आजम खान के गढ़ में कमल खिल गया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने आजम के करीबी आसिम रजा को धूल चटा दी है। आकाश सक्सेना बीजेपी के पूर्व विधायक शिव बहादुर सक्सेना के बेटे हैं। नफरती भाषण के एक मामले में सजा होने के बाद आजम खान की विधायकी गई थी। इसी के बाद रामपुर सीट पर उपचुनाव का ऐलान हुआ था। रामपुर में बीजेपी की जीत कई लिहाज से बेहद अहम है। भगवा पार्टी ने रामपुर की सीट पर पहली बार जीत हासिल की है। इसने तमाम राजनीतिक पंडितों को चौंका कर रख दिया है। आसिम रजा को यह हार बिल्कुल हजम नहीं हो पाई है। उन्होंने पुलिस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि पुलिस ने शहरी इलाकों में एक वर्ग को वोट डालने ही नहीं दिया। आसिम रजा कुछ भी कहें, लेकिन हकीकत यह है कि सपा के किले को बीजेपी ने ढहा दिया है। आखिर बीजेपी ने यह बाजी कैसे पलट दी? इसका मतलब क्या है? आइए, यहां समझने की कोशिश करते हैं।
रामपुर में बीजेपी के आकाश सक्सेना ने वो किया है जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में भगवा पार्टी पहले कभी नहीं कर सकी। करीब 81 हजार वोट पाकर (लगभग 61% वोट) उन्होंने आजम खान के नजदीकी आसिम रजा को पटखनी दी है। आकाश सक्सेना ने आसिम रजा को करीब 34 हजार वोटों से हराया है। रामपुर में 5 दिसंबर को विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान हुआ था। रामपुर सीट पर बहुत कम 33.94 फीसदी मतदान हुआ था। सीट पर कम मतदान के बाद ही इस बात के आसार जताए जाने लगे थे कि इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है। आसिम रजा ने आरोप लगाया है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ‘खाकी’ है। उन्होंने कहा है कि शहरी इलाकों में लोगों को वोट डालने नहीं दिया गया। बूथों पर वोटरों को डराया और धमकाया गया। रामपुर के इलेक्शन को पुलिस ने कैप्चर किया। उन्होंने इस जीत को रामपुर पुलिस की जीत बताया है। आसिम ने आरोप लगाया है कि तमाम बूथों पर पुलिस ने खुद ही वोट डाल दिए।
चीखने-चिल्लाने का क्यों मतलब नहीं?
रजा के चीखने-चिल्लाने का कोई मतलब नहीं है। हर हारने वाला प्रत्याशी किसी न किसी चीज को कसूरवार ठहराता ही है। बड़ी बात यह है कि इसने आजम खान की 40 साल की बादशाहत को खत्म कर दिया है। आखिर बीजेपी ने यह करिश्मा कैसे कर दिखाया।
वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत कहते हैं – ‘रामपुर में आजम खान का रोना-धोना, चीखना-चिल्लाना सब बेकार रहा। उनके खासमखास आसिम रजा को बीजेपी के आकाश सक्सेना ने हरा दिया है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल इलाकों में बीजेपी का परचम लहराना, नया ट्रेंड है जो बीजेपी के योगी आदित्यनाथ मॉडल के कारण बन रहा है।’
जानकार कहते हैं कि चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने भी बीजेपी के लिए बढ़चढ़कर वोट किया। सक्सेना मुस्लिम महिलाओं से जुड़े तमाम मसलों पर उन्हें मोबलाइज करने में कामयाब हुए। रामपुर में बीजेपी की जीत यह भी एक बड़ा कारण है। योगी का विकास मॉडल का इसमें अहम रोल रहा है। इसमें केंद्र के साथ राज्य की स्कीमों का लाभ हर एक को बिना किसी भेदभाव के पहुंचा है। लोगों को जब प्रत्यक्ष लाभ होते हुए दिखा तो यह वोटों में भी तब्दील हुआ। ऐसे में आसिम रजा अगर कहते हैं कि बूथों में रामपुर के शहरियों को वोट ही डालने दिया गया तो सच नहीं है। अगर यही बात है तो फिर मैनपुरी और खतौली में भी यही हो सकता था। मैनपुरी लोकसभा सीट डिंपल यादव ने धुआंधार तरीके से जीती है। वहीं, खतौली सीट आरएलडी के पास गई है।
सभी ने दिया बीजेपी को वोट
रामपुर सदर सीट पर पहली बार बीजेपी ने जीत हासिल की है। ऐसे में सपा का नाराज होना लाजिमी है। आसिम रजा का गुस्सा गर्मी दिखाना भी बनता है। लेकिन, जो कभी नहीं हुआ वो आगे भी नहीं होगा राजनीति में यह नहीं कह सकते हैं। यह बदलती रहती है। आज रामपुर की जनता ने बदलाव को चुना है। इसका सम्मान करना चाहिए। आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। आकाश के पक्ष में 81 हजार से ज्यादा वोट पड़े हैं। यह वोट प्रतिशत 62 फीसदी से ज्यादा है। इसके उलट आसिम रजा को इसके आधे करीब 47 हजार वोट मिले। उनके लिए वोट प्रतिशत 36 फीसदी रहा। यानी आसिम रजा कोई खास टक्कर भी नहीं दे पाए। यह साफ दिखाता है कि लोगों के मन में बदलाव की कसक थी। उन्होंने बीजेपी को चुनकर उस बदलाव को ला दिया है। इसमें बैकवर्ड, दलित और मुस्लिम वर्ग का भी बड़ा वोट बीजेपी को मिला। इसने बीजेपी की ऐतिहासिक जीत सुनिश्चित कर दी।
क्यों ये जीत बहुत बड़ी है?
रामपुर की जीत बीजेपी के लिए बेहद स्पेशल है। यहां बीजेपी कभी जीती ही नहीं। इसके उलट समाजवादी पार्टी के आजम खान और उनका परिवार 2002 से लगातार इस सीट से जीतता रहा है। एक तरह से यह सीट खान के नाम पर लिख गई थी। खान की विधायकी जाने के बाद उन्होंने अपने बेहद करीबी आसिम रजा को मैदान में उतार दिया था। लेकिन, रजा सपा को जीत दिला पाने में नाकाम रहे।