत्ति की योग्यता है। फ़रिश्ते असंख्य है और वे ईश्वरीय आदेशानुसार सृष्टि के विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं। 

     वे कभी ईश्वरीय आदेशों की अवहेलना नहीं करते. वे न खाते पीते हैं और न ही वे थकते हैं। फरिश्तों को साधारण मनुष्य उनके वास्तविक रूप में नहीं देख सकता परंतु वे किसी और रूप में मनुष्यों के सामने आ सकते हैं और उनकी सहायता करते हैं। 

   मनुष्यों में जो ऋषि मुनियों पैगम्बरों तक ईश्वरीय आदेश फरिश्तों के द्वारा ही भेजे जाते रहे हैं।

3. जिन्नात  :

जिन्नात का अर्थ ईश्वर की एक ऐसी रचना जो आग की लौ से पैदा की गई और छुपी हुई है। 

    इस्लामी शास्त्रों के अनुसार जिन्नात इस धरती पर मनुष्यों के आगमन से भी कई लाखों वर्ष पहले से रहते और शासन करते रहे हैं।

     यह बहुत ही उत्पाती जीव है. मनुष्यों के समान इनमें स्त्री पुरुष होते हैं. इनकी संतानें भी जन्म लेती है. हमारी तरह इनमें चोपाए, पक्षी भी होते हैं.  इनकी कुछ प्रजातियों में रूप बदलने की क्षमता भी पाई जाती है और ये खाते पीते भी है।

     जब इन्होंने इस पृथ्वी पर अत्यधिक उत्पात मचाना प्रारंभ कर दिया तो ईश्वर ने देवताओं को भेजा जिन्होंने इनसे युद्ध किया और इनको मार मारकर भगा दिया। बहुत से मारे गए और जो बच गए थे वो सुनसान स्थानों, रेगिस्तानों, टापुओं और समुद्री साहिलों की तरफ भाग गए और वहीं अपनी बस्तियां बसा ली।

     मनुष्यों की तरह इनमें भी अच्छे और बुरे हैं। जो बुरे हैं और मनुष्यों को तंग करते हैं उनको ही भूत पिशाच चुड़ैल डायन आदि नामों से जाना जाता है।

4. शैतान :

  जिन्नात की प्रजापति में से ही एक था जिसने हजारों वर्षों तक ईश्वर की तपस्या की.  जिस कारण उसे ईश्वर की और से बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ यहां तक कि उसे फरिश्तों का गुरू बनने और उनके सानिध्य में रहने का गौरव प्राप्त हुआ। 

    परंतु जब ईश्वर ने प्रथम मनुष्य की रचना की और उसे पृथ्वी की सत्ता सोंपने का निर्णय लिया तो सभी फरिश्तों और जिन्नों को उस होने वाले सत्ताधारी मनुष्य को अपना समर्थन देने का आदेश दिया.  इस जिन्न ने जिसका नाम इबलीस था , इस घमंड में आकर कि वह आग से बना है जबकि मनुष्य को मिट्टी से बनाया है वह श्रेष्ठ है। इसलिए कि आग सदैव ऊपर की ओर तथा मिट्टी सदैव नीचे की तरफ जाती है। इसने ईश्वरीय आदेश को स्वीकार नहीं किया।

    फलस्वरूप उसे प्रलय तक के लिए शैतान घोषित कर दिया गया। तब ईश्वर से शैतान ने एक वरदान मांगा कि उसे प्रलय तक का जीवन दिया जाए। तभी से शैतान और मनुष्य के बीच शत्रुता चली आ रही है। 

    वह और उसकी संतानें सदैव यही चाहती है कि कोई भी मनुष्य अच्छे कर्म न करें।

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