आतिरा कोनिक्करा
विष्णु शशि शंकर की फिल्म “मलिकप्पुरम” के क्लाइमेक्स सीन में फिल्म की नायिका कल्याणी सीढ़ियां चढ़ते हुए सबरीमाला मंदिर के गर्भगृह की ओर जाती दिखाई देती है और मंदिर के देवता अय्यप्पन से मिलने की अपनी लंबे समय से चली आ रही इच्छा को पूरा करती है. हालांकि, यह कहानी रूढ़िवादिता को नकारने वाली किसी ऐसी महिला के बारे में नहीं है जो मंदिर परिसर में मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने से रोकने वाले सामाजिक रीति-रिवाजों को तोड़ते हुए देवता के दर्शन करती है. आठ साल की कल्याणी जिसे सभी कल्लू के नाम से जानते हैं, का किरदार बाल अभिनेत्री देव नंधा ने निभाया है और अय्यप्पन से मिलने की अपनी जिद हर उस शख्स को बताती है जिससे वह मिलती है.
फिल्म शुरू होने से पहले ही कहानी स्पष्ट हो जाती है. फिल्म की शुरुआत में जिन लोगों को धन्यवाद दिया गया उनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी; राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत; आरएसएस के प्रांत प्रचारक और केरल के प्रांतीय नेता एस सुदर्शन; केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन; भारतीय जनता पार्टी के केरल अध्यक्ष के सुरेंद्रन; अनुभवी आरएसएस और बीजेपी नेता और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल कुम्मानम राजशेखरन; विश्व हिंदू परिषद के केरल राज्य अध्यक्ष विजी थम्पी; बीजेपी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता संदीप वारियर और सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले, जिसमें सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति दी गई थी के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हिंदुत्ववादी कार्यकर्ता राहुल ईश्वर का नाम शामिल था. मैंने किसी अन्य मलयालम फिल्म को याद करने की बहुत कोशिश की जिसने आरएसएस के प्रति आभार व्यक्त किया गया हो, लेकिन असफल रहा.
सबरीमाला पर कई मलयालम फिल्में बन चकी हैं, विशेष रूप से 1975 में बनी स्वामी अय्यप्पन, जिसमें लोकप्रिय अभिनेताओं सुकुमारी, श्रीविद्या, जेमिनी गणेशन और थिकुरिसी सुकुमारन नायर ने अभिनय किया था. फिल्म अय्यप्पन के जन्म से जुड़े मिथक और दसवीं शताब्दी के पांड्या वंश द्वारा उन्हें गोद लेने के बारे में बताती है. एक मुस्लिम व्यक्ति वावर के साथ उसकी दोस्ती के कारण देवता को समावेशिता के प्रतीक के रूप में पेश किया जाता है. सबरीमाला सभी वर्गों के पुरुषों के लिए खुला है, केरल के अन्य लोकप्रिय मंदिरों के विपरीत, जो स्पष्ट रूप से गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाते हैं और 1936 में आई त्रावणकोर सरकार की मंदिर प्रवेश उद्घोषणा से पहले बहुजनों का मंदिर के पास आना भी प्रतिबंधित था, लेकिन मासिक धर्म वाली आयु की महिलाओं के लिए नहीं. स्वामी अय्यप्पन फिल्म में एक व्यक्ति एक बुजुर्ग तीर्थयात्री से निषेध के बारे में पूछता है. तीर्थयात्री अक्सर बताए जाने वाले तर्क को ही दोहराता है कि युवा महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकती क्योंकि अय्यप्पन ब्रह्मचारी है. इस तर्क पर जोर देने के लिए कि महिला भक्तों को अभी भी प्रोत्साहित किया जाता है, फिल्म में अय्यप्पन के बारे में एक कहानी है जो एक सपेरे के रूप में एक युवा लड़की को उसकी तीर्थ यात्रा के दौरान सांप से बचाते हुए दिखाई देता है.
मलिकप्पुरम का शीर्षक उन महिला तीर्थयात्रियों के नाम पर रखा गया है जो अभी तक मासिक धर्म की उम्र तक नहीं पहुंची हैं या वह उम्र पार कर चुकी हैं. यह नाम मलिकप्पुरथम्मा देवी की याद में रखा गया था जिनका सबरीमाला के पास अलग से एक मंदिर है. यह फिल्म 30 दिसंबर 2022 को तीर्थयात्रा के समय के दौरान, सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिलाओं पर प्रतिबंध को असंवैधानिक करार देने के चार साल बाद रिलीज हुई थी. (इसे तमिल और तेलुगू में थिएटर में रिलीज किया गया और 15 फरवरी को डिज़्नी+हॉटस्टार पर इसका प्रीमियर हुआ.) इस फैसले के बाद सवर्ण पुरुष और महिलाएं विरोध करने सड़कों पर उतर आए कि यह मंदिर की परंपराओं पर एक हमला है.
प्रतिबंध पर संघ परिवार का रुख भ्रमित करने वाला रहा है. 2006 में आरएसएस से जुड़े थिंक टैंक के निदेशक पी परमेश्वरन ने कहा कि सबरीमाला में महिलाओं को अनुमति नहीं दी जाने का कोई मजबूत कारण नहीं है. उसी वर्ष आरएसएस से मजबूत संबंध रखने वाले भारतीय युवा वकील संघ ने प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी. 2016 के अंत में आरएसएस के सरकार्यवाह महासचिव सुरेश जोशी ने तर्क दिया कि “जहां भी पुरुषों को प्रवेश दिया जाता है वहां महिलाओं को प्रवेश दिया जाना चाहिए.” और के सुरेंद्रन ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा कि सिर्फ इसलिए कि अय्यप्पन ब्रह्मचारी थे, “इसका मतलब है कि वह एक नारीद्वेषी है.” संघ ने शायद इसे हिंदूओं को एक करने की अपनी बड़ी योजना में महिलाओं के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने के तरीके के रूप में देखा.
मलिकप्पुरम के अधिकांश भाग में गैर-राजनीतिक तरीके से वर्णन किया है लेकिन इसकी ब्राह्मणवादी राजनीति समय-समय पर सतह पर आती है. उस वर्ष, पीपल फॉर धर्म नामक चेन्नई स्थित एक संगठन की अध्यक्ष और बीजेपी की सदस्य शिल्पा नायर ने “रेडी टू वेट” अभियान शुरू किया, जिसके तहत महिलाओं ने सबरीमाला जाने से पहले रजोनिवृत्ति तक प्रतीक्षा करने का संकल्प लिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने उस राजनीतिक लाभ को पहचाना जो रूढ़िवादी राह पर चलने वाले केरल के लोगों के गुस्से का फायदा उठाकर कमाया जा सकता था. सुरेंद्रन ने यह स्वीकार किया कि केरल की महिलाओं की भावनाओं ने बीजेपी को अपना रुख बदलने के लिए मजबूर किया. शुरुआत में फैसले का स्वागत करने वाली आरएसएस ने अपनी राजनीतिक शाखा के साथ बने रहने के लिए फूहड़ ढ़ंग से अपना रुख बदल लिया. जोशी ने राज्य में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार पर “भक्तों की भावनाओं को ध्यान में रखे बिना” जल्दबाजी में फैसले को लागू करने का आरोप लगाया.
फैसले के तुरंत बाद दक्षिणपंथी संगठनों की एक छत्र संस्था, सबरीमाला कर्म समिति का गठन किया गया था ताकि कोर्ट के फैसले और मंदिर में महिलाओं के सुरक्षित प्रवेश की सुविधा के लिए राज्य सरकार के प्रयासों का विरोध किया जा सके. इसका नेतृत्व हिंदू एक्य वेदी की अध्यक्ष केपी शशिकला ने किया था, जो अपने इस्लामोफोबिक बयानों के लिए जानी जाती हैं. मलिकप्पुरम का प्रचार करते हुए, इसके प्रमुख अभिनेता उन्नी मुकुंदन एचएवी के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष, वलसन थिलनकेरी से मिले और उन्हें व्यक्ति के रूप में एक रत्न कहा.
2 जनवरी 2019 को एक वकील और दलित कार्यकर्ता बिंदू अम्मिनी और केरल राज्य नागरिक आपूर्ति निगम की एक कर्मचारी कनक दुर्गा पुलिस सुरक्षा में मंदिर में प्रवेश करने में सफल रहीं. इसे लेकर एसकेएस ने राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया और कई जिलों में विरोध हिंसक हो गया. उसके बाद से किसी भी महिला ने मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास नहीं किया है. जबकि दुर्गा को उसके परिवार ने बहिष्कृत कर दिया था और अम्मिनी की दलित पहचान रोष का एक अलग कारण बनी. सालों बाद भी कई बार अजनबी लोगों ने उस पर हमला किया. 5 जनवरी 2022 को एक फेसबुक पोस्ट में उसने लिखा कि वह अब केरल में नहीं रहना चाहती, क्योंकि यह साफ हो गया था कि राज्य महिलाओं और दलितों के लिए सुरक्षित नहीं है.
मलिकप्पुरम को किसी बड़ी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है. एकमात्र दृश्य जहां फैसले पर विवाद को संदर्भित किया जाता है जब कल्लू की कक्षा में एक लड़का शिक्षक से पूछता है कि क्या महिलाओं का सबरीमाला में प्रवेश करना प्रतिबंधित है. और शिक्षक यह पूछकर प्रश्न को टाल देता है कि क्या उसने अपना होमवर्क किया है. कल्लू की दादी अपने बेटे अजयन से जल्द से जल्द तीर्थ यात्रा करने का आग्रह करती है, क्योंकि कल्लू की उम्र बढ़ रही है, अय्यप्पन से मिलने का उसका सपना पूरा होने का समय निकल रहा है. अजयन आंशिक रूप से खाड़ी में काम करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है क्योंकि इसका मतलब होगा कि वह दो साल तक केरल में नहीं रहेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.
हालांकि, फिल्म के अंत में अम्मिनी और दुर्गा पर परोक्ष रूप से कटाक्ष किया गया है. एक पुलिस अधिकारी और अय्यप्पन का संभावित अवतार डी अय्यप्पादास का किरदार निभाने वाले मुकुंदन कल्लू को तीर्थ यात्रा करने में मदद करता है, यह महिलाओं को मिली पुलिस सुरक्षा और उसके बाद हुई हिंसा के बारे में बताता है. उन्होंने अपने मुख्य निरीक्षक को बताया, “हमने अपनी इच्छा के विरुद्ध अयोग्य लोगों को सबरीमाला में पहुंचने में मदद की. इसका क्या परिणाम रहा? यह तय करना अय्यप्पन का विवेक है कि वह वहां किसे अपने पास बुलाना चाहता है.”
मंदिर प्रवेश के विवाद में पड़ने के बजाय फिल्म सबरीमाला से जुड़े धार्मिक उत्साह को भुनाने की कोशिश करती नजर आती है. इसने तीर्थयात्रा के समय के दौरान बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई की और मंदिर ने भी रिकॉर्ड दान अर्जित किया था और तीर्थयात्रा पर केंद्रित बेहद कम दृश्य होने के बावजूद एक एक्शन एडवेंचर तैयार करके बच्चों को प्रेरित किया. कल्लू एक प्यार करने वाले परिवार में रहने वाली एक खुशमिजाज बच्ची है जो अन्य सभी चीजों को छोड़कर सिर्फ अय्यप्पन के प्रति जुनून रखती है. वह अय्यप्पन के बारे में सपने देखती है, स्कूल जाने से पहले उसके चित्र को देखती है, कक्षा में बैठकर उसके चित्र बनाती है, अपनी दादी को उसके बारे में अपनी कहानियां सुनाती है और अजयन को अपनी हर बातचीत में उसे सबरीमाला ले जाने के लिए परेशान करती है. उसकी दादी भी अजयन को उनकी हर बातचीत में इस इच्छा के बारे में पूछकर कल्लू की मदद करती है. जब कल्लू की सबसे अच्छी दोस्त पीयूष उन्नी उसे मार्वल सिनेमा के पात्रों के कार्ड से खेलने की बात करती है, तो वह मना कर देती है कि अय्यप्पन ही एकमात्र सुपर हीरो है जिसकी वह परवाह करती है.
अजयन अगले तीर्थयात्रा के मौसम में कल्लू को सबरीमाला ले जाने का वादा करता है, लेकिन एक स्थानीय गैंगस्टर द्वारा कर्ज न चुकाने के कारण उसकी बेटी के सामने उसकी पिटाई करने के बाद वह खुद को मार डालता है. दर्शकों को यह बताने की कोशिश करते हुए कि यह परंपरा को पूरी तरह से खत्म करने के खिलाफ नहीं है फिल्म में दिखाया गया है कि अजयन एक पुरुष रिश्तेदार के बजाय कल्लू से अपना अंतिम संस्कार कराना चाहता था, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उसने यह इच्छा कब बताई. हालांकि अपने पिता को खोने के कुछ दिनों के भीतर कल्लू एक बार फिर अड़ जाती है कि वह तीर्थ यात्रा करना चाहती है. वह उन्नी को साथ चलने के लिए मना लेती है और दोनों घर से भाग जाते हैं.
जब वे बस में यात्रा करते हैं तब अपहरण करने के लिए छोटी लड़कियों को खोजने निकले एक बाल तस्कर माही की नजर कल्लू पर पड़ती है. कई अन्य मलयालम फिल्मों की तरह मल्लिकापुरम ने एक सांवले रंग के तमिल भाषी व्यक्ति को बुरे किरदार के रूप में दिखाया. उसके कोई कदम उठाने से पहली ही वे वे अयप्पादास से मिल जाते हैं, जिन पर बच्चे भरोसा करते हैं क्योंकि वह कल्लू के सपनों में देवता बनकर आता है. अय्यप्पादास कल्लू और उन्नी पर नजर रखता है, उन्हें और फिल्म के दर्शकों को तीर्थयात्रा को पूरा करने का निर्देश देता है और कल्लू को मंदिर की 18 सीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए केवल एक टॉर्च की सहायता से माही के पूरे गिरोह की पिटाई करता है. वह अय्यप्पन को प्रणाम करती है और बच्चे हमेशा के लिए खुशी से रहने के लिए उन्नी के पिता के साथ घर लौट आते हैं.
कल्लू के सहपाठी उस आदमी द्वारा छुआ जाने से डरते हैं जो उनके गांव में दाह संस्कार करने का काम करता है, जिसे एक शराबी की तरह दिखाया गया है. उन्नी एक ऐसे राज्य में जहां नब्बे प्रतिशत से अधिक आबादी मांस खाती है, चिकन करी के लिए पूछकर सड़क किनारे भोजनालय में सभी को चौंका देती है. इन दोनों घटनाओं का उपयोग हास्य प्रभाव के लिए किया जाता है. अभिनेता मनोज के. जयन एक मुस्लिम मुख्य निरीक्षक की भूमिका निभाते हैं जो अपने माथे पर चंदन का लेप लगाता है, हिंदू देवता गणेश के लिए एक नारियल फोड़ता है और सभी को “स्वामी शरणम” कहकर अभिवादन करता है. यह व्यवहार में भारत में धर्मनिरपेक्षता का एक दिखावा है, जिसका अर्थ केवल यह है कि मुसलमानों को उदारता अपनाते हुए मिलकर रहना चाहिए.
हाल के वर्षों में सबरीमाला मंदिर के मासिक धर्म वाली महिलाओं के अलावा सभी का स्वागत करने के दावों की भी हवा निकल गई है. राज्य में मंदिरों का प्रशासन संभालने वाले और केरल सरकार के तहत काम करने वाले एक स्वायत्त निकाय, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने 2017 में दलित पुजारियों को नियुक्त करना शुरू किया, सबरीमाला में पूजारी जिसे मेलशांति कहा जाता है, एक मलयाली ब्राह्मण ही होना चाहिए और वर्ष 1902 से एक नंबूदिरी परिवार ने इस पद पर एकाधिकार कर लिया है. एझावा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सीवी विष्णु नारायणन ने जब 2018 में मेलशांति बनने के लिए आवेदन किया, तो आवेदन को उनकी जाति के कारण खारिज कर दिया गया था.
मलिकप्पुरम के रिलीज होने से तीन हफ्ते पहले, नारायणन और अन्य पिछड़ा वर्ग के अन्य पुजारियों ने ब्राह्मणों के लिए इस आरक्षण के खिलाफ केरल उच्च न्यायालय का रुख किया. आदिवासी माला अराया समुदाय ने अय्यप्पन के ब्राह्मणवाद से जुड़े होने पर भी सवाल उठाया है, जिनका मानना है कि वह माला अराया दंपति से पैदा हुए थे. हालांकि, सामाजिक रूप से वंचितों द्वारा अपने इतिहास को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों और समान पहुंच के उनके अधिकार के दावों को पवित्रता की धारणाओं में फंसी बहसों में भी जगह नहीं मिली है.