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मनो- स्वास्थ्य : बच्चों को रोने दीजिये

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डॉ. प्रिया

बच्चों को रोने से रोकना, उन्हें बिमारियों की ओर धकेलना है! हंसते हुए बच्चे हमें बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन बच्चे जब रोने लगते हैं तो हम उन्हें तुरंत चुप करवाने लगते हैं।

       बच्चे जैसे ही रोना शुरू करते हैं हम उन्हें प्यार से चुप करवा देते हैं और यदि चुप नहीं होता है तो फिर हम डांटकर चुप करवाने लगते हैं।

     हम उन्हें खुलकर रोने नहीं देते हैं, जबकि रोना एक सहज प्रक्रिया है जैसे कि हंसना एक सहज प्रक्रिया है। 

बच्चे को रोने से रोकना उसके बीमार होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। डाक्टर कहते हैं कि जो बच्चे नहीं रोते हैं, रोने को रोक लेते हैं वे शारीरिक और मानसिक दोनों तलों पर कमजोर हो जाते हैं।

      रोने से, आंसू निकलने से बच्चे के मष्तिष्क से कई प्रकार के तनावों का निकास हो जाता है और सिर से बिमारी पैदा करने वाले अनावश्यक तत्व आंसुओं के साथ बाहर निकल जाते हैं।

     जब बच्चे रोते हैं तो हिचकियां लेने से श्वास बाहर जाती है तो पेट सिकुड़ने लगता है, फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं जिससे पेट से अनावश्यक तत्व और फेफड़ों में भरा कफ आहार नली और श्वास नली द्वारा नाक और मुंह से बाहर आने लगता है।

     इस तरह से पेट और फेफड़ों की सफाई हो जाती है और बच्चे स्वास्थ्य रहते हैं। वे पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र सम्बन्धित बिमारियों से बचे रहते हैं। इसलिए बच्चों को रोने देना चाहिए, रोने से रोकना नहीं चाहिए।

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