डॉ. विकास मानव
समाधि का मतलब खुद को जिंदा दफना देना नहीं है. समाधि = समत्व में, समग्र में, सत्य में स्थति अर्थात परमानंद की अवस्था.
आत्मनि आत्मना तुष्ट स्थितिधिः तदा उच्यते।
जिस दिशा मे जाना चाहो चले जाओ, जो भी करना है करो. मन के हैं हजार रंग. चाहो उससे खेलो पर मन से निकाल दो इसे कि ये रंग सत्य के हैं. तुम्हारे कुछ करने से या न करने से कुछ हो जायेगा या नहीं होगा इसके लिये सत्य की कोई जवाबदारी नहीं है कि वो तुमारे समक्ष आये और हम कहते हैं कि तुम्हारी भी कोई जिम्मेदारी नही है। जब कुछ शेष रहा ही नहीं तो किसकी और कैसी जवाबदारी?
जिम्मेदारी का सवाल तब आता है जब कुछ करने को बाकी हो अब जब कुछ बाकी ही नहीं तो?
सही से देखें तो हम इसलिये दुखी हैं , क्योंकि हमने अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाया नही-तो फिर जो हो रहा है, चल रहा है उसे होने दो, चलने दो।
आपने केले का ठेला लगाया सोचा कि आज खूब बिक्री होगी, तो ठीक है पर क्या अस्तित्व आपके धंधे के लिये जिम्मेदार है?
सोचें जरा, केले बिकने हैं तो बिकेंगे या नही बिकेंगे-होना है तो होगा नहीं होना है तो नहीं होगा, इस पर विचार करें। साक्षी, ध्यान, दृष्टा यह सब फालतू की बात हैं-कोई कहता है ध्यान लगा कोई कहता है समाधि तो लगी पर निर्विकल्प बाकी है कोई गुरू धक्का मार दे बात बन जाये.
इस धक्के वाले गुरू के चक्कर मे भटकते हो-अरे, प्रकृति को देखो, इस संसार को देखो, अपने देह को देखो और मस्त जिओ-देह से अलग कोई समाधि नहीं है, देह से मन अलग नही-मन ही जाता है न समाधि मे या फिर आत्मा घुसती है?
गुरू न हों, शास्त्र न हों तो क्या समाधि नहीं लगेगी?
जो तुम्हारी सहजता है उसमे जीना सीखो इतने कठिन मत बनो अन्यथा जो अलभ्य है वो और भी कठिन हो जायेगा। माने कि आप सभ्य लोगों के बीच बैठे हो और अपानवायू ने बाहर आने को जोर लगाया, अब आप बेचैन परेशान, करें ना करें, दबा रहे हैं, अरे भाई क्यों?
आने दो न, यही तो है साक्षित्व पर तुम हो कि दो के बीच घुसे जाते हो। यह पूरी प्रकृति सहज समाधि है. यहां किसी को समाधि की जरूरत है क्या, उससे दूर भागो जो तुमसे समाधि की बात करता है।
तीन तरह के लोग दुनिया मे हैं, एक वो जो ईश्वर को अलग अलग नाम से बुलाते हैं, बेटा बेटी-धंधा पानी-मान प्रतिष्ठा-नफा नुक्सान-ज्ञान विज्ञान आदि आदि यह सब ब्रह्म के बिखरे हुए नाम हैं।
दूसरा वो जिसे बस ब्रह्म चाहिये और कुछ नहीं और तीसरा वह जिसे ब्रह्म की भी इच्छा नहीं है, सही मे यह तीसरा ही ब्रह्म को पा लेता है। यहां सभी को संसार चाहिये मात्र एक प्रतिशत ही गंभीर हैं। सहज बनें जैसे ये प्रकृति है, चिन्ता न करें समाधि लग जायेगी।