व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा
ना जी ना, ये तो बिल्कुल ठीक बात ना है जी। भारत का इतिहास दुरुस्त किया जा रहा है। सिर्फ इतिहासकारों के भरोसे नहीं, मस्जिदें खोद-खोदकर इतिहास दुरुस्त किया जा रहा है। उससे भी काम नहीं चले, तो फिल्में बना-बनाकर, इतिहास दुरुस्त किया जा रहा है। पब्लिक दुरुस्त इतिहास देखने को राजी नहीं हो, तो फिल्में टैक्स फ्री करा-करा के इतिहास दुरुस्त किया जा रहा है। पब्लिक टैक्स फ्री पर भी टूट कर नहीं पड़े, तो पीएम, एचएम, सीएम वगैरह, तमाम मिनिस्टर की पूंछ लोगों से फिल्मों का प्रमोशन करा-करा के इतिहास दुरुस्त किया जा रहा है। इतिहास को कहानी और कहानी को इतिहास बनाकर इतिहास दुरुस्त किया जा रहा है। पर ये सेकुलर लोग सब देखते-समझते हुए भी, इस मामूली सी गिनती की वजह से इतिहास के सुधरने को रोकने पर तुले हैं कि जब सम्राट पृथ्वीराज की मौत 1192 में हुई थी, तो अक्षय कुमार ने पृथ्वीराज बनकर मोहम्मद गोरी को तीर से कैसे मार दिया, जबकि गोरी की मौत तो 1206 में हुई थी! सन 1200 से आठ साल पहले मरने वाला पृथ्वीराज चौहान, सन 1200 के पूरे छ: साल बाद, मोहम्मद गोरी को कैसे मार सकता था?
वैसे राष्ट्रवादियों के इतिहास के सुधार के यज्ञ में बाधा डालने वाले ये सेकुलर गणित ही नहीं, भूगोल वगैरह के भी झगड़े खड़े कर रहे हैं। जैसे यही कि जब पृथ्वीराज चौहान की मौत अजमेर में हुई थी, तो उससे सैकड़ों मील दूर गजनी में मोहम्मद गोरी के दरबार में चंद्रबरदाई के इशारे पर पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को शब्दबेधी बाण मारा, तो मारा कैसे? और अगर यह भी कि मान लें कि शब्दबेधी बाण खाने के बाद, गोरी की तो घिसट-घिसट कर पूरे चौदह साल बाद मौत हुई होगी, पर बाण मारने के बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद्रबरदाई के साथ क्या हुआ? पृथ्वीराज चौहान का अंत अजमेर में कराने के लिए, गोरी को तीर मारने के बाद दोनों या कम से कम पृथ्वीराज कैसे बच निकले? और तो और, ऐसे-ऐसे सवाल भी उठा रहे हैं कि अगर पृथ्वीराज चौहान को आंखों पर पट्टी बांधकर गोरी को शब्दभेदी बाण से ही मारना था, तो चंद्रबरदाई को उसे निशाना लगाने के लिए, ‘चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण’ के ऊपर सुल्तान का हिसाब बताने की जरूरत ही क्या थी? बाण से गोरी के शब्द को ही तो बेधना था।
और जब से अमित शाह जी ने अक्षय कुमार की फिल्म देखने के बाद, पृथ्वीराज को मुसलमान शासकों से पहले दिल्ली पर राज करने वाला आखिरी बड़ा हिंदू राजा बताया है, तब से नये इतिहास का रास्ता काटने वालों ने इसका झगड़ा और खड़ा कर दिया है कि पृथ्वीराज राजा कहां का था–दिल्ली या अजमेर? और तब दिल्ली का राज था ही कितना, वगैरह-वगैरह। लेेकिन ये सब बहाने ही हैं, नए इंडिया में पुराने भारत वाला इतिहास चलाने के। पर शाह जी ने साफ-साफ बता दिया है कि मोदी का राज आने के बाद से हिंदू जाग गया है पुराने इतिहास को ठीक करने के लिए। वह सिर्फ मस्जिदों के नीेचे दबे मंदिरों को ही खोजकर नहीं निकालेगा, अपने राजाओं को लड़ाई के मैदान में हराकर छोटा बनाने वालों को, फिल्मों से लेकर इतिहास की पाठ्यपुस्तकों तक के मैदान में हराएगा और अपने धर्म की ही तरह, अपने राजाओं को भी महान बनाएगा।
रही पृथ्वीराज के मोहम्मद गोरी से पहले मरने की बात, तो नये इतिहास में अब से गोरी, पृथ्वीराज से युद्घ में हारा ही नहीं करेगा, उससे पहले मरा भी करेगा। रही बात इसकी कि पृथ्वीराज की मौत कब-कैसे हुई, तो हिट होने वाला एंड फिल्म बनाने वाले ही तक कर लें, असली बात तो हिंदू राजाओं को महान बनाना है। और हां! जयचंद के हिंदू राजा होने का जिक्र कोई नहीं करेगा।
*(राजेन्द्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*