वाणी प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित हरियश राय के नये उपन्यास माटी- राग का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेले में किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए हमारे समय की विशिष्ट लेखिका प्रज्ञा रोहिणी ने कहा कि हरियश राय के उपन्यास माटी- राग ने कथा साहित्य में किसानों को फिर से खड़ा किया है। माटी- राग कर्ज में डूबे किसानों की कहानी है। यह उपन्यास किसानों के प्रति करुणा तो पैदा करता ही है, साथ ही गांवों में विकसित हो रही नई संरचना को भी सामने लाता है।
इस उपन्यास पर बोलते हुए वरिष्ठ कथाकार उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने कहा कि हरियश राय का उपन्यास उस समय आया है, जब किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। उपन्यास में हरियश राय ने किसानों के मिट्टी से रिश्ते को सम्पूर्णता में प्रस्तुत किया है।
परिकथा के संपादक और वरिष्ठ कथाकार शंकर का कहना था कि यह उपन्यास पूरे ग्रामीण अर्थतंत्र को, खेती की बहुत सारी छोटी -छोटी समस्याओं से जूझते हुए किसानों की जिजीविषा को बहुत बड़े परिदृश्य में ले जाने की कोशिश करता है। एक धारणा यह भी है कि किसान लिया हुआ कर्ज़ वापस नहीं करना चाहते और बैंक-अधिकारी इतनी सख्ती बरतते हैं कि उसकी वजह से किसान आत्महत्या कर लेते हैं। यह उपन्यास इस तथ्य को भी रेखांकित करता है कि खेती के विकास के लिए जो इन्फ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, वह इन्फ्रास्ट्रक्चर गांवों में मौजूद नहीं है और इसी इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव में किसान खेती छोड़ना चाह रहे हैं।
कई सर्वे भी इस बात की पुष्टि कर चुके हैं। खेती से किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा है और खेती किसानों की आजीविका भी नहीं चला पा रही है। जब गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर न हो, सिंचाई की व्यवस्था न हो, फ़सलों को मंडी में पहुंचाने के लिए पर्याप्त सड़कें न हों, भंडारण की व्यवस्था न हो, फसल को बेचने की व्यवस्था न हो, तो किसान चाहे भी तो कर्ज़ वापस नहीं कर सकता। जिन कारणों से किसान कर्ज़ नहीं चुका पाता, उन कारणों का जायजा इस उपन्यास में है जो उपन्यास का नयापन है।
उपन्यास पर बोलते हुए हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक शंभु गुप्त ने कहा कि उपन्यास में कई संदर्भ, घटनाएं और प्रसंग हैं जो किसानों को वर्तमान परिवेश से जोड़ते है। उपन्यास में यह तथ्य भी सामने आया है कि सरकार किसानों की ज़मीन लेकर कॉर्पोरेट को दे रही है। यह एक प्रकार से किसानी को खत्म करना है। उपन्यास बहुत सूक्ष्म रुप से यह बताता है कि खेती में लाभ कम और लागत ज्यादा है और इसके मूल वह सिस्टम है जिसे नौकरशाही, राजनीति और न्याय प्रणाली का समर्थन हासिल है।
उपन्यास पर अपनी बात रखते हुए नाट्यकर्मी अशोक तिवारी ने कहा यह उपन्यास एक दस्तावेज की तरह हमारे सामने है। इस उपन्यास से हमें पता चलता है कि पानी कहां ठहरा हुआ है, इस पानी को किसने ठहराया है, पानी क्यों ठहरा हुआ है। यही उपन्यास का मूल स्वर है।