अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

लगता है शुभ मुहूर्त में शुरू नही हो पाई तीसरी पारी

Share

ओमप्रकाश मेहता/

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के शासन काल के करीब छः दशक बाद किसी प्रधानमंत्री के शासन की तीसरी पारी शुरू हुई है, ये खुशकिस्मत प्रधानमंत्री है नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी। लेकिन मोदी जी के प्रधानमंत्रित्व काल की तीसरी पारी ऐसा लगता है किसी शुभ मुहूर्त में शुरू नही हो पाई, क्योंकि लोकसभाध्यक्ष को लेकर सरकार व प्रतिपक्ष के बीच तनातनी जो हो गई, पहले प्रोटेम स्पीकर (काम चलाऊ अध्यक्ष) को लेकर विवाद हुआ, फिर अध्यक्ष पद को लेकर। भारत की आजादी के बाद यह अठारहवीं लोकसभा है, इस दौरान लोकसभाध्यक्ष के पद को लेकर चार बार चुनाव कराने पड़े और अब यह पांचवां अवसर है, जब लोकसभाध्यक्ष को लेकर पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच विवाद है, इस विवाद की जड़ लोकसभा उपाध्यक्ष का पद है, जो पिछले कई वर्षों से प्रतिपक्ष को दिया जाता रहा है, लेकिन इस बार अध्यक्ष-उपाध्यक्ष दोनों ही पद सत्तारूढ़ भाजपा अपने पास रखना चाहती है, बस इसी विवाद और मोदी जी की जिद के कारण यह संघर्ष की स्थिति पैदा हुई।

यद्यपि यह प्रतिपक्ष को भी पता है कि संख्या बल के हिसाब से जीत भाजपा उम्मीदवार की ही होना तय थी, लेकिन प्रतिपक्ष ने अपनी असहमति दर्ज कराने के लिए भाजपा के उम्मीदवार व पूर्व लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला के खिलाफ के. सुरेश को मैदान में उतारा, यद्यपि संसदीय अनुभव व वरिष्ठता के हिसाब से के. सुरेश बिरला जी से काफी आगे है, के. सुरेश आठवीं बार सांसद चुने गए है, जबकि बिरला जी चौथी बार, किंतु हमारे प्रजातंत्रिय प्रणाली में संख्या बल अहम् है, इसलिए यहां पद के साथ व्यक्ति की वरिष्ठता व अनुभव को नही बल्कि उसके साथ संख्या बल को अहमियत दी जाती है और उसमें बिरला जी अपने प्रतिद्वन्दी के. सुरेश से काफी आगे रहे। यहाँँ यह भी महत्वपूर्ण है कि यदि मोदी जी अपनी जिद छोड़ प्राचीन परम्परा के अनुसार लोकसभा उपाध्यक्ष का पद प्रतिपक्ष को दे देते तो यह विवाद पैदा ही नही होता, लेकिन क्या किया जाए?

मोदी की जिद भी राजहठ, बालहठ व त्रियाहठ से कम थोड़े ही है, अब आप उन्हें इन तीनों श्रेणियों में से किसी का भी सदस्य मान लें, वे जिद करते है, तो फिर पूरी करके ही छोड़ते है, ऐसे गुजरात में अनेक उदाहरण है, लेकिन अब वे यह शायद भूल गए है कि वे ऐसे पद पर विराजित है, जिस पर विवाद का असर सिर्फ राष्ट्रव्यापी नहीं, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का होता है, जिसकी आवाज व धमक भी काफी दूर तक सुनाई देती है। अब यदि हम देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति देखें तो यह स्पष्ट होता है कि मोदी जी की यह तीसरी पारी सुख-शांति से तो गुजरने वाली नही है, क्योंकि पक्ष तथा विपक्ष के बीच लोकसभा में केवल साठ सदस्यों का ही अंतर है, मोदी जी के नेतृत्व वाली भाजपा को पिछले चुनावों में स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया, इसलिए मोदी जी को सहयोगियों की बैसाखियों के सहारे सत्ता का महल खड़ा करना पड़ा और बैसाखियों का तो यह इतिहास ही रहा है कि वह कभी किसी की स्थाई सहयोगी नहीं रही, इसलिए मोदी जी की सरकार भी पांच साल सुख-शांति से चल पाएगी, यह संदिग्ध ही लग रहा है, इसीलिए अभी से मध्यावधि चुनाव की भविष्यवाणियां की जा रही है।

….और मोदी जी का राजनीतिक इतिहास उठाकर देख लीजिए, उनके इतिहास में ‘समझौता’ शब्द तो दर्ज है ही नहीं, ऐसे में देश का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? यह कहना मुश्किल है और उनकी सरकार का ‘आगाज’ ही बता रहा है कि इसका ‘अंजाम’ क्या होगा?

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें